शंकर जयकिसन-92
भारतीय संगीत के बहुत से राग ऐसै भी हैं जो एक से अधिक अंग से गाये जाते हैं. संगीत का प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एसा ही एक राग है जैजैवंती. थोडे से विद्वान इसे जयजयवंती भी कहते हैं. इस राग को देश और बागेश्री इस दो रागों के अंगों से भी गाया बजाया जा सकता है.
सीखों के सर्वोच्च धऱ्मग्रंथ गुरु ग्रंथसाहब में लिखा है कि यह राग जयजयवंती राग बिलावल और राग सोरठ से समन्वय से बना है. इस राग में दो गंधार और दो निषाद होते हैं और नी सा ध नी रे... से यह राग प्रकट होता है. बहुत ही मधुर राग है और हमारे संगीतकारों ने फिल्मों में भी इस राग में कर्णप्रिय गीत दिये हैं. संगीतकार मदन मोहन ने फिल्म देख कबीरा रोयामें बैरन हो गयी रैना..गीत दिया था तो नौशाद ने फिलम मुघले आझम में जब रात है ऐसी मतवाली... गीत दिया था.
शंकर जयकिसन ने भी इस राग पर आधारित थोडे गीत दिये हैं और यह सभी गीत यादगार बने हैं.
सर्वप्रथम शंकर जयकिसन ने इस राग पर आधारित गीत दिया फिल्म सीमा में. पिछले अध्यायों में इस गीत के बारे में मैंने ईशारा किया था. लता की आवाज में वह गीत था मनमोहना बडे जठे.. लता की रियाझ से कसी हुयी आवाज, तर्ज की खूबीयां ओर बारह मात्रा के एकताल में निबद्ध स्वरनियोजन.सब से बडी बात तो यह कि भारतीय संगीत की अभ्यासी ऐसी अभिनेत्री नूतन का इस गीत पर अभिनय... सब मिलाकर एक बेमिसाल गीत हमको मिला है. लता ने अपनी आवाज की खूबीयां विविध हरकतों से इस गीत में परोयी है. आलाप, तान, शब्दों का संवेदन आदि सब कुछ इस गीत में महेसूस होता है. उस्ताद रईस खान की सितार, अब्दुल करीम के तबले और लता की आवाज का त्रिवेणी संगम इस गीत में हैं.
वैसे तो यह गीत ईश्क-ए-हकीकी अर्थात् अध्यात्म रस से भरपुर है. भगवान श्री कृष्ण को संबोधित कर के यह गीत लिखा गया है लेकिन इस गीत को आप ईश्कःए-मजाती अर्थात् संसारी नायक नायिका के साथ भी संलग्न कर सकते हैं. यह इस गीत की विशेषता है. जयजयवंती आधारित दूसरे गीतों की बात अगले अध्याय में करेंगे.
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