फेसबुक के प्यारे दोस्तों, माफ कीजियेगा, गलती से झुक गया आसमान के गीतों की बात करनेसे पहले सूरज की बात प्रस्तुत हो गयी. क्षमा चाहता हुं.
शंकर जयकिसन-81
जैसे कि मैं पहले बता चूका हुं झुक गया आसमान फिल्म एक अमरिकी फिल्म हियर कम्स मिस्टर जोर्डन (1941) का हिन्दी रुपांतर था. वह जमाना था जब राजेन्द्र कुमार की फिल्में सिर्फ उस के नाम से हिट हो जाती थी. भाग्य विधाता उस पर इस कदर महरबान थी कि वह अगर रेत में भी हाथ डालता था तो वह सोना हो जाती थी.
यह फिल्म एक फेन्टसी फिल्म थी. पिछले अध्याय में हमने उस की कथा का सार देखा था. एक समान नाकनक्शेवाले दो युवा थे. यमदूत भूल से एक युवा को यमलोक में ले जाते हैं. बाद में अपनी भूल का अहसास होने पर उस युवक को वापस पृथ्वी पर ले आते हैं और दूसरे यूवक को ले जाते हैं.
राजेन्द्र कुमार के साथ सायराबानु हीरोईन थी. इस फिल्म में हसरत जयपुरी के चार गीत, शैलेन्द्र के तीन गीत और एस एच बिहारी का एक गीत था. सभी के सभी गीत हिट हुए थे. हम यहां दो चार हिट गीतों का आस्वाद लेंगे. सब से नटखट और रूठना मनाना जैसे संवेदन को प्रस्तुत करनेवाला गीत यह था- कहां चल दिये इधऱ तो आओ, मेरे दिल को न ठुकराओ, भोले सितमगर मान भी जाओ...
शब्दों का मजा यहां है. गीतकार ने सितमगर शब्द के साथ भोले शब्द को रखकर एक विशिष्ट नजाकत का स्रर्जन किया है. वर्ना सितमगर कभी भोले होते हैं क्या ? मुहम्मद रफी ने जिस तरह से कहां चल दिये और इधर तो आओ शब्दो को गाया है उस में दो संवेदन ऊभरे है- पहला संवेदन रुढने का है और दूसरा मनाने का है. यह रफी की खूबी है. वह अपने कंठ का इस तरह से विनियोग कर के गीत को और भी खूबसुरत बना देते थे.
वैसा ही और एक नटखट गीत लता की आवाज में है. नायिका मानो ईकरार करती है- उन से मीली नजर तो मेरे होश ऊड गये. लताजी की भी यह एक जन्मजात प्रतिभा थी. फिल्म की हीरोइन की आवाज के साथ लताजी अपना आवाज मिला लेते थे. लताजी के स्वरलगाव से ही पता चल जाता था कि यह गीत किस हीरोईन के लिये गाया होगा. शब्दों को काकु प्रयोग से लताजी और भी लचीले बना देती थी.
प्रिय पात्र कभी कभी मौजमस्ती में एक दूसरे पर दोषारोपण करते हैं. मेरी नींद तुम्हारी वजह से ऊड गयी ऐसा कह के मीठा गुस्सा दिखाते हैं. इस संवेदन को प्रस्तुत किया इस गीत में. यह एक युगलगीत है जिस में मुहम्मद रफी और लताने अपनी आवाज दी है. मुखडा है- मेरी आंखों की नींद चुरा ले गया, तुम्हारे सिवा कौन, तुम्हारे सिवा कौन....
शैलेन्द्र की एक रचना मुझे ज्यादा पसंद है. मुझे ऐसा भी लगा है कि इस गीत में सुरावली से ज्यादा शब्दों का प्रभाव रहा है. हर प्रेमी एक ख्वाब देखता है कि मैं अपनी प्रियतमा के लिये कुछ करुं. हरेक प्रेमी ताजमहल तो नहीं बना सकता है लेकिन कुछ अनोखा करने का उस का इरादा होता है. शैलेन्द्र ने लीखा है- सच्चा है अगर प्यार मेरा सनम, होंगे जहां तुम, होंगे वहां हम, यह धडकने भी अगर जाये थम, जब भी पुकारो, सदा दैंगे हम... वाह् क्या बात है, कया जजबात है...
सच कहुं तो राजेन्द्र की हरेक फिल्म के प्रत्येक गीत के बारे में कुछ न कुछ लिखा जा सकता है. लेकिन, हम सदैव हिट गीतों की झलक का आस्वाद लेते रहे हैं. अतैव यहां रुक जाते हैं.
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