शिकस्त के संगीत ने भी दिलीप कुमार को खुश कर दिया

 शंकर जयकिसन-67



 दाग के बाद शंकर जयकिसन ने दिलीप कुमार अभिनित और दो फिल्मो में संगीत परोसा. उस में पहेली फिल्म थी शिकस्त जिस में जुल्मी जमींदार द्वारा गरीब किसानो पर किये गये अत्याचारों की कहानी थी. रमेश सहगल की इस फिल्म में दस गीत थे. शंकर जयकिसन के प्रति अत्यंत आदर के साथ कहना पड रहा है कि इस फिल्म का संगीत हिट होने पर भी उस के गीत आज बहुत कम लोगों को कंठस्थ होंगे.

नवीनता सिर्फ यह रही कि इस फिल्म में संगीतकारोंने गायक-संगीतकार हेमंत कुमार की आवाज का उपयोग किया. ठीक उसी तरह आशा भोंसले से भी एक गीत गवाया. हालांकि हेमंत कुमार ने जो गीत गाया वह हम कठपूतले काठ के, हमें तू नाच नचाये, ऊंचे आसन पे बैठ के अपना दिल बहलाये कथानायक डॉक्टर रामसिंघ (दिलीप कुमार ) पे फिल्माया नहीं था.

मंदिर में कोइ साधु ऐकतारे पे यह गीत गा रहा हो ऐसा फिल्मांकन था लेकिन बाद में यह गीत फिल्म से निकाल दिया गया था. ठीक इसी तरह  तलत महमूद की आवाज में एक गीत रेकोर्ड किया गया था. वह गीत तूफान में घीरी है मेरी तकदीर की राहें, रोती है मेरे हाल पे ये सावन की घटाएं भी फिल्म में से निकाल दिया गया था. यह बात अलग है कि तलत महमूद ने यह गीत अपने पसंदीदा गीतों में एक है ऐसा कहा था.


आशा भोंसले के गाये हुए गीत को उत्तर भारत में बिरहा के गीत या सावन के गीत के नाम से पहचाना जाता है. हसरत जयपुरी रचित इस गीत की तर्ज लोकसंगीत पर आधारित है. मुखडा है, चमके बिजुरियां, बरसे मेघ, मत जा रे बालमवा परदेसवा... अक्सर देश की सभी प्रादेशिक भाषाओं में एकाध ऐसा गीत मिलता है. 

शिकस्त फिल्म उन दिनों बनी थी जब दिलीप कुमार प्रणयभग्न नायक का किरदार ज्यादा करते थे. लेकिन इस फिल्म में प्रणयभग्न नायक होते हुए भी वे डॉक्टर का किरदार कर रहे थे, शायद इसी कारण से उन को शराबी नहीं दिखाया गया.

कमजोर कथा और कमजोर पात्रालेखन के बावजूद इस फिल्म के दो गीतों का उल्लेख जरूरी बन जाता है. आप को याद होगा, फिल् मधर इन्डिया में संगीतकार नौशाद ने लोकगीत जैसी एक बंदिश पेश की थी- दुःखभरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे... ठीक वैसी ही एक लोकसंगीत आधारित रचना शंकर जयकिसन ने इस फिल्म में पेश की है.

वही लचकदार खेमटा ताल और समूहगान. वह गीत यह रहा- नयी जिंदगी से प्यार कर के देख,  इस के रूप का सिंगार कर के देख... शैलेन्द्र ने अपनी कल्पना को यहां निछावर कर दी है.

यह फिल्म जब आयी तब देश में खास कर के देहातों में बेवा नारीयों की स्थिति नर्क से भी बदतर थी. अतैव यह गीत महत्त्वपूर्ण बन जाता है. कथानायक रामसिंघ अपनी एक वक्त की प्रेमिका (नलिनी जयवंत) को प्रेरित करता है कि तेरा प्रियतम वापस लौटा है. उस को अपना ले. उस के प्रेम का स्वीकरा कर ले. संगीत रसिक अपने पैरों से ताल देने पर मजबूर हो जाये ऐसे तर्ज-लय है. उत्साह से भरपुर गीत है. 

पहलीबार मुहम्मद रफी और समूह के स्वर में और दूसरी बार लता के कंठ में यह गीत प्रस्तुत होता है. वैसा ही एक मनमोहक गीत वर्षागीत है जिस में बिरहा नायिका अपने प्रीतम को बारिश में बिदेश जाने से रोकना चाहकी है. वह गीत अर्थात् यह- कारे बदरा तू न जा, न जा बैरी तू बिदेश न जा... 

    


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