शंकर जयकिसन-95
पिछले अध्याय में हम ने देखा कि जयकिसन के निधन के बाद किस तरह दोषद्रष्टा समीक्षकों ने शंकर के बारे मे गलत बातें प्रकाशित की थी. अब हम अकेले शंकर ने जो काम किया उस की थोडी सी झलक लेंगे. सब से पहले मैं शंकर के राग आधारित गीतों की बात करना चाहुंगा. मुझे यकीन है कि आप को भी यह बातें पसंद आयेगी.जयकिसन जीवंत थे तब इन दोनों ने सभी गीत राग आधारिग थे ऐसी फिल्म बसंत बहार दी थी. हम मान लेतें हें कि बसंत बहार के गीतों में दोनों संगीताकरों का समान प्रदान था. अब जब जयकिसन नहीं रहे तब भी शंकर ने जब भी जहां मौका मिला तब राग आधारित गीत दिये, उस की बात करने जा रहे हैं.
सब से पहले मैं अपने पसंदीदा कलाकार शम्मी कपूर के एक गीत की बात करना चाहुंगा. वैसे हमने शम्मी कपूर को जंगली, एन ईवनींग इन पेरिस वगैरह फिल्मों में डान्सींग हीरो के रूप में देखा है और उन फिल्मों के गीतों की बात भी की है. हेमा मालिनी और राजेश खन्ना के साथ फिल्म (1971) अंदाज के बाद शम्मी कपूर प्रौढ कलाकार या चरित्र नट के रूप में परदे पर दिखने लगे थे. शम्मी कपूर अपने बडे भाइ राज कपूर की तरह संगीत की अच्छी जानकारी रखते थे यह बात सभी फिल्म सर्जकों को मालूम थी.
ऐसे में एक बहुत ही मस्त राग आधारित गीत प्रस्तुत करने का मौका शंकर को मिल गया. फिल्म थी जाने अन्जाने. गीत मन्ना डे की आवाज में था. छम छम बाजे रे पायलिया...
उस्तादी दाढी-मूंछ के साथ और श्वेत लखनवी वस्त्रों मे सज्ज शम्मी कपूर अपने साथ सूरमंडल लिये गा रहे हैं ऐसा द्रश्य था. साथ में तबलावादक और सितारिया है. नर्तकी नृत्य कर रही है.
इस गीत में राधाकृष्ण की लीला का वर्णन है. छम छम बाजे रे पायलिया, राह चलत लचके पनिहारी, छलके गगरिया... वीररस प्रधान राग अडाणा में निबद्ध इस गीत को मन्ना डेने अपनी अनोखी गायनशैली में जीवंत किया हैं. थोडे विद्वानों का एसा मत है कि इस गीत के अंतरे में रागमाला का अर्थात् एक से अधिक रागों का प्रयोग किया गया है. हमें बिनजरूरी विवादों में दिलचस्पी नहीं है अतैव उस बात का जिक्र नहीं करेगे. मुख्य राग अडाणा है.
एस एच बिहारी के लिखी शब्दों को शंकर ने अनोखे अंदाज में स्वरबद्ध किया था और यह गीत रसिकों में काफी लोकप्रिय हुआ.
इत्तेफाक से दूसरा राग आधारित गीत भी मन्ना डे की आवाज में है. 1975 में प्रकाशित हुयी फिल्म अर्चना में यह गीत था. संजीव कुमार और माला सिंहा ने मुख्य भूमिका की थी. पुत्रजन्म के समय माता का निधन होने पर नायक पुत्र को अशुभ मान लेता है ऐसी कहानी थी. (ऐसी ही एक कहानी यदि आप को याद हो तो फिल्म अनुपमा में थी जिस में शर्मिला टैगोर और धर्मेन्द्र ने मुख्य भूमिकाएं की थी. इस फिल्म में पुत्री को अशुभ मानकर पिता उस की उपेक्षा करते हें ऐसी कहानी थी.
इस फिल्म में राग आधारित गीत था उस का मुखडा था, जिया में लागा मोरे बाण प्रीत का, घायल है अऱमान प्रीत का... बहुत सारे विद्वानों का मत है कि यह गीत राग दीपक में है. मजे की बात यह है कि दीपक राग का असली रूप कौन सा यह अभी एकसौ प्रतिशत तय नहीं हुआ है. वैसे देखा जाय तो ऐसी कहानी है कि शहनशाह अकबर के दरबार में तानसेनने दोपहर मध्याह्न के वक्त बादशाह के हुकम को मानकर दीपक गाय और उन को दीपक ज्वर हुआ.
1940 के दशक में फिल्म तानसेन आयी थी जिस में बेजोड अभिनेता गायक के एल सहगल ने तानसेन का रोल किया था और इस फिल्म में संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने राग दीपक में दिया जलाओ दिया जलाओ जगमग जगमग दिया जलाओ गीय गाया था.
हकीकत यह है कि असली दीपक राग कौन सा वो हम जानते नहीं हैं. संगीत के शास्त्रों में दीपक का जो वर्णन मिलता है और आजकल जो दीपक गाया-बजाया जाता है उस में काफी फर्क है. खैर, शंकर ने स्वरबद्ध किये इस गीत में भी अनेरी ताजगी थी और संगीत रसिक शंकर के इस सर्जन से अभिभूत हुए थे. आज इतना ही.
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