राग एक, संवेदन अनेक...!

 शंकर जयकिसन-89



फिल्म संगीत के स्वर्ण युग के प्रणेता शंकर जयकिसन के संगीत का आस्वाद हम ले रहे हैं.  एक विशेष बात आज प्रस्तुत करने जा रहा हुं. 1950 और 1960 के दशक में हर महिने कम से कम आठ दस नयी फिल्में रिलिझ होती थी. कभी कभार ऐसा होता था के चार पांच फिल्मों में शंकर जयकिसन का संगीत होता था. 

अब जरा ध्यान दीजिये. हरेक फिल्म की कहानी, अदाकार, माहौल, शूटिंग के लोकेशन, निर्देशक, कथाकार अलग अलग होते थे. ऐसा होना स्वाभाविक भी था. लेकिन शंकर जयकिसन की एक खूबी ऐसी रही कि एक ही राग अलगल अलग फिल्मों में अलग अलग संवेदन को व्यक्त करता था. अब ऐसे थोडे गीतों का आस्वाद लेंगे. हो सकता है कि थोडे से गीतों की बात अगले अध्यायों में आ गयी हो, लेकिन यहां पुनरावर्तन करते का कारण यह है कि एक राग के अधिक भाव प्रागट्य को समजना जरूरी हो जाता है.

अब मान लीजिये कि आपने अपने बच्चे को किसी संगीत क्लास में भरती किया है. अगर बच्चा संगीत की परीक्षा देकर संगीत विशारद होना चाहता है तो संगीत शिक्षक उसे सब से पहले राग भूपाली सीखाते हैं. भूपाली में सिर्फ पांच शुद्ध स्वर है, सा रे ग प ध. शंकर जयकिसन ने ऐसे सीधे सादे राग में जो वैविध्य दिया है वह काबिल-ए-दाद है. आईये, उन गीतों का आस्वाद लेते हैं.

सब से पहले 1955-56 में राज कपूर और नर्गिस की अदाकारी में आयी फिल्म चोरी चोरी की बात लेते हैं. एक लडकी अपने परिवारवालों से नाराज होकर घर छोडकर नीकली है. अब बो आझाद पंछी है. मुक्त हवा में घूमती है. यहां शंकर जयकिसन ने भूपाली राग में जो गीत दिया है वह यह रहा- पंछी बनुं ऊडती फिरुं मस्त गगन में आज मैं आझाद हुं दुनिया के चमन में.. छः मात्रा के खेमटा ताल में यह गीत गजब की मधुरता से भरा हुआ है.



तत्पश्चात् एक दशक बाद आयी फिल्म आम्रपाली में भूपाली पर आधारित एक गीत शंकर जयकिसन ने दिया. उस का संवेदन विरह का है. नील गगन की छांव में दिन रैन गले से मिलते हैं, दिल पंछी बन ऊड जाता है, हम खोये खोये रहते हैं... बाद में आलाप. इस गीत में चोरी चोरी फिल्म के गीत से अलग संवेदन है. आठ मात्रा का ताल कहरवा (धा गी ना तीं नाक् धी न् ) मे यह गीत निबद्ध है.

आम्रपाली के बाद आयी और एक फिल्म में नायिका अपने प्रियतम को दूसरे दीन मिलने का वादा करती है और वह वादा जपानी भाषा में हैं. याद आया न आप को ? वह जपानी शब्द था सायोनारा. नायिका गाती है सायोनारा सायोनारा वादा निभाउंगी सायोनारा इखलाती और बलखाती कल फिर आउंगी सायोनारा.... यहां भी राग भूपाली है लेकिन संवेदन अलग है. यहां भी कहरवा ताल है लेकिन वह पाश्चातय शैली का है.

और एक गीत भूपाली आधारित पेश करता हुं. वह है फिल्म दिवाना (1967-68) का.. यहां मूकेश की आवाज है. मुखडा है अय सनम जिस ने तुझे चांद सी सूरत दी है, उसी मालिक ने मुझे भी तो मुहब्बत दी है... यहां छः मात्रा का दादरा ताल पसंद किया गया है. यदि तुम्हारे पास सुंदरता है तो मेरे पास मुहब्बत है ऐसा दावा नायक करता है.

अब इन चारों गीतों को गुनगुनाईये और देखिये कि एक ही राग भूपाली में शंकर जयकिसन ने कैसा कमाल किया है. ऐसे दूसरे गीत भी आप ढूंढ सकते हैं. एक राग में एक से अधिक संवेदन पेश करने का यह हुनर काबिल-ए-दाद है. ऐसे दूसरे दो तीन रागों की बात अब हम करेंगे.

   


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