शंकर जयकिसन-99
वैसे देखा जाय तो इस विवाद का आऱंभ ओ पी नय्यर केम्प से शुरु हुआ था. करीब 1956 में एक फिल्म आयी थी. उस फिल्म का नाम था 'हम सब चोर हैं'. इस फिल्म में एक गीत था. मजरूह सुलतानपुरीने यह गीत लीखा था. यहां और एक बात भी समज लेना जरूरी है. 1950 के दशक से ही बडे बडे फिल्म सर्जक विदेशों में जो गीत हिट हुए थे उस के रिकार्ड लाकर अपने संगीतकारों से कहते थे कि ऐसा कुछ बनाओ. ऐसी परंपरा का एक परिणाम ऐसा हुआ कि हमारे संगीतकार विदेशी धूनों की नकल करते हैं ऐसे आक्षेप होने लगे.
इस मुद्दे को ध्यान में रखकर मजरूहने एक गीत लीखा था- 'हम को हंसते देख जमाना जलता है, चोर बनो या मोर जमाना हंसता है...' इस गीत के अंतरे में मजरूह ने लीखा है- 'अरे चोर सारी दुनिया, हम को मत घेर जरा, य़हां सब चोर है, समज का है फेर जरा...' इस गीत रिकार्डिंग मे जो साजिंदे हाजिर थे उनमें से किसी ने ऐसी अफवाह फैला दी की ओ पी नय्यर ने शंकर जयकिसन का मजाक उडाया है.
हकीकत में ऐसा नहीं था. ओ पी और शंकर जयकिसन के बीच बहुत अच्छी दोस्ती थी. ओ पी की फिर वो ही दिल लाया हुं फिल्म रिलिझ हुयी तब शंकर ने उन्हें फोन कर के मुबारकबाद दीये थे कि आप ने इस फिल्म में बहुत बढिया संगीत दिया है.
यहां और एक तसवीर देखिये. शंकर जयकिसन और ओ पी के बीच कितनी अच्छी दोस्ती थी उस का प्रमाण इस तसवीर में है.
हम को हंसते देख जमाना जलता है... गीत का ध्वनिमुद्रण हुआ तब बहुत सारे साजिंदे मौजुद थे. अब किसी किसी आदमी का स्वभाव ऐसा होता है कि वह यहां की बात वहां करता है और लोगों को आपस में लडाकर मजे लेता है. हो सकता है, किसी साजिंदे ने शंकर जयकिसन के अन्य ध्वनिमुद्रण के वक्त ऐसे साजिंदे ने यह गलत बात फैला दी कि ओ पीने शंकर जयकिसन पर कटाक्ष करते हुए एक गीत बनाया है.अब शंकर जयकिसन भी आखिर तो मेरे तुम्हारे जैसे ईन्सान थे. शायद उन को बूरा लगा होगा. लेकिन उन्हों ने प्रतिभाव नहीं दिया.
करीब तीन साल के बाद 1959 में लव मेरैज नाम की एक फिल्म आयी जिस में शंकर जयकिसन का संगीत था. शैलेन्द्र ने एक गीत बनाया था. 'टीन कनस्तर (मूल अंग्रेजी शब्द है केनिस्टर याने बडा ढोल) पीट पीट कर गला फाड कर चिल्लाना, यार मेरे मत बूरा मान यह गाना है न बजाना है...' इस गीत के अंतरें में शैलेन्द्रने लीखा था- 'उधऱ से लेकर इधर जमा कर, कब तक काम चलाओगे, किस का रहा जमाना, एक दिन महफिल से ऊठ जाओगे, नकल का धंधा चल नहीं सकता, एक दिन तो पछताना है, यार मेरे मत बूरा मान...'
हमारी भी ओ पी नय्यर साहब से बात हुयी थी. वे भी नौशाद की तरह खुलकर हंसे थे और कहने लगे कि यार, आप लोग भी ऐसी बातों में आ गये. वह तो मजाक था. एक दूसरे का मजाक उडाने का मजा हम सब लिया करते थे.
लेखक अजित पोपट और उन की धर्मपत्नी सरोज ओ पी नय्यर के साथ. ओ पी नय्यर ने इस बात को हंसकर ऊडा दी थी.
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अब जरा गौर कीजिये. हम सब चोर है फिल्म आयी 1956 में और लव मेरैज फिलम आयी 1959 में. तीन साल बीत गये थे. एक मिनट के लिये मान भी लीजिये कि ओ पी ने मजाक किया था, तो शंकर जयकिसन ने तीन साल तक जवाब देने की परवा नहीं की और बाद में यह गीत दिया ? गोसिप लेखकों की बात हम कैसे मान लें, क्यों मान लें ? ये उन दिनों की बात है जब संगीतकारों में स्पर्धा होती थी लेकिन वह एक दूसरे की गर्दन काटने जैसी स्पर्धा नहीं थी. और फिर संगीतकार कल्याणजी ने कहा वैसे यह सब बचपना था. एकदूसरे का मजाक उडाना आदमी का स्वभाव होता है. इस में खत्म करने की बात कहां से आयी, आप ही सोचिये.
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