शंकर जयकिसन-90
फिल्म संगीत के शहनशाह शंकर जयकिसन के राग आधारित गीतों की बात करते करते अचानक ऐसी एक बात मेरे ध्यान में आयी जो आप सभी के साथ शेर करना चाहुंगा. वैसे पिछले अध्यायों में भी मैंने कहा था कि एक राग का एक से अधिक वैविध्य होता है. सिर्फ एक गायक की बात लें तो भी यह आप के ध्यान में आयेगा. अब मान लीजिये कि आप पंडित भीमसेन जोशी को सुन रहे हो. वे राग मालकौंस गा रहे हैं. एक से अधिक महफिल में आप सुनिये. गायक वही है, राग भी वही है लेकिन हर बार मालकौंस का नया रूप आप के सामने आयेगा.
आज जिस राग आधारित गीतों की बात मैं करने जा रहा हुं उस राग को उपशास्त्रीय संगीत में ज्यादा प्रस्तुत किया जाता है. ठुमरी, दादरा, चैती, होरी इत्यादि गीत स्वरूपो में यह राग का उपयोग होता रहा है. राग है पीलु. यदि आप शास्त्रीय संगीत के चाहक हैं तो आप ने राग पीलु में पतियाला घराने के उस्ताद बडे गुलाम अली खान साहब से कटे ना बिरहा की रैन ठुमरी इस राग में सनी होगी. सभी बडे गवैयों ने इस राग में ठुमरी गायी है. शंकर जयकिसन का कमाल यह है कि एक ही फिल्म में तीन गीत राग पीलु में है. तीनों गीतों का वैशिष्ट्य अलग है. तीनों गीतों के रंग अलग है.
मोहन सहगल निर्देशित फिलम नई दिल्ही एक बढिया कोमेडी फिल्म थी. किशोर कुमार और वैजयंतीमाला ने इस फिल्म में मुख्य भूमिका की थी अक्सर जीवन दर्शन पर आधारित श्रेष्ठ गीत देनेवाले शैलेन्द्र ने यहां दो मस्त रोमान्टिक गीत दिये हैं. तीसरा गीत हसरत जयपुरी का है. तीनों ही गीत राग पीलु में है. लेकिन एकदूसरे से बहुत ही अलग है.शैलेन्द्र के दोनों ही गीत किशोर कुमार की आवाज में है. मिलते ही नजर, आप मेरे दिल में आ गये, अफसोस है कि आप भी मुश्किल में आ गये... यह गीत कहरवा ताल में निबद्ध है. दूसरा गीत मनमोहक और मनोरंजक है. वह है नखऱेवाली... आप ही देखिये, दोनों गीत पीलु राग में होते हुए भी दोनों का स्वरूप कितना अलग है... नखरेवाली में किशोर कुमार ने अपने कंठ की सारी खूबीयां डाल दी है. यह गीत विदेशी दादरा ताल में है.
और एक गीत पीलु राग पर आधारित है. ऐसा कहा जाता है कि जयकिसन जब छोटे से थे तब उन के वांसदा गांव में एक भजन गुजराती में अक्सर सुनने में आता था. जयकिसन को उस भजन की तर्ज बहुत ही पसंद थी. एक विद्वान का कहना है कि वह भजन का ही हिन्दी अनुवाद इस फिल्म गीत के लिये किया गया था. जो भी हो, यह गीत भी अद्भुत है.
राग पीलु, ताल खेमटा. मुखडा है, मुरली बैरन भयी रे कन्हैया तोरी मुरली बैरन भयी, बावरी मैं बन गयी रे कन्हैया तोरी मुरली बैरन भयी... सुननेवाला त्वरित ही अभिभूत हो जाता है ऐसे तर्ज और लय यहां जयकिसन ने बनाये हैं.अब फिर से एक बार याद कर लीजिये. एक ही राग है. तीन तीन गीत इस राग में होते हुए भी तीनों गीत एक दूसरे से काफी अलग बने हैं और तीनों गीत यादगार भी बने हुए हैं. यह है शंकर जयकिसन के संगीत का जादु !
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