जैजैवंती के औऱ गानें

 शंकर जयकिसन-93


सीमा (1955) के बाद काफी वक्त गुजर गया. 1971 में जयकिसन का निधन हुआ. उस के बाद अर्थात् करीब 1972 में शंकर ने और एक फिल्म में राग जैजैवंती आजमाया. बहुत से विद्वानों का मानना है कि यह तर्ज जयकिसन जीवंत थे तभी दोनों ने मिलकर बनाई थी. हम गोसिप या विवादों से दूर रहे हैं .इस लिये इस बात को यहीं छोड देते हैं.

फिल्म लाल पथ्थर में गीतकार नीरज की एक रचना पर संगीतकारों ने यह राग आजमाया. लता की आवाज में अभिनेत्री राखी पर यह गीत फिल्माया गया. यह गीत शुद्ध संसारी प्रेम का या कहिये कि वियोग का है. गीतकार ने अद्भुत शब्दरचना की है.

मुखडा है, सूनी सूनी सांस की सितार पर, भीगे भीगे आंसुओं के तार पर, एक गीत सुन रही है जिंदगी, एक गीत गा रही है जिंदगी.. वाह् क्या बात है. यहां संगीतकार ने बखूबी राग जैजैवंती का उरयोग किया है. गीत काफी सुंदर बना है और यादगार भी बना है. चाहे शंकर ने अकेले यह तर्ज बनाई है या दोनों ने साथ मिलकर काम किया है, गीत अनोखी ताजगी लेकर आया है इतना तो स्वीकार करना पडेगा.

सन 1947 से शंकर जयकिसन साथ साथ काम करते रहे. गीतकार के शब्दों में कहें तो फिल्म संगम की यह पंक्ति याद आ जायेगी. दो जिस्म मगर एक जान हैं हम... फिल्म संगीत में इन दोनों ने आपादमस्तक क्रान्ति कर दी. एक सौ साजिंदों के साथ सूरों का जो झंझावात इन्हों ने सर्जा वह पिछली पीढी के और आनेवाली पीढी के सभी संगीतकारों के लिये एक आदर्श बन गया. शंकर जयकिसन के बाद कल्याणजी आणंदजी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने भी बडे बडे ओरकेस्ट्रा के साथ संगीत सर्जन किया. यह दोनों जोडी ने काम का आऱंभ शंकर जयकिसन के साजिंदों के रूप में किया था. 

जयकिसन के अकाल देहांत के बाद शंकर अकेले रह गये फिर भी बिना हारे बिना थके काम करते रहे और करीब करीब पचपन फिल्मों में संगीत परोसा.  उन के परिश्रम को भाग्य का साथ नहीं मिला यह हकीकत का स्वीकार करना पडेगा. वैसे भी बहुत परिवर्रतन हो चूका था. पूरा माहौल बदल चूका था. लेकिन शंकर द्रढ मनोबल से काम करते रहे. अगले अध्याय से शंकर के सर्जन की बात शुरू करेंगे.


Comments