भैरवी से आगाज, भैरवी से धी एन्ड....

शंकर जयकिसन-100

सन 1947-48 में राज कपूर की फिल्म बरसात से अपनी संगीतकार की कारकिर्द का श्री गणेश करनेवाले शंकर जयकिसन ने बरसात में 60 प्रतिशत  से ज्यादा गीत सर्वदा सुखदायिनी रागिणी भैरवी में दिये थे और वे काफी हिट हुए थे. उस के बाद इन दोनों ने ढेर सारी फिल्मों में भैरवी में गीत दिये और सिर्फ भैरवी का उपयोग करते हुए मिलन, विरह, रुठना-मनाना, खुशी, गमगीनी, करुणा, उत्साहवर्धक इत्यादि संवेदनो को जीवंत किये. भैरवी रागिणी ने उन्हें काफी लोकप्रियता और कामियाबी भी बक्षी. जयकिसन ने तो अपनी पुत्री का नाम भी भैरवी रखा. 

अब मजा देखिये. कभीकभार ऐसा हुआ था कि फिल्म के सारे के सारे गीत भैरवी में थे. भगवानदास वर्मा की फिल्म औरत (1953-54) सभी गीत भैरवी में थे तो ऋषीकेश मुखरजी निर्देशित फिल्म आशिक के 80 प्रतिशत गीत भैरवी में थे.

जयकिसन की चिरविदाय के बाद भी शंकर ने अकेले पुरुषार्थ करते हुए 55 फिल्मों में संगीत परोसा. लेकिन उन को किस्मत ने साथ नहीं दिया. वे नाहिंमत नहीं हुए. अनेक अवरोधों के बीच भी बडे चैन के साथ काम करते रहे. 1987 में शंकर का देहावसान हुआ. उस से पहले उन की अंतिम फिल्म थी संन्यासी. इस फिल्म में भी 80 प्रतिशत से ज्यादा गीत भैरवी में थे. जयकिसन के जाने के बाद भी  सोहनलाल कंवर जैसे फिल्म सर्जक ने शंकर का साथ नहीं छोडा. संन्यासी फिल्म भी सोहनलाल कंवर की थी. जयकिसन की अनुपस्थिति में भी शंकर भैरवी को प्रेम करते रहे और भैरवी में गीत देते रहे. फिल्म को मध्यम कक्षाकी कामियाबी मिली थी.

शास्त्रीय संगीत के बैठक सदैव भैरवी से समाप्त होती है. शास्त्रो में भैरवी को सुबह की रागिणी कहा गया है लेकिन शास्त्रीय संगीत की महफिल का समापन भैरवी से होता है. संगीत रसिक महफिल से अपने घर की तरफ जाते हुए भैरवी के सुरों को अपने मन में गुनगुनाता जाता है. अब इसे इत्तेफाक कहीये का किस्मत का खेल कहिये, 1947-48 से 1986-87 के तीन दशकों तक संगीतकार के रूप में काम करते हुए शंकर जयकिसन ने कारकिर्द का आऱंभ भी भैरवी से किया और समापन भी भैरवी में किया. करीब 180 फिल्मों में संगीत परोसा, कुल मिलाकर 1300-1400 गीत दिये. उस में करीब करीब 40 प्रतिशत गीत भैरवी में थे और सभी भैरवी गीत सुपरहिट हुए थे. 

वैसे तो शंकर जयकिसन के बारे में दूसरे 100 अध्याय लीखे जा सकते हैं. लेकिन मेरा स्वभाव ऐसा है कि मैं सदैव भोजनथाल में अचार या चटनी के रूप में प्रस्तुति करता हुं. अतैव यहां विराम लेता हुं. परमात्मा ने चाहा तो भविष्य में और कुछ लीखुंगा. 

इस श्रेणी को फेसबुक के जिन दोस्तों-पाठकों ने सराहा, मेरा हौसला बढाया और जिन्हों ने बडे प्रेम के साथ समीक्षा भी की, उन सभी दोस्तों-पाठकों का मैं शुक्रगुजार हुं. शंकर जयकिसन का संगीत सर्जन ऐसा विषय है कि एक से अधिक विद्यार्थी इस विषय पर पी.एचडी. कर सकते हैं. आम आदमी के दिलोंदिमाग तक फिल्म संगीत और फिल्म संगीत के जरिये शास्त्रीय राग-रागिणीयों को को पहुंचाने का अथाक पुरुषार्थ इन दोनों ने किया और काफी कामियाब भी रहे. 

सोनी टेलिविझन चेनल पर इन्डियन आइडोल कार्यक्रम में वरिष्ठ संगीतकार प्यारेलालजी पधारे थे तब उन्हों ने शंकर जयकिसन को 'गुरुओं के गुरु' कहकर उन के प्रति अपना आदरभाव व्यक्त किया था. मैं भी शंकर जयकिसन को सादर प्रणाम कर के आप सब की इजाजत चाहता हुं. जय संगीत, जयहिंद ! 

 

    


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