आधुनिक राग भी खूबी से आजमाया

शंकर जयकिसन-91

 


गीतकार शैलैन्द्र, शंकर जयकिसन और मूकेश

-------------------------------------------------------------

फिल्मों में अक्सर प्राचीन रागों का इस्तेमाल होता रहा है. यमन, पहाडी, भैरवी, पीलु, मालकौंस, शिवरंजनी वगैरह राग ज्यादा सुनने में आता है. कभी कभार आधुनिक माने गये राग भी सुनने मिले हैं. ऐसा  एक अत्यंत मधुर प्रयोग शंकर जयकिसन ने भी किया है. 

आधुनिक माने गये उस राग का नाम है मारुबिहाग. यह राग पिछले सौ डेढ सौ साल में अवतरित हुआ ऐसा विद्वानों का मत है. आग्रा घराने के विद्वान गायक पंडित श्रीकृष्ण रातांजनकर ने इस राग को लोकप्रिय बनाया ऐसा कहा जाता है. यह पंडित रातांजनकर आफताब-ए-मौसिकी उस्ताद फैयाझ खान साहब के शागिर्द थे. यह वही फैयाझ खान है जिन्हों ने कुंदन लाल सहगल को बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय ठुमरी (रागिणी भैरवी) सीखायी थी ऐसा माना जाता है.

मारुबिहाग को बिहाग राग का एक प्रकार माना गया है लेकिन रियाझी गवैया इस राग में आप को नंद राग का ऐहसास भी करा सकता है. थोडा सा फर्क यह है कि बिहाग की तुलना में मारुबिहाग में तीव्र मध्यम का प्रयोग अधिक किया जाता है.  

शंकर जयकिसन ने और भी एक जबरदस्त प्रयोग इस गीत में किया है. शास्त्रीय राग आधारित गीतों के लिये अक्सर मन्ना डे या मुहम्मद रफी फिट माने गये थे. अपवाद रूप कभी कभी किशोर कुमार से भी राग आधारित गीत गवाये गये हैं. राग आधारित गीतों के लिये न जाने क्यूं ज्यादातर संगीतकार मुकेश को फिट नहीं मानते थे. 

लेकिन यहां शंकर जयकिसन ने मूकेश की आवाज पसंद की है और ऐसी महेनत मूकेश से करवायी है कि सुननेवाले को यकीन हो जाता है कि यह गीत सिर्फ मूकेश के लिये ही है और सिर्फ मूकेश ही इस गीत को न्याय दे सकते हैं. फिल्म थी एक फूल चार कांटे. नायक अपनी महेबूबा का वर्णन करता है ऐसा भाव इस गीत में है. आईये अब इस गीत का मजा लेते हैं.

गीत है - मतवाली नार ठुमक ठुमक चली जाय, इन कदमों पे किस  का जिया न लहेराय... शैलेन्द्र ने बडे संयम के साथ इस गीत में नायिका का वर्णन किया है. 

पहले अंतरे में कहा है- फूल बदन मुखडा युं दमके, ज्यूं बादल में बिजली चमके, गीत सुनाये तू छम छम के, ललचाये, छूप जाये, आय़ हाय... मतवाली...

दूसरे अंतरें में नायक गाता है- ये चंचल कजरारी आंखें, यह चित्तचोर शिकारी आंखें, गयी दिल चीर कटारी आंखें, मुसकाये, शरमाये, झुक जाये... मतवाली...

तर्ज में अनोखी ताजगी है. दत्ताराम ने ढोलक पर मजेदार कहरवा बजाया है और सुननेवाले मूकेश के साथ बहे जाते हैं. आंखें बंध कर के यह गीत सुनिये तो एक सुंदर युवती का कल्पनाचित्र आप के सामने खडा हो जाता है.

गीतकार ने शब्दों में गजब का संयम बर्ता है. फिर भी नायिका की सुंदरता प्रकट होती है. तर्ज और लय भी काफी खूबसुरत है. वाद्यवृन्द का भी यथेच्छ उपयोग किया गया है. शंकर जयकिसन प्राचीन रागों के साथ आधुनिक माने गये रागों का भी किस तरह चयन करते थे उसका उत्तम नमूना यह गीत है. वैसे तो फिल्म सूरज में भी शंकर जयकिसन ने इस राग पर आधारित गीत दिया है. उस गीत की बात फिर कभी.

          


Comments