शंकर जयकिसन-77
पिछले अध्याय में हम राजेन्द्र कुमार की फिल्मों में शंकर जयकिसन के संगीत की बात कर रहे थे. इस अध्याय में राजेन्द्र कुमार की दो फिल्मों के संगीतका आस्वाद लेकर हम राजेन्द्र को बिदा करेंगे.
यह उन दिनों की बात है जब राजेन्द्र कुमार ज्युबिली कुमार के नाम से मशहूर था. उस की हरेक फिल्म सुपरहिट हो रही थी. उस वक्त उस की दो और फिल्में प्रस्तुत हुयी और सुपरहिट भी हुयी. इस में पहली फिल्म थी आयी मिलन की बेला. इस फिल्म का और एक आकर्षण यह था कि हरियाणा के कसरती जाट युवान धर्मेन्द्र ने इस फिल्म में नेगेटिव रोल किया था. आप उसे पेरेलल (नायक के समांतर) रोल भी कह सकते हैं सायराबानु हीरोईन थी. यह एक रोमान्टिक फिल्म थी.
दूसरी तरफ झुक गया आसमान एक अमरिकी फिल्म हियर कम्स मिस्टर जोर्डन (1941) की कथा पर आधारित थी और फन्टासी (Fantacy) जैसी थी. एक ही शक्लोसिकल वाले दो युवा है. एक का निधन हो जाता है. यमदूग गलती से दूसरे युवा को ले जाते हैं. यमलोक में पहुंचने के बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है, वे पृथ्वी पर वापस आते हैं. अपने शिकार को लेकर वापस चल जाते हैं. यह हुयी झुक गया आसमान की कथा.
दोनों फिल्मों की कथा के अनुरूप हलका फुलका और नटखट संगीत शंकर जयकिसन ने परोसा था. उन दिनों यह संगीत काफी लोकप्रिय भी हुआ था. राजेन्द्र कुमार की लोकमानस मे जो छबी (ईमेज) थी उसे ध्यान में रखकर और फिल्म की कथा को ध्यान में रखकर शंकर जयकिसन ने संगीत तैयार किया था.
सब से मधुर और दर्शक को डान्स करने की ईच्छा पैदा करे ऐसा शीर्षक गीत था आयी मिलन की बेला का... राग पहाडी पर आधारित यह गीत में ढोलक की थाप बखूबी बजती थी. खुद शंकर तबले के निष्णात थे अतैव इस गीत में लयवाद्यों का बहेतर उपयोग हुआ है और परदे पर यह गीत डान्स गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया था. बन के हर फूल कली मुस्कुरायी शब्दो में कवि कल्पना की चरमसीमा थी.
वैसे तो इस फिल्म के सभी गीत हिट थे. यहां हम सिर्फ दो तीन गीतों की झलक देखेंगे. हसरत जयपुरी ने यहां नायिका के सौंदर्य को जिस नजाकत से पेश किये हैं, ठीक उसी नजाकत से मुहम्मद रफीने गीत गाया है. वह गीत यह रहा- तुम कमसीन हो, नादां हो, भोली हो...
वैसी ही नजाकत शैलेन्द्र के इस रुमानी गीत में है, ओ सनम तेरेहो गये हम, प्यार में तेरे खो गये हम, मिल गया मुझको अय सनम, जिंदगी का बहाना ... मुहम्द रफी के इन दोनों गीतों में मुहब्बत का खुशीभरा अहसास प्रस्तुत हुआ है. वैसे भी राजेन्द्र कुमार को रफी की आवाज ही ज्यादा स्यूट होती थी.
इस फिल्म के दूसरे गीतों का आस्वाद अगले अध्याय में लेंगे.
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