बहुत अच्छा गीत बनाया है, आप गौर से सुनियेगा....

 शंकर जयकिसन-65

 


वरिष्ठ संगीतकार नौशाद के संस्मरणों की किताब आज गावत मन मेरो मैं लीख रहा था तब की बात है. नौशाद साहब बहुत अच्छे कहानीकार और शायर भी थे. उन की कथनशैली बडी रोचक थी. एक दिन जब अच्छे मूड़ में थे तब कहने लगे, आप पत्रकार हैं. आप को एक बात कहना चाहुंगा. इस बात को मेरे संस्मरणों में नहीं लेना है, भविष्य में कभी आप के काम आयेगी यह बात ! नौशाद साहब ने जो कुछ कहा वो उन्हीं के शब्दोमे प्रस्तुत है.

'युसुफ साहब (दिलीप कुमार) बहुत गुणी, विद्वान और संगीत के मर्मी हैं. मानव जीवन के प्रत्येक पहलु के अभ्यासी हैं. बहुत जलदी किसी की प्रशंसा नहीं करते. आप को याद होगा. एक बार मैंने लताजी का परिचय कराया तब वे बोल ऊठे थे कि इन के गाने में दाल-चावल की बू आती है, याने इन के ऊर्दू उच्चार सही नहीं होते... लता को बहुत बूरा लगा था और एक मौलवी की सहाय से उन्हों ने शीघ्र ऊर्दू जबान सीख ली थी.

'ऐसे गुणी कलाकार का एक शाम मुझे फोन आया. कहने लगे, मेरा दोस्त राज कपूर जिन दो युवान संगीतकारों को लाया है उन्हों ने मेरी एक फिल्म के लिये बहुत बढिया बंदिश तैयार की हैं. इस गीत का ओर्केस्ट्रेशन भी बढिया है. आप भी गौर से सुनियेगा...' इतना कहकर नौशाद रुके और रहस्य भरे शब्दों में मुझे पूछने लगे, आप जानते हैं वह कौन से गीत की बात कर रहे थै ? 



मैंने कहा कि मुझे ख्याल नहीं है. आप ही बता दीजिये. नौशाद साहब ने रहस्यस्फोट करते हुए कहा, अमिया चक्रवर्ती की फिल्म दाग का वह गीत था- अय मेरे दिल कहीं और चल..

यहां और एक बात कहना चाहुंगा. महबूब खान की अंदाज (दिलीप कुमार और राज कपूर की एक मात्र फिल्म) और अमिया चक्रवर्ती की दाग दोनों फिल्में करीबन एक के बाद रिलिझ हुयी थी. अंदाज में नौशाद का संगीत था और दिलीप कुमार के लिये नौशाद ने मूकेश की आवाज पसंद की थी. इस से पहले नौशाद ने दिलीप कुमार के लिये तलत महमूद की आवाज पसंद की थी.

जब अंदाज में नौशाद ने दिलीप कुमार के लिये मूकेश की आवाज ली तब शंकर जयकिसन ने दाग में दिलीप कुमार के लिये तलत महमूद की आवाज पसंद की. अंदाज के सभी गानें हिट थे. दिलीप कुमार ने अय मेरे दिल कहीं और चल गीत गौर से सुनने का सूचन किया वह दिलचस्प बात है.


अय मेरे दिल कहीं और चल का रेकोर्डिंग कराते हुए तलत महमूद.

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जरा गौर फरमाइये.

दिलीप कुमार के लिये शंकर जयकिसन ने सिर्फ तीन फिल्मों में संगीत परोसा, सबसे पहले थी दाग, बाद में आयी यहूदी और अंतिम फिल्म थी शिकस्त. अय मेरे दिल कहीं और चल गीत की खूबी ध्यानाकर्षक है. सब से पहली बात यह की यह गीत शंकर जयकिसन की फेवरिट रागिनी भैरवी में निबद्ध है. दूसरी बात, असंख्य चिंतनपूर्ण गीत देनेवाले शैलेन्द्र की यह रचना थी. हताश नायक गांव छोडकर चला जा रहा है तब चलते चलते गाता है. बाद में यह गीत लता के स्वर में भी है जो कि नायिका पे फिल्माया गया था.

तीसरी और ज्यादा महत्त्व की बात. इस गीत का ओर्केस्ट्रेशन (वाद्यवृन्द आयोजन) सेबास्टियन डिसोझा ने किया था. दाग फिल्म और इस गीत से सेबास्टियन शंकर जयकिसन के सहायक बने और जीवनभर शंकर जयकिसन के साथ सहायक बने रहे. गीत को आप भी ध्यान से सुनिये. यह गीत स्वरलिपि की भाषा में फोर बाय फोर अर्थात् हमारे कहरवा ताल में निबद्ध है, लेकिन एक भी लयवाद्य का उपयोग नहीं किया गया है. वाद्यों का इस्तेमाल इस तरह किया गया है कि सुनने वाले को ताल का अपने आप ख्याल आ जाये.

इस गीत में वोयलिन, मेंडोलीन, हार्मोनियम, एकोर्डियन और वाईब्रोफोन का बेजोड उपयोग किया गया है. विस्तास्प (वी) बलसारा पेरिस सूर के हार्मोनियम पे थे, केरसी लोर्ड एकोर्डियन पे थे और घर आया मेरा परदेशी फेम डेविड मेंडोलीन पर थे. स्वयं सेबास्टियन और दूसरे साजिंदे वोयलिन बजा रहे थे. गीत शुरू होने से पहले बजाया गया प्रिल्यूड, गीत का मुखडा, इन्टरल्यूड और अंतरा सभी में वाद्यों की जो तिलस्मी इफेक्ट है वह सही मायने में अजोड है. सेबास्टियन ने गीत के साथ जो काऊन्टर मेलोडी तैयार की है वह बेमिसाल बनी है. अभी तक ऐसा दूसरा गीत सुनने में नहीं आया. 

तलत ने एक गीत खुशी के रूप में और दूसरा गमगीनी के रूप में गाया है. लताजी की आवाज में सिर्फ गमगीन रूप प्रस्तुत हुआ है.


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