राजेन्द्र कुमार को ज्युबिली कुमार बनाया

शंकर जयकिसन-74

 


1947 में देश के दो टुकडे होने के बाद एक पंजाबी युवक फिल्म निर्देशक बनने का ख्वाब लेकर बम्बई आया था. वह तो निर्देशक बनना चाहता था लेकिन भाग्य की देवी विधाता को कुछ और ही मंजूर था. फिल्म सर्जक किदार शर्मा ने दिलीप कुमार और नर्गिस की मुख्य भूमिकावाली फिल्म जोगन में उसे एक भूमिका करने का आदेश दीया. निर्देशक उस जमाने में जहाज के कप्तान माने जाते थे. उन की आज्ञा का पालन करना अनिवार्य था.

वैसे जोगन फिल्म में तो उस पंजाबी युवक की भूमिका की तरफ किसीने ध्यान नहीं दिया. लेकिन दूसरी फिल्म देवेन्दर गोयल की वचन से वह रातोंरात स्टार बन गया. बाद में उस की ढेर सारी फिल्मों ने सिल्वर ज्युबिली मनाई और वह ज्युबिली कुमार के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

जी हां, हम राजेन्द्र कुमार की बात कर रहे हैं. उस को सही मायने में ज्युबिली कुमार बनाया शंकर जयकिसन ने. वह कैसे इस सवाल का जवाब अब हम देंगे. देव आनंद की तरह राजेन्द्र कुमार को भी शंकर जयकिसन के पहले हिट संगीत का परिचय हो चूका था. उस ने संगीतकार रवि (वचन और चिराग कहां रोशनी कहां), एन. दत्ता (धूल का फूल) और वसंत देसाइ (तूफान और दिया एवम् गूंज ऊठी शहनाई) मे हिट संगीत क्या होता है उसका परिचय राजेन्द्र कुमार को हो चूका था. 

लेकिन उसे सही मायने में ज्युबिली कुमार बनाया शंकर जयकिसन ने. आप को याद तो होगा कि राज कपूर और शम्मी कपूर के बाद शंकर जयकिसन ने सब से अधिक राजेन्द्र कुमार की फिल्मों में संगीत परोसा. हालांकि राजेन्द्र कुमार आला दरज्जे का अभिनेता या डान्सर नहीं माना जा सकता, देवी विधाता उस पर जबरदस्त महरबान थी.



 इन्हों ने मुझे ज्युबिली कुमार बनाया, राजेन्द्र वैजयंती माला से कह रहे हैं

राजेन्द्र कुमार और शंकर जयकिसन ने साऊथ के फिल्म सर्जकों की हिन्दी फिल्मों में ज्यादा काम किया, थोडी सी फिल्में बम्बई के निर्माताओं की भी थी, जैसे कि रामानंद सागर की आऱझू और राज कपूर की संगम.

राज कपूर ने तो गोपाल की भूमिका दिलीप कुमार को ओफर की थी. पहले इन दोनों महान कलाकारों ने महबूब खान की अंदाज (1952) में एक साथ काम किया था. राज कपूरने दिलीप से कहा कि संगम के दो मेंसे जो भी रोल तुम्हें पसंद है तुम करो, लेकिन न जाने क्यूं, दिलीप कुमार ने संगम की भूमिका का स्वीकार नहीं किया. अतैव वह रोल राजेन्द्र कुमार को मिला. फिल्म के अंत में राजेन्द्र कुमार का पात्र आत्महत्या कर लेता है, इस लिये दर्शकों की सहानुभूति भी राजेन्द्र को मीली. अब हम आगे बढें.

शंकर जयकिसन और राजेन्द्र कुमार ने 1961 में पहलीबार साथ साथ काम किया. उस वर्ष में राजेन्द्र की दो फिल्में आयी- आस का पंछी और ससुराल.

 


यहां मजा देखिये. अन्य संगीतकारों ने राजेन्द्र के लिये इस फिल्म के पहले मुहम्मद रफी को पसंद किया था. शंकर जयकिसन ने मूकेश की आवाज पसंद की. रुठने मनाने के उस गीत में लता और मूकेश ने अनोखी जमावट की. इतना पढने के बाद आप को भी वह गीत याद आ गया होगा- तुम रुठी रहो, मैं मनाता रहुं कि इस अदा पे और प्यार आता है, थोडे शिकवे भी हो, कुछ शिकायत भी हो, तो मजा जीने का और भी आता है...

हसरत जयपुरी के नटखट शब्दों के वैसी ही नटखट तर्ज और खेमटा ताल में निबद्ध कर के शंकर जयकिसन ने गीत को हिट बनाया.

इस फिल्म में शंकर जयकिसन ने और एक तजुर्बा किया. फिल्म के शीर्षक गीत के लिये हेमंत कुमार जैसे कंठवाले गायक सुबीर सेन को लिया- दिल मेरा एक आस का पंछी, ऊडता है नीले गगन में, पहुंचेगा एक दिन कभी तो चांद की ऊजली जमीं पर ...यह गीत भी हसरत की रचना थी. इस गीत को आज की परिभाषा में हम मोटिवेशनल (युवा पीढी को प्रेरित करनेवाला) गीत कह सकते हैं...  

एक बहुत ही बढिया प्रणय गीत यहां शैलेन्द्रने दिया है. शंकर जयकिसन ने फिर एक बार मूकेश की आवाज में यह गीत प्रस्तुत  किया है. मनलुभावन वो गीत यह रहा- अय दिल, प्यार की मंजिल, अब है मुकाबिल, देख तो ले, आंचल ढल गया सर से, चांद को अपने देख तो ले... क्या बात है, कैसी अनोखी कल्पना ! 

कॉलेज के विद्यार्थी एन.सी.सी. के गणवेश में साईकल पर नीकलते हैं उस द्रश्य में यह गीत फिल्मांकित किया गया है और युवानों के लिये प्रेरक बना है. 

शंकर जयकिसन के सभी गीतों का आस्वाद हम नहीं ले सकते अतैव सिर्फ थोडे से गीतों की झलक प्रस्तुत करते हैं.  


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