शंकर जयकिसन-96
पिछले अध्याय में हमने संगीतकार शंकर ने जयकिसन के निधन के बाद जो काम किया उस की बात कर रहे थे. 1975 में आयी फिल्म अर्चना का एक गीत राग दीपक पर आधारित था ऐसा विद्वानों का मंतव्य था. संगीत सम्राट तानसेन को जिस दीपक राग से ज्वर हुआ था वह कौन सा दीपक राग था और आज हमारी बीच जो दीपक राग है उन दोनों दीपक में क्या फर्क है उस की बात हम कर रहे थे.
भारतीय संगीत में चमत्कारी शक्ति है ऐसा बहुत संगीतकारों का मानना है. संगीतकार नौशाद कहते थे के यदि राग खमाज सही तरीके से गाया जाय तो पागल हाथी शांत हो जाता है. ग्वालियर घराने के गवैये पंडित ओमकारनाथ ठाकुर के जीवन में भी एक ऐसा प्रसंग आया था. उन दिनों वे लाहोर (अब पाकिस्तान) में थे. लाहोर झू (प्राणीघऱ) में एक शेर जवान हो गया था और सिंहनी की अनुपस्थिति से दिवाना सा हो गया था. पंडितजीने अपने छोटे भाई को वोयलिन के साथ वहां भेजा और राग मियां को तोडी प्रस्तुत करवाया. थोडी देर में शेर अपने आप शांत हो गया.
अर्चना में जिया में लागा मोरे बाण प्रीत का... गीत दीपक राग पर आधारित था. मजे की बात यह है कि यह गीत फिल्म के हीरो संजीव कुमार पर नहीं बल्के कोमेडियन-चरित्रनट ओमप्रकाश पे फिल्माया गया था.
आप जानते ही होंगे कि ओमप्रकाश स्वयं भी संगीत जानते थे अतैव राग आधारित गीतों को अच्छी तरह पेश कर सकते थे. आप को याद होगा कि फिल्म बुढ्ढा मिल गया में संगीतकार आर डी बर्मन ने राग खमाज में एक मधुर गीत दिया था आयो कहां से घनश्याम... यह गीत भी ओम प्रकाश पर फिल्माया गया था. ठीक उसी तरह अर्चना का गीत भी ओमप्रकाश पर फिल्माया गया था और काफी लोकप्रिय हुआ था.
ऐसा ही एक राग आधारित गीत फिल्म अर्चना में हीरो संजीवकुमार पर फिल्माया गया था. दिन के दूसरे प्रहर में गाये-बजाये जाते राग जौनपुरी में यह गीत निबद्ध था. आसावरी और जौनपुरी दोनों रागों के स्वर समान है. ग, ध और नी कोमल एवं आरोह में रिषभ वर्जित. न जाने क्यूं अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय के संगीत विशारद के अभ्यासक्रम से आसावरी निकाल दिया गया और उस की जगह जौनपुरी रखा गया है.
हसरत जयपुरी की रचना है और शंकर ने राग जौनपुरी में स्वरबद्ध किया है. यह गीत मुहम्मद ऱफी की आवाज में है. मुखडा है- जाने किस रूप की जादुभरी परछांयी हो, लोग तो लोग रहे, अपने से शरमाती हो... जैसे संवेदनशील शब्द है वैसी ही मधुर तर्ज भी बनी है.
अर्चना के पहले करीब 1973 में नैना नाम की एक फिल्म आयी थी. इस फिल्म में शशी कपूर, मौसमी चेटर्जी और (फिल्म सर्जक वी. शांताराम की बेटी) अभिनेत्री राजश्री ने काम किया था. अपनी महबूबा के निधन के बाद गहन हताशा में सरक गये एक नायक को दूसरी नायिका अपने प्यार से फिर उत्साहित करती है ऐसी कहानी थी.
इस फिल्म में शंकर ने राग दरबारी जैसे गंभीर राग में एक रोमान्सरंगी गीत दिया था. फिल्म चली नहीं और शंकर का पुरुषार्थ भी भूलाया गया. इस गीत को फिल्म का शीर्षक गीत कहा जा सकता है. मुखडा है, हम को तो जान से प्यारी है तुम्हारी आंखें, काजलभरी मदहोश ये प्यारी आंखें...
यह तो सिर्फ एक छोटी सी झलक आप के सामने रखी है कि शंकर ने अकेले रहकर भी बहुत अच्छे राग आधारित गीत दिये हैं. ऐसे और भी गीत हैं. आज इतना ही.
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