हास्य कलाकार महेमूद के और गीत

 शंकर जयकिसन-73


1950 और '60 के दशकों में शंकर जयकिसन ने हास्य कलाकार महेमूद के लिये जो संगीत परोसा उस की हम बात कर रहे हैं. इस अध्याय में उस की बात आगे बढाते हैं. महेमूद ने तीन चोटि के कलाकरों के साथ काम किया. तीनों फिल्म हिट थी और तीनों का संगीत भी काफी हद तक लोकप्रिय हुआ. इस अध्याय में उस की बात कर लें.

ऐसी पहली फिल्म थी दिल तेरा दिवाना. शम्मी कपूर इस फिल्म का हीरो था. महेमूद की अदाकारी ऐसी सशक्त रहती थी कि एकबार उस के साथ काम करनेनाले हीरो दूसरी बार महेमूद के साथ काम करते हुए डरते थे. उस का क कारण ऐसा भी था कि महेमूद अपने डायलोग्स खुद तैयार करता था और फिल्मांकन के दरमियान उसे बदल भी देता था. ठीक इसी तरह वो अपने गीतों में भी बीच बीच में कुछ उल्टासीधा कर देता था और हीरो की अदाकारी को कमजोर कर देता था. 


शम्मी कपूर के साथ 1962 में उस ने दिल तेरा दिवाना का शीर्षक गीत किया. इस गीत में महेमूद ने लडकी का पोषाक पहना था और मेकप किया था. द्रश्य ऐसा था कि नायक और महेमूद जोश में गाते हैं, धडकने लगता है मेरा दिल तेरे नाम से, ऐसा लगता है कि अब हम गये काम से... 

कथा नायक के पिता (अभिनेता राज महेरा) पीछे से आकर यह सब देखते हैं और गुस्से से आगबबुला हो जाते हैं. इस गीत में महेमूद ने शम्मी कपूर से  बराबरी का काम किया था और शम्मी कपूर भोंचक्का सा देखता रह गया था. 

खुद महेमूद ने एक साक्षात्कार में कहा था कि कैमरा चालु होते ही मैं कुछ गडब़ड गोटाला कर देता था. दुसरे सभी कलाकार निर्देशक के आदेश अनुसार काम करते थे, सिर्फ मैं अकेला ऐसा था कि कुछ उल्टासीधा कर देता था. मेरी तरह किशोर कुमार भी धमाल मचा देता था. यह तो हमारी खुशकिस्मती थी कि दर्शक और सहकलाकार सभी को हमारे काम से मझा आता था इस लिये हमारी कारकिर्द चलती रही.



अदाकारी का ऐसा ही करिश्मा महेमूदने फिल्म गुमनाम के गीत हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं..में और किशोर कुमार के साथ फिल्म पडोशन के एक चतुर नार गीत में किया था. गुमनाम के डायरेक्टर राजा नवाथे ने कहा था कि इस गीत की कोरियोग्राफी भी महेमूद ने की थी.

इन सभी बातों को ध्यान में रखकर शंकर जयकिसन महेमूद के गानों का संगीत तैयार करते थे. महेमूद ने उन के काम को सराहा भी था. दिल तेरा दिवाना का और एक गीत महेमूद को मिला था. इस गीत में शैलेन्द्र ने बारिश के दिनों में बम्बई की सडकों का जो हाल होता है उस पर बखूबी कटाक्ष किया था. वह गीत महेमूद पे फिल्मांकित हुआ था. मुखडा था रिक्शे पे मेरे तुम आ बैठो फिर मेरा हुनर देखो...देता है मजे कैसे कैसे, अपना यह सफर देखो... 

शंकर जयकिसन ने शब्दों के अनुरूप हलकीफुलकी तर्ज बनायी थी और गीत हिट हुआ था. 1964 में महेमूद ने सुनील दत्त के साथ साऊथ के फिल्म सर्जक की फिल्म बेटीबेटी की थी. इस फिल्म में महेमूद की कोमेडी को हसरत जयपुरी का सहयोग मिला था. महेमूद के हिस्से में जो गीत आया था वह यह है- गोरी चलो ना हंस की चाल जमाना दुश्मन है, तेरी उमर है सोलह साल जमाना दुश्मन है...

संस्कृत भाषा में षोडशी शब्द है. ऐसी माना जाता है कि लडकी जब सोलह साल की होती है तब उस की नजर तिरछी (ऊर्दू में चिलमन शब्द है) और चाल टेढी हो जाती है. इस विचार को हसरत ने इस गीत में प्रस्तुत किया है. महेमूद ने इस गीत में अपनी अदा से दर्शकों को दिवाना बना दिया था.

इसी फिल्म में महेमूद पर फिल्मांकित एक गीत ऐसा था जिसे सुनकर युवा पीढी के बच्चों को कुछ शिक्षा मिले. वह गीत था, बात इतनी सी है, कह दो कोई दिवानों से, आदमी वो है जो खेला करे तूफानों से... इस गीत की तर्ज भी सुननेवाले को उत्तेजित करे वैसी बनी थी. हसरत के शब्दों को शंकर जयकिसन ने अनोखे स्वरों से जीवंत किये थे.

यहां आप को याद दिला दुं कि महेमूद के लिये मुहम्मद ऱफी की आवाज लेकर शंकर जयकिसन ने एक नया तजुर्बा किया था. वह तजुर्बा काफी हद तक कामियाब हुआ. बाद में महेमूद और रफीने बहुत गीत दिये जो हिट हुए.

मनोज कुमार के साथ महेमूद ने 1965 में गुमनाम फिल्म की जिस का हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं गीतने अक्षरसः तहलका मचा दिया था. यह बात अलग है कि महेमूद ने जब फिल्में बनायी तो दूसरे संगीतकारों को अवसर दिया था. शंकर जयकिसन को इस बात से कोइ फऱ्क नहीं पडा था, न तो उन को कोइ शिकायत थी.

              


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