शंकर जयकिसन-85
फिल्म मेरे हुजूर का वह कथानायक अख्तर हुसैन अब मौत नहीं मागता. वह लंबी जिंदगी मागता है ताकि वह अपने अपराध का प्रायश्चित कर सके. सदैव तडपता रहे. हसरत ने लिखा है खलक पे जितने सितारे हैं वो भी शरमाये, ओ देनेवाले मुझे इतनी जिंदगी दे दे, यही सजा है मेरी मौत भी आये न मुझे, किसी को चैन मिले मुझ को बेकली दे दे...
यहां तक किसी लयवाद्य के बगैर तार सप्तक में पूरी बुलंदी से मुहम्मद रफी ने गाया. अब गीत शुरु होता है. छः मात्रा के दादरा ताल में मुखडा ऊठता है- गम ऊठाने के लिये मैं तो जिये जाउंगा, सांस की लय पे तेरा नाम लिये जाउंगा..
क्या कल्पना की है हसरत ने, सांस की लय पे प्रिय पात्र का नाम लेते रहना. अर्थात् दिल की प्रत्येक धडकन के साथ नाम लेते रहना. सिर्फ दो अंतरे हैं इस गीत में लेकिन मानो हसरत ने अपनी कल्पना का निचोड यहां डाल दिया है. नायक के प्रायश्चित को शब्दों के सहारे गीतकार ने सजीवन कर दिया है.. आइये आगे बढते हैं,
सल्तनत को याद करते हुए अख्तर गाता है, हाय तुने मुझे उल्फत के सिवा कुछ न दिया और मैंने तुझे नफरत के सिवा कुछ न दिया, तुझ से शर्मिंदा हुं अय मेरी वफा की देवी, तेरा मुजरिम हुं, मुसीबत के सिवा कुछ न दिया...
यह गीत रेडियो पर बजता है, सल्तनत अपने घर में रोती हुयी, बिलखती हुयी सुनती है, नवाब सलीम अपनी कार ड्राइव करते हुए सुनता जा रहा है ऐसा द्रश्य परदे पर चल रहा है,
अख्तर आगे कहता है, तू खयालों में मेरे अब भी चली आती है, अपनी पलकों पे उस अश्कों का जनाजा ले कर, तूने निंदें करी कूरबान मेरी राहों पर, मैं नशे में रहा गैरों का सहारा ले कर...
क्या कवि कल्पना है- अश्कों का जनाजा... नायक के दिल की तडपन को कैसे बेमिसाल तरीके से हसरत जयपुरी ने प्रस्तुत किया है. और शंकर जयकिसन की तारीफ किस शब्दों में करें ? गीत के प्रत्येक शब्द को अपने स्वरों की ताकतसे इन्होंने सजीवन किया है. प्रत्येक शब्द दर्शक और श्रोता के दिलोदिमाग पर छा जाता है. राग बैरागी में रहे संवेदन को शंकर जयकिसन ने जिस तरह से साकार का है, ऐसा दूसरा स्वरनियोजन फिल्म संगीत में कहीं भी नहीं मिलेगा. सिर्फ स्वरनियोजन नहीं, पूरा वाद्यवृन्द इस गीत को हृदयस्पर्शी और मर्मभेदी बनाने में लग गया है. शंकर जयकिसन के ऐसे बहुत से स्वरनियोजन हैं जिस की प्रशंसा करते हुए समीक्षक थक जाते हैं.
वी. शांताराम जैसे युगसर्जक फिल्म निर्माता जिसे जम्पींग जैक कहते थे ऐसे अभिनेता जितेन्द्र ने भी इस गीत को परदे पर जबरदस्त संवेदन के साथ प्रस्तुत किया था. फिल्म मेरे हुजूर जब थियेटरों में लगी थी तब दर्शक और समीक्षर सभी ने इस फिल्म के लिये जितेन्द्र को सराहा था.
Comments
Post a Comment