शंकर जयकिसन-88
डरावनी घाटियां, खूंखार डाकु, निर्जन प्रदेश और बरछट कथावस्तु. राज कपूर की जिस देश में गंगा बहती है का यह था माहौल. जब पहली बार राज कपूरने इस कथा का सार शंकर जयकिसन को सुनाया तब शंकर ने थोडी सी नाराजी से पूछा था, इस में संगीत के लिये अवकाश कहां है ?
जवाब में राज कपूर सिर्फ मुस्कुराये थे. उन की पूरी टीम अर्थात् हसरत जयपुरी, शैलेन्द् और शंकर जयकिसन सभी हाजिर थे. बाद में सस्मित राज कपूर बोले, रोमान्टिक फिल्मों में संगीत देना आसान है. जरा सी हट के कहानी होवे तब संगीतकारों की कसौटी होती है. ऐसे में जब आप कुछ कर दिखाओ तो उस का मजा कुछ और है.
और शंकर जयकिसन ने इस चैलैंज को ऊठा लिया था और सच में अनोखा संगीत परोसा था. वैसै राज कपूरने अपने कलाकारों को भी एक किस्म का चैलेंज दिया था. राका का पात्र करनेवाले प्राण से पूछा था, आप ने अपने पात्र को यादगार बनाने के लिये कुछ सोचा है ?
जवाब में प्राण ने हाथ की एक ऊंगली से अपने गले की एक तरफ से दूसरी तरफ कमीज की कोलर पे घुमाइ थी. राज कपूर खुश हो गये थे. आप ने भी परदे पर यह अदा देखी होगी. उस से प्राण यह सूचित करना चाहते थे कि डाकु की जिंदगी मे दो ही बात होती है, या तो वो किसी का गला काट देता है या फिर पकडे जाने पर उसे फांसी हो जाती है...
अब बात करें इस फिल्म के दूसरे गीतों की. इस फिल्म में हसरत का सिर्फ एक गीत था. बाकी के सभी गीत शैलेन्द्र की कमाल थे. अब तक हम ने दो तीन मुख्य गीतों की बात की है. अब बाकी रहे गीतों का आस्वाद लें. शंकर जयकिसन की लाडली भैरवी में कथानायक का परिचय है. मेरा नाम राजु घराना अनाम बहती है गंगा जहां मेरा धाम.. इस गीत में संगीतकारों ने डफ बजाया है जो कि दत्ताराम के हाथों का जादु है.
बाकी रहे चार पांच गीतों की सब से बडी खूबी यह है कि यह सभी गीत छः मात्रा के खेमटा ताल में निबद्ध है फिर भी सभी गीत एक दसरे से काफी अलग महसूस होते हैं. धाग् धीना गीन ताक् धीना धीन जैसे बोल हैं खेमटा के. संगीतकारो नें ताल एक ही रखा है लेकिन बोल के वजन बदलते रहते हैं अतैव प्रत्येक गीत अनोखा बन गया है. पांच में से दो गीत पर लोकसंगीत का प्रभाव है, एक गीत भैरवी में निबद्ध है.
शीर्षक गीत होटों पे सच्चाई रहती है... यह गीत स्थानिक लोकसंगीत पर आधारित है और ताल के बोलों का वजन गीत को अधिक आस्वाद्य बनाता है.
एक समूह गीत भैरवी में निबद्ध है. इस गीत में भी ताल के बोलों का वजन उस को दूसरे गीतों से अलग बनाता है. यह समूह गीत प्यार मुहब्बत की बात करता है. हम भी हैं तुम भी हो, दोनों हैं आमने सामने, देख लो क्या असर कर दिया प्यार के नाम ने... मजे की बात यह है कि इस गीत में लता, गीता दत्त, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर और मूकेश की आवाजें हैं. लताने जिस तरह से असर शब्द को विविध हरकतों से भर दिया है वह इस गीत को खास थनगनाट से भर देता है.
एक गीत सिर्फ लता की आवाज में और एक गीत लता एवं आशा की आवाज में हैं. लता की आवाज में प्रस्तुत गीत में अरबी संगीत का प्ऱभाव और अत्यंत हलका सा राग धानी का प्रभाव महसूस होता हे. इस गीत के बोल हैं हो मैंने प्यार किया, ओय होय क्या जुर्म किया... इस गीत सुननेवालों को भी पैर से ताल देने पर मजबूर कर देता है. यही तो है शंकर जयकिसन के संगीत की विशेषता. वे आम आदमी को भी खुश कर देते हैं.
दूसरा गीत कम्मो (पद्मिनी ) और उस की सहेली पर फिल्माया गया है. उस के बोल हैं, क्या हुआ, .यह मुझे क्या हुआ... य़ह गीत भी नृत्यगीत है और चाहे परदे पर मजा लो या ओडियो सुनो, सुननेवाले को अभिभूत कर देता है.
यहां एक बात पर गौर करना चाहिये. राज कपूर की फिल्मों के संगीत में अवश्य राज कपूर का भी प्रदान रहता आया है. लेकिन जिस देश में गंगा बहती हैं के वक्त राज कपूर बहुत ही व्यस्त था और इस फिल्म का संगीत सही मायने में शंकर जयकिसन का ही बना है. हो सकता है कि राज कपूर ने भी अपने आप को अलग रखा हो कि देखें तो सही कि मैंने जो चैलेंज इन दौनों को दिया हैं उस का क्या परिणाम मिलता है. कहने की जरूर नहीं की शंकर जयकिसन ने इस चैलेंज को बहेतरीन रूप में स्वीकार कर लिया और अफलातुन संगीत परोसा.
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