शंकर जयकिसन-66
अमिय चक्रवर्ती की दाग फिल्म की कहानी गमगीनी से भरी हुयी थी. मिट्टी के खिलौने वेचनेवाला शंकर बहुत महेनत के बाद अपना और अपनी माता का पेट भरता है. वह पारो उर्फ पार्वती (नीम्मी) को चाहता है लेकिन दोनों एक नहीं हो पाते हैं. गरीबी और बेकारी की वजह से वह शराबी हो जाता है. ज्यादा कमाने के लिये हताश शंकर गांव छोडकर चला जाता है.
दूसरे गांव में ठीक ठीक कमाई कर के वह अपने गांव वापस लौटता है तब पता चलता है कि पार्वती का ब्याह किसी और से तय हुआ है. वह फिर से शराबी बन जाता है. यद्यपि कथा का सुखद अंत आता है. इस कथा में खुशी या उल्लास भरे गीतों को ज्यादा अवकाश नहीं था. शंकर जयकिसन ने कथा के अनुरूप संगीत परोसा और वह हिट भी हुआ.
दाग फिल्म में पांच गीत शैलेन्द्र के और तीन गीत हसरत के थे. अय मेरे दिल कहीं और चल की तरह और एक गीत भैरवी में था और वह लताने गाया था.
वियोगिनी नायिका यह गीत गाकर अपने मन की बात पेश करती है. मौत आ गयी, न आये वो, मरने के बाद भी आंखें तरसी रह गयी इन्तजार में, काहे को देर लगायी रे आये न अब तक बालमा... लता ने अपनी कसी हुयी आवाज में आये न अब तक बालमा.. शब्दों को जीवंत कर दिया है. अय मेरे दिल कहीं और चल की तुलना में इस गीत में वाद्यवृन्द अति सौम्य है.
तलत महमूद की आवाज में नायक के लिये प्रस्तुत अन्य गीत भी सुननेवाले को गमगीन कर देते हैं. दर्शक भी नायक के साथ गमगीन हो जाता है ऐसा प्रभाव शंकर जयकिसन के संगीत का है. मिसाल के तौर पर हसरत की यह रचना देखिये- चाँद एक बेवा की चूडी की तरह तूटा हुआ, हर सितारा बेसहारा सोच में डूबा हुआ, गम के बादल इक जनाजे की तरह ठहरे हुए, सिसकियों के साज पर कहता है दिल रोता हुआ, कोई नहीं मेरा इस दुनिया में, आशियां बरबाद है... ऐसे शब्दो में तर्ज भी करुण ही हो सकती है. वैसा ही और एक गीत तलत की आवाज में है- हम दर्द के मारों का बस इतना फसाना है, पीने को शराब-ए-गम, दिल गम का निशाना है...
और एक गमगीन गीत नायिका को अर्थात् लता को मिला है. शैलेन्द्र की रचना है. मुखडा है- प्रीत यह कैसी बोल री दुनिया, धूल में मन का हीरा रोवे, कोइ न पूछे मोल, दुनिया प्रीत यह कैसी बोल...
यहां एक खास वजह से शंकर जयकिसन की सराहना करनी चाहिये. इतने सारे गमगीन गीत होने पर भी गीतों की बंदिश इतनी सीधीसादी है कि शब्दों पर हावी नहीं हो जाती है, गीतों के शब्दों का महत्त्व जीवंत रहता है. शायद यही कारण था कि दिलीप कुमार को भी शंकर जयकिसन का संगीत खूब पसंद पडा था. गीत के शब्दों पर संगीत हावी नहीं हो जाना चाहिये ऐसी दिलीप कुमार की मान्यता थी.
और हां, आप भी जानते होंगे, दिलीप कुमार अपने पात्र में इतने ओतप्रोत हो जाते थे कि वे खुद भी डिप्रेशन का शिकार हो गये थे और लंदन जाकर उन्हें मनोचिकित्सा लेनी पडी थी. वे स्वयं भी एक जमाने में सितार बजा लेते थे.
वैसे फिल्म दाग में दो खुशी के गीत भी थे. उस में एक गीत मराठी लोकनृत्य लावणी पर आधारित था. राज कपूर की आवारा फिल्म के घर आया मेरा परदेशी के लिये बुलाये गये ढोलकीवादक लाला गंगावणे को इस लावणी आधारित गीत में अपनी कमाल दिखाने का अवसर मिला था. वह गीत था- देखो आया यह कैसा जमाना, यह दुनिया अजायबखाना, देखो आया यह कैसा जमाना... असल लावणी के साज इस गीत में सुनने मिलते हैं, खंजरी, मंजिरे, टुनटुनी आदि साजों का उपयोग यहां किया गया है.
और एक मस्त डान्स गीत जब से लागे नैन खेमटा ताल में है. यह दोनों गीत अभिनेत्री उषा किरण पर फिल्माये गये हैं.
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