दिल एक मंदिर के दुसरे गीतों का आस्वाद

 शंकर जयकिसन-76

इस के विपरीत एक गीत विरह गीत है. धर्मेश सीता की तसवीर के सामने गाता है, याद न जाए बीते दिनों की ... राग कीरवाणी पर आधारित यह गीत में कथानायक के दिल के जजबात अनोखे अंदाज में प्रस्तुत हुए है. ऐसा ही एक संवेदनशील गीत सीता के पात्र को मिला है. मैं धर्मेश के प्यार में थी यह बात मेरा पति जान चूका है. उस ने मुझे कहा भी है कि अगर मैं मर जाउं तो तुम धर्मेश के साथ शादी कर लेना.  


ऐसे में एक रात सीता सितार छेडती है और गाती हे- हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठें हैं खो बैठें, तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ... राग तिलक कामोद पर आधारित यह गीत छः मात्रा के दादरा ताल में निबद्ध है. लताजी ने भाववाही स्वर में गाया है और मीना कुमारी ने अपने अजोड अभिनय से गीत को जीवंत किया है. 

भारतीय संगीत में राग आसावरी सुबह का राग माना गया है. लेकिन यहां शंकर जयकिसन ने राग आसावरी का कलात्मक उपयोग कर के रात्रि का एक गीत बनाया है. राग सुबह का, संवेदन रात्रि का. लीजिये आस्वाद उस गीत का. पति को धर्मेश और मेरे प्यार के बारे में पता चल चूका है. दूसरे दिन पति की शस्त्रक्रिया होने वाली है. पतिने कह दिया है कि अगर मैं मर जाऊं तो तुम धर्मेश के साथ शादी कर लेना. सीता दुविधा में है कि धर्मेश मुझ से बदला लेगा या मेरे पति को जीवनदान देगा. 

ऐसी कश्मकश में वह एक गीत गाती है- रुक जा रात ठहर जा रे चंदा, बीते ना मिलन की बेला, आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला.... तर्ज और लय में नायिका की मनोव्यथा जीवंत हुयी है.


एक शिशुगीत भी यहां है. अस्पताल में एक बेवा माता की खूबसुरत बच्ची है. उस के जन्मदिन पर सीता एक गीत सुनाती है- जुही की कली मेरी लाडली..

मैं मानता हुं कि दिल एक मंदिर के सभी गीत हिट थे. उस में भी शीर्षक गीत अजोड था. हृदय पर वज्राघात करने वाले उस गीत की सब से बडी खूबी समजने जैसी है. अक्सर ऐसा होता है कि पराकाष्ठा के समय फिल्म का अंत नजदीक है ऐसा जानकर दर्शकगण बैठक छोड कर बाहर नीकलने की कोशिश करता है. लेकिन हिन्दी फिल्म के ईतिहास में यह पहली औऱ शायद आखरी फिल्म थी जब लोग अदब के साथ अपनी बैठक पर बैठे रहते थे या खडे रहते थे. 

गीत ऐसे प्रसंग पर प्रस्तुत होता है जब डॉक्टर धर्मेश की एक प्रतिमा अस्पताल के प्रांगण में स्थापित की गयी है. धर्मेश की माताजी मोटरकार में आती है ओर राम एवम् सीता उन्हें आदर के साथ प्रतिमा के पास ले जातें हैं ओर माताजी धर्मेश की प्रतिमा को पुष्पहार अर्पण करती है. पार्श्वभूमि में मुहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर गाते हैं- दिल एक मंदिर है, प्यार की इस में होती हे पूजा, यह प्रीतम का घर है... गीत शुरू होने से पहले रफी की बुलंद आवाज में एक पंक्ति प्रस्तुत होती है- जाने वाले कभी नहीं आते, जानेवाले की याद आती है.

यह फिल्म दुनियाभर में जहां जहां प्रस्तुत हुयी वहां हर जगह इस गीत के वक्त दर्शक आदर के साथ खडे रहते थे. और बाद में आंखों में अश्रु के साथ गर वापस लौटते थे. राग जोगिया का ऐसा अद्भुत उपयोग बहुत कम बार फिल्मों में हुआ है ऐसा मेरा नम्र मंतव्य है.

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