महेमूद और शंकर जयकिसन

 शंकर जयकिसन-72


 राज कपूर की फिल्म बरसात से अपनी कारकिर्द शूरु करनेवाले शंकर जयकिसन की कारकिर्दने 1960 के दशक में नया परिमाण सिद्ध किया. इस दशक में दक्षिण भारत के फिल्म निर्माताओं ने हिन्दी फिल्में बनाना शुरु किया और इन फिल्मों के लिये शंकर जयकिसन का संगीत पसंद किया.

ऐसी पहली फिल्म थी एल वी प्रसाद और निर्देशक टी प्रकाश राव की ससुराल. इस फिल्म में राजेन्द्र कुमार हीरो थे. बी सरोजादेवी हीरोइन थी.  दक्षिण की फिल्मों की एक विशेषता थी. सामाजिक कथा में दऱ्शकों में बैठी महिलाओं को यह कथाएं रुलाती थी. गंभीर वातावरण को थोडा हल्का करने के लिये महेमूद जैसे कोमेडियनों को यह निर्माता लेते थे.  

इस दशक में कोमेडियन के रूप मे महेमूद चोटि का कलाकार बन गया था और कभीकभार हीरो से भी ज्यादा पैसे लेता था. फिल्म ससुराल में महेमूद के हिस्से में दो गीत आये थे. दोनों हलके फूलके गानें थे. शुभा खोटे के साथ महेमूद ने अपनी खास जोडी बनायी थी. इन दोनों पर ये गानें फिल्मांकित हुए थे.

पहला गीत था जाना तुम्हार प्यार में शैतान बन गया हुं, क्या क्या बनना चाहा था, बेईमान बन गया हुं... हसरत जयपुरी के इस गीत ने उन दिनों तहलका मचाया था. तर्ज में महेमूद के लिये नटखट से स्वर शंकर जयकिसन ने आजमाये थे.

इस जोडी के लिये दूसरा गीत यह था- अपनी उल्फत पे जमाने का न पहरा होता तो कितना अच्छा होता, प्यार की रात का कोई न सवेरा होता.. रात हो या दिन,प्रेमी दिलों को तो सदैव प्यार ही प्यार चाहिये ऐसा संवेदन इस गीत में प्रस्तुत किया गया है. एक प्रकार की मधुर शिकायत इस गीत में गीतकार ने प्रस्तुत की है कि प्रेमीयों पर जमाने का पहरा क्यूं ?

और हां, आप को याद दिला दुं. ससुराल के एक गीत के लिये जयकिसन और शंम्मी कपूर में मैं मैं तू तू हो गयी थी. तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे... गीत की तर्ज शम्मी कपूर को पसंद आ गयी थी. उस ने जयकिसन से कहा था कि यह गीत मुझे दे दो. जयकिसन ने सविनय इनकार किया था कि यह तर्ज मैंने दूसरे फिल्म निर्माता के लिये बनायी है और मैं अपनी जबान का पक्का हुं. यह तर्ज मैं तुम्हें नही दे सकता. शम्मी को गुस्सा आया था और वह जयकिसन के साथ झघडा कर बैठा था. 

एल वी प्रसाद और टी प्रकाश राव के लिये शंकर जयकिसन ने दूसरी जिस फिल्म के लिये संगीत परोसा वह थी हमराही. इस फिल्म में भी राजेन्द्र कुमार हीरो थे. इस फिल्म के सभी गीत हिट हुए थे. यहां हम सिर्फ महेमूद के गीतों की बात कर रहे हैं.

इस फिल्म का सब से हिट गाना था वो दिन याद करो... राग पहाडी पर आधारित यह तर्ज में दो प्रेमी दिल बीते हुए दिनों को याद करते हैं, हसरत जयपुरी की रचना है. अंतरे में कहते हैं, वो छूप छूप के मिलना, वो हंसना हंसाना, वो फूलों की छाया, वो मौसम सुहाना... शंकर जयकिसन के चहिते खेमटा ताल में यह गीत सुननेवाले को भी नृत्य करने की प्रेरणा देता है. दर्शकों की एक पूरी पीढी इस गाने के पीछे पागल थी. महेमूद और शुभा खोटे ने भी अपनी अदाओं से इस गीत को जीवंत किया था.

 अपनी उल्फत पे जमाने का न पहरा होता...

नर्गिस दत्त और सुनील दत्तने अपनी उल्फत पे जमाने का न पहरा होता

नर्गिस दत्त औऱ सुनील दत्तने फौजी भाईयों के लिये सरहद पर प्रोग्राम्स देने की परंपरा शुरु कि तब शंकर जयकिसन के गीतों की बहुत फर्मायेश आती थी ऐसा सुनील दत्तने मुझे एक साक्षात्कार में कहा था. शंकर जयकिसन के गीतों में सरलता औऱ आम आदमी भी आसानी से गुनगुना सके ऐसी सादगी थी. बेशक, गायक कलाकारों ने भी इस गीतों को यादगार बनाने में अपना प्रदान दिया था और दिल से गीतों की जमावट की थी.

 


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