एकमेव और बेजोड गीत- आ अब लौट चलें...

 शंकर जयकिसन-86


एक तरफ शस्त्रसज्ज पुलिस दल से भरी वान, दूसरी तरफ खुले पैर या फटे तूटे जूतों के साथ और जैसी तैसी घऱवखरी के साथ पैदल या बैलगाडी में बैठे बागी और तीसरी और हाथ में पुराना छाता और डफ लिये जिप्सी जैसा गायक राजु... बागीयों को छूपानेवाली चंबल की डरावनी घाटियां  और इन सब के बीच शूटिंग के लिये कैमरा आदि चीजें. पुलिस की गणवेश में सज्ज और बागीयों के वेश में सज्ज दो ढाई हजार कलाकारों के बीच हो रहा है फिल्म का शूटिंग.

अब इस गीत में भी शंकर जयकिसन ने करीब करीब सौ साजिंदे रखे हैं. ऐसा क्यों किया यह बात सोजने जैसी है. राका (अभिनेता प्राण)ने बागीयों के मन में एक बात रोप दी है कि अगर राजु के कहने पर तुम लोग आत्मसमर्पण करोगे तो हो सकता है कि तुम सब को फांसी लग जाये. अतैव बहुतसे बागी दुविधा में हैं कि समर्पण करें या न करें. 

दूसरी और वरिष्ठ पुलिस अफसर कभी भी गोली चलाने के लिये तैयार है. और तीसरी और राजु को अपने आप पर भरोसा है कि मेरे कहने पर बागी समूह अवश्य समर्पण करेंगे. ऐसी तीन अलग अलग मानसिकता को संगीत के जरिये प्रस्तुत करनी है. यह एक बहुत बडा चैलेंज था. लेकिन शंकर जयकिसन इस चैलेंज के लिये तैयार थे.

 



इन्हों ने करीब करीब पैंतीस वोयलिन्स, करीब आधा डझन लयवाद्य, आघा डझन साईड रिधम्स इत्यादि तैयार रखे थे. साथ में थे पार्श्वगायक मूकेश और लता. शूटिंग शुरु होने से पहले हवा में एक जबरद्सत तनाव महसूस होता है. मूकेश की आवाज में गीत का आरंभ होता है.

आ अब लौट चलें, नैन बिछायें, बांहे पसारे, तुझ को पुकारे देश तेरा... और तत्क्षण वोयलिन्स का झंझावात अनोखा माहौल पैदा कर देता है... बाद में लता की आवाज में नायिका कम्मो (पद्मिनी) आ..जा... रे... की पुकार करती है. तार सप्तक की गांधार से वह आलाप तीव्र गति से अवरोह के रूप में ऊतरता है ओर मंद्र सप्तक में रूकता है.

अब यहां और एक बात कहना चाहुंगा. शंकर जयकिसन की सर्जन प्रतिभा का जादु यहां है. यह गीत एक ऐसे राग में निबद्ध किया गया है जिस की हम कल्पना भी नहीं कर सकते. यदि आप ने फिल्म गोदान का होरी गीय सुना हो तो आप के ध्यान में यह बात आयेगी. मुनशी प्रेमचंद की एक कहानी पर से फिल्म गोदान बनी थी. गोदान में सितार सम्राट पंडित रविशंकर का संगीत था. आपने होरी खेलत नंदलाल बिरज में... गीत दिया था.

भारतीय संगीत में होरी-चैती वगैरह गीत राग काफी में प्रस्तुत होते हैं. काफी नाम का थाट भी है. काफी में गंधार और निषाद कोमल रहते हैं. यह शृंगार प्रधान राग माना गया है. अब जिस देश में गंगा बहती है फिल्म के इस गीत में शृंगार तो कहीं भी नहीं है. यहां तो एक जिप्सी जैसे भटकनेवाले गायक राजु के दिल की पुकार है, एक आर्तनाद है, एक आर्जव और बिनती है कि गलत काम करना छोडकर वापस संसार में चलो...

शंकर जयकिसन ने राग काफी मे इस गीत को स्वरबद्ध किया है और साबित किया है कि परंपरा के विरुद्ध जाकर भी राग काफी का विनियोग किया जा सकता है. राज कपूर को जो माहौल और हवा में जिस प्रकार का तनाव चाहिये था वह इस गीत के संगीत की सहाय से शंकर जयकिसन ने पैदा किया है. राज कपूर को इस गीत के संगीत से बहुत ही संतोष हुआ था ऐसा उन के सहायकों ने मिडियावालों को कहा था. 

इस गीत के लिये शंकर जयकिसन, गीतकार शैलेन्द्र, कैमरामेन राधु करमाकर और खुद राज कपूर को जितना सलाम करें वह कम है. ऐसे गीत बार बार बनते नहीं.

इस फिल्म के वैसे ही और एक झंझावाती गीत की बात अगले अध्याय में करेंगे.


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