शंकर जयकिसन-98
इस तसवीर को गौर से देखिये. बाद में इस अध्याय को पढिये. तसवीर में 1950 के दशक के सभी बडे संगीतकार मौजुद है. जयकिसन, सी रामचंद्र और मदन मोहन जैसे संगीतकार तो मुस्कुराते हुए खुले पैर जमीन पर बैठे हैं, उन दिनों सभी संगीतकारो में अच्छा याराना था. एक दूसरे को सहाय करने के लिये सभी तत्पर रहते थे.
यदि आप को याद हो तो जिस देश में गंगा बहती है के ऐक गीत के रेकोर्डिंग में अचानक सी रामचंद्र जा पहुंचे और उन्हों ने बहुत ही खूबसुरत सुझाव दिया. वायोलिन्स की जगह लता की आवाज में आलाप लेने का वह सुझाव था. यह सुझाव राज कपूर को भी पसंद आया और गीत में सी रामचंद्र के सुझाव का इस्तेमाल किया. गीत निखर उठा था.
अब आगे पढिये. गोसिप (गपसप) लीखनेवाले स्तंभकारों ने और एक बात बढा चढा के लीख डाली थी. उस बात में कोइ सच्चाई नहीं थी. लेकिन उन दिनों इस तथाकथित विवाद ने हंगामा खडा कर दिया था. बात कुछ ऐसी थी. गोसिप में ऐसा लिखा गया कि शंकर जयकिसन ओ पी नय्यर को खत्म करने की साजिश कर रहे हैं.
इस मुद्दे पर जब मेरी संगीतकार नौशाद से बात हुयी तो वे खुले दिल से हंस दिये. कहने लगे कि यह सब आप मिडियावालों की कमाल है. हकीकत में ऐसा कुछ हुआ नहीं था. 1940 और ’50 के दशकों में हम सभी संगीतकार दोस्त थे और ऐसी गोसिप छपने पर हम लोग सिने म्युझिक डायरेक्टर्स एसोसियेशन की बैठक में हंसते थे कि देखो, कैसा कैसा बकवास लिखा गया है. कैसा तमाशा चल रहा है.
संगीतकार कल्याणजीने इस बात को अपने अंदाज में समजाते हुए कहा, देखो भाई, हर कलाकार दिल से बच्चे जैसा होता है. पल में रीझे, पल में खीजे. उन के दिल में कभी किसी को खत्म करने का विचार ही नहीं आता. कलाकार में रहे बच्चे को प्यार दुलार से आप इच्छित काम करा सकते हो. मैं आप को एक द्रष्टांत देता हुं. सारी फिल्म सृष्टि कहती है कि किशोर कुमार सब को परेशान करता है. है न ?
लेकिन हमारे साथ किशोर कुमार ने सदैव सहयोग से काम किया. ऐसा क्यूं ? क्यों कि हम किशोर में छूपे नटखट बच्चे को सम्हाल लेते थे और वो हम को सर्वोत्तम काम देता था. कभी वो कहता था कि आज मैं गांधी टोपी पहनकर गाउंगा तो कभी कहता था कि आज मेरे लिये खटिया मंगा दो. खटिया मंगाने पर वह छोटे बच्चे की तरह खुश हो जाता था. हमें जो चाहिये था वह संपूर्ण शक्ति लगाकर वह देता था. ऐसे में यह बात कहां से आयी कि शंकर जयकिसन ओ पी नय्यर को खत्म करना चाहते थे.
और एक बात. संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की दोस्ती फिल्म के लिये आर डी बर्मन ने पूरी फिल्म में माऊथ ओर्गन बजाया था. जब उन को पुरस्कार के बारे में पूछा गया तब पंचम बिगडे और कहने लगे मैंने तुम दोनों की दोस्ती की वजह से साज बजाया है, पैसे कमाने के लिये नहीं बजाया है. पुरस्कार की बात मत करो वर्ना हमारी दोस्ती नहीं रहेगी.
देव आनंद की गाईड फिल्म में जगप्रसिद्ध संतुरवादक पंडित शिवकुमार शर्मा ने आर डी बर्मन के कहने पर एक गीत में तबले बजाये थे. यह भी दोस्ती का किस्सा था. ऐसे माहौल में कोइ एक दूसरे को खत्म करने का सोच भी कैसे सकता है ?
इतनी लंबी प्रस्तावना के बाद अगले अध्याय में हम शंकर जयकिसन और ओ पी नय्यर के बीच हुए तथाकथित विवाद की बात करेंगे. तब तक के लिये ईन्तजार कीजिये. धन्यवाद !
Comments
Post a Comment