(गुजरात समाचार की सिने पूर्ति चित्रलोक में प्रकाशित लेख का प्रथम किस्त)
बांसुरी सम्राट पंडित हरिप्रसाद चौरसियाने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘जब जब हम किसी म्युझिक कोन्फरन्स में राग पहाडी पर आधारित धून बजाते हैं तब लोग खुशी से झूमने लगते हैं. शायद हिन्दी फिल्म संगीतकारों ने आम आदमी तक राग पहाडी पहुंचा दिया है...’ पंडित हरिप्रसादजी का मंतव्य अनुभवसिद्ध है. वे पिछले करीब छः दशकों से फिल्म संगीत से जुडे हुए हैं और असंख्य गीतों को उन की बांसुरीने यादगार बनाया है.
बात राग पहाडी की है. शायद आप को पता नहीं होगा लेकिन पिछले पांच छः दशकों में इस राग पर आधारित पांच हजार से भी ज्यादा फिल्म गीत का सर्जन हुआ है.
शायद आप पूछेंगे कि यह पांच हजार का अंक आप लाये कहां से ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये ही यह लेख आप के सामने प्रस्तुत किया है. ऊत्तर प्रदेशकी सांस्कृतिक नगरी लखनऊ में बसे एक संगीतप्रेमी सज्जन ने करीब अठ्ठाईस सालों की तपश्चर्या के बाद एक अद्वितीय ग्रंथ देश के संगीत प्रेमीयों को भेंट किया है. उस ग्रंथ का नाम है- ‘हिन्दी सिने राग-एन्सायक्लोपिडिया. ’ जरा ध्यान दीजियेगा. इस ग्रंथ में बीस हजार फिल्म गीतों का पृथक्करण किया गया है. कौन सा गीत किस राग और ताल पर आधारित है यह तय कर के इस ग्रंथ में समाविष्ट किया गया है.
रागोपिडिया के लेखक एल के पांडे संगीतकार रवि के साथ चर्चा करते हुए--------------------------------------------------------------------------
आईये उस तपस्वी का परिचय करते हैं. आप का नाम है श्री कन्हैया लाल (के एल) पांडे. बचपन में स्कूळ में पढाई करते करते आप ने भारतीय शास्त्रोक्त संगीत की तालीम ली थी. सभी बच्चे इस तरह से संगीत की तालीम लेते रहते हैं. अब हमारे गुजरात की ही बात करें तो प्रति वर्ष करीब 30 से 35 हजार बच्चे गांधर्व महाविद्यालय में संगीत का अभ्यास करते हैं और विविध परीक्षायें देते हैं.
लेकिन जैसे जैसे पढाई आगे बढती है, अक्सर ऐसा होता है कि संगीत एक तरफ रह जाता है. पांडेजी के साथ ऐसा नहीं हुआ. माईक्रो-बायोलोजी (सूक्ष्म जीव विज्ञान) विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करते करते आप रेडियो पर पुराने फिल्म गीत बडे चाव से सुनते रहे.
बिनाका गीतमाला, आप की पसंद, विविध भारती वगैरह प्रोग्राम्स सुनते रहे और बीच बीच में निजानंद के लिये करीब पांचसौ गीतों के राग का विवरण करते रहे.
स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद आप ने UPSC की परीक्षा दी और भारतीय रेलवे में भर्ती हो गये. करीब चार दशक तक आप ने विविध ओहदे पर रेलव में सेवा प्रदान की.
इसी दौरान भारतीय संगीत फिर से सीखने की ईच्छा तीव्र हो ऊठी. रेडियो पर पुराने फिल्म गीत सुनने के साथ साथ आप शास्त्रीय संगीत की परिषदों में भी जाते रहते थे. ऐसे में एक बार पटियाला घराने के चोटि के गायक पंडित अजय चक्रवर्ती से मुलाकात हो गयी. पांडेजी ने करीब पांचसौ फिल्म गीतों के रागों का चयन किया है इस बात से पंडित अजय चक्रवर्तीजी वाकिफ थे.
जब पांडेजी ने भारतीय संगीत में उच्च अभ्यास करने की ईच्छा व्यक्त की तब अजयजीने सुझाव दिया कि आप ने फिल्म गीतों के रागों के संशोधन का जो काम हाथ में लिया है वैसा काम किसी और ने पहले कभी नहीं किया है. आप उस काम को करते रहिये. आप का संगीत का अभ्यास भी होता रहेगा और एक बहुत ही बढिया काम भी आप के हाथों होता रहेगा.
अब पांडेजी को एक नयी मंजिल मील गयी. पंडित अजय चक्रवर्ती के सुझाव पर आप ने काम शुरू किया. रेलवे की नौकरी में आप की बार बार एक से दूसरे प्रदेश में बदली होती रहती थी. जहां जहां भी आप जाते थे, वहां से पुरानी फिल्मों की रिकार्ड की तलाश करते रहते थे. संबंधित शहर के दूसरे रिकार्ड संग्राहकों का संपर्क करते थे और रिकार्ड, केसेट्स और सीडी प्राप्त करते रहते थे. साथ ही शास्त्रीय संगीत के विविध कलाकारों के साथ विचार विनिमय भी करते रहते थे.
हमारे पुराणों में भगीरथ के पुरुषार्थ की कथा है. भगीरथ अपने वंशजो के मोक्ष के लिये स्वर्ग से पतितपावनी गंगा को पृथ्वी पर लाया. हमारे पांडेजीने करीब आठ दस साल तक धैर्य रखकर तपस्या जारी रखी और बीस हजार गीतों के राग और ताल का अभ्यास किया और यह रागोपिडिया का प्रकाशन किया । (क्रमशः )
Comments
Post a Comment