यहूदी के अन्य गीतों का आस्वाद

 शंकर जयकिसन-70


जैसे कि पिछले अध्याय में मैंने आप से बताया कि होलिवूड की फिल्मों में जुलियस सीझर के लिये संगीत परोसने वाले संगीतकार ने एकरार कर किया था कि इस फिल्म में संगीत देते वक्त हमने ज्यादातर कल्पना का उपयोग किया है. दूसरी और शंकर जयकिसन ने भी यहूदी का संगीत परोसते समय पूर्व और पश्चिम के संगीत का समन्वय किया था. फिल्म का जो शीर्षक संगीत था उसे सुनते वक्त कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि यह रोमन युग का संगीत नहीं है. शायद इसी लिये संगीतकार नौशाद की फिल्म आन की तरह इस फिल्म के शीर्षक संगीत का भी रेकर्ड बना था जो फटाफट बिक गया था. रोमन सम्राट के दरबार में किये गये डान्स का संगीत भी प्रभावक रहा है. 

ठीक इसी तरह फिल्म के गीतों का संगीत तैयार करते वक्त भी शंकर जयकिसन ने प्रसंगोचित संगीत परोसा. फिल्म देखते वक्त दर्शक को ऐसा ही महसूस हुआ कि इस फिल्म का संगीत इस से अलग नहीं हो सकता. रोमन शासन द्वारा यहूदीओं पर हो रहे अत्याचारों के प्रतीक समान गीत शैलेन्द्र ने लीखा था और मुहम्मद ऱफी ने गाया था. गीत के शब्दों में काफी आक्रोश था. मुखडा था ये दुनिय़ा... शैतानों की बस्ती है, यहां जिंदगी सस्ती है...  

इस फिल्म में मनोरंजन के लिये अच्छा मसाला डाला गया था. जैसे कि एक द्रश्य में एक जादुगर शून्यमें से दो लडकियां पैदा करता है. वह दोनों डान्स करते हुए गाती है और कथानायक (दिलीप कुमार) उस गाने का मजा लेते हुए पहेलीबार नायिका (मीना कुमारी) की झलक पाता है. शैलेन्द्रने यहां भी गीत के शब्दों में नायक के दिल की बात अच्छी तरह प्रस्तुत की है.



मैंने जिसे यहूदी समजा था वह तो रोमन नीकला यह सत्य जान लेने के बाद नायिका को जो सदमा पहुंचता है उस वक्त पेश किये गये गीत में हसरत जयपुरी का कमाल है. आंसु की आग ले के तेरी याद आयी... यहां गीत में दो संवेदन है. विरह की आग भी नायिका को जलाती है और कटु सत्य जान लेने से आंखों से जो आंसु बहे वे भी गर्म होने की संवेदना हसरतने बखूबी प्रस्तुत की है. आंसु की आग ले के तेरी याद आयी... बंदिश काफी गमगीनी से भरी है.

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