कौन से गीत की पेरोडी बच्चों ने की थी....

 शंकर जयकिसन-68



दिलीप कुमार अभिनित फिल्म यहूदी के सगीत की बात करते वक्त एक वाकया याद आ रहा है. हम तभी स्कूल में पढते थे. यहूदी फिल्म थियेटरों में आने से पहले उस की गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे. मजे की बात यह थी की गुजराती, मराठी, हिन्दी माद्यम की सभी स्कूल के बच्चे इस फिल्म के एक गीत की पेरोडी कर रहे थे. शायद आप ने भी की होगी. यदि आप सिनियर सिटिझन अर्थात् 70 साल की आयु के हैं. 

यहूदी का वह गीत था- मेरी जां मेरी जां, प्यार किसी से हो ही गया है, मैं क्या करुं... इस गीत की बंदिशने बच्चों को दिवाना बना दिया था. लताजी ने यह गीत गाया था. शंकर जयकिसन के संगीत का वह जादु था जो कि हजारों बच्चों के मन को भा गया था. यहूदी फिल्म की बात शुरू करने से पहले और थोडी बात करना जरूरी समजता हुं. 

जगमशहूर नाट्यकार विलियम शेक्सपियर ने एक करुणांत नाटक लीखा था- जुलियस सीझर. पीछले शतक में इस नाटक की कहानी पर आधारित पांच छः फिल्में होलिवूड में बनी थी. ऐसी पहली फिल्म 1950 में आयी थी जिस में दंतकथा रूप अभिनेता चार्लटन हेस्टन ने मुख्य भूमिका अदा की थी. उस के बाद भी इस कहानी पर बनी फिल्मों में यही अदाकार ने मुख्य भूमिका की थी. 1950 के दसक के उत्तरार्ध में एक सदाबहार फिल्म बेनहर आयी उस में भी यही अदाकार ने नायक का रोल किया था.

होलिवूड में 1950 में बनी जुलियस सीझर में शेक झोर्निग नाम के संगीतकार ने संगीत परोसा था. यह संगीतकार इतना विनम्र था कि उस ने एक साक्षात्कार में कहा कि रोमन साम्राज्य के समय कैसा संगीत था उस की जानकारी आज हमारे पास नहीं है. हमने इतिहास की किताबैं पढकर यथाशक्ति संगीत परोसा था. दर्शकों को हमारा संगीत पसंद आया उसे मैं अपना सद्भाग्य समजता हुं.


इतनी पूर्वभूमिका के बाद अब हम यहूदी की बात करें. असल में यह कथा आगा हश्र कश्मीरी लिखित एक नाटक की थी. नाटक का नाम था यहूदी की लडकी.

इस नाटक की कथा का फिल्मी रूपांतर याने फिल्म यहूदी. नबेन्दु घोष ने पटकथा लीखी थी और वजाहत मिर्झा ने संवाद लीखे थे. एकाधिक यादगार फिल्में बनानेवाली बिमल रोय इस फिल्म के निर्देशक थे. रोमन शासकों द्वारा यहूदी प्रजा पर किये गये अत्याचारों की कथा थी. उस में एक प्रणयप्रसंग डाल दिया गया था. थोडी आपाधापी के बाद सुखद अंत दिखाया गया.

फिल्म में दिलीप कुमार, मीना कुमारी और संवादों के बादशाह सोहराब मोदी ने मुख्य भूमिका की थी. सात में से छः गीत शैलेन्द्र के और एक गीत हसरत जयपुरी का था. महबूब खान की फिल्म अंदाज में संगीतकार नौशाद ने दिलीप कुमार के लिये मकेश की आवाज पसंद की थी. दूसरी और बरसात से लेकर करीब करीब सभी फिल्मों में राज कपूर ने अपने लिये मूकेश की आवाज का आग्रह रखा था.

यहां और एक दिलचस्प बात करना चाहुंगा. अंदाज फिल्म रिलिझ हुयी तब की बात है. उन दिनों दिलीप कुमार प्रत्येक रविवार को बम्बई से पूना घुडदौड रेस देखने जाते थे. मोटरकार द्वारा बम्बई से पूना जाते वक्त रास्ते में खापोली नाम का एक गांव आता है जहां लहसून डाले हुए आलुवडा की एक बहुत ही लोकप्रिय दुकान है. दिलीप कुमार भी वहीं आलुवडा खाने रुकते थे.

एकबार ऐसा हुआ कि दिलीप कुमार वहां आलुवडा का स्वाद ले रहे थे तभी पिकनि के लिये नीकले एक कॉलेज के लडकों की बस आ गयी. दिलीप कुमार को वहां देखकर सभी कॉलेजियन खुस हुए और दिलीप कुमार को घेरा डाला. कहने लगे कि फिल्म अंदाज का टूटे ना दिल टुटे ना... गीत सुनाइये.

दिलीप कुमार ने उन्हें समजाने की बहुत कोशिश की की यह गीत मूकेशने गाया है, मैंने नहीं गाया, लेकिन विद्यार्थी मानने को तैयार नहीं थे. आखिरकार अपनी कार की छत पर खडे होकर दिलीप कुमार ने वह गीत गाया. वैसे दिलीप कुमार भारतीय संगीत के मर्मी हैं (अब स्वर्गीय) और सितार बजाने के अतिरिक्त गाना भी गाते रहे. फिल्म मुसाफिर में सलील चौधरी के संगीत में आपने लता के साथ एक गीत भी गाया था- लागी नाहिं छूटे राम...

यहूदी का संगीत परोसते वक्त शंकर जयकिसन ने एक अनोखा प्रयोग किया. अब तक वे भी दिलीप कुमार के लिये तलत महमूद से गवाते रहे थे. लेकिन यहूदी में उन्हों ने दिलीप कुमार के लिये मूकेश की आवाज पसंद की और वह तीर निशाने पर लगा. वह गीत जबरदस्त लोकप्रिय हुआ और आज भी लोकप्रिय है. ये मेरा दिवानपन है, या मुहब्बत का सुरूर... 

                      


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