प्रत्येक राग का कलात्मक उपयोग किया

 शंकर जयकिसन-54

 


पिछले अध्यायों में मैंने आप को बताया था कि यदि आप एक राग पंडित भीमसेन जोशी की आवाज में सुनते हैं, तत्पश्चात वही राग पंडित जसराजजी की आवाज में सुनिये. आप को कुछ अलगपन महसूस होगा. राग एक ही होने पर भी हरेक कलाकार की प्रस्तुति अलग होती है. उन की तालीम, उन के कंठ की विशेषता, राग प्रस्तुत करते वक्त उनका मूड आदि चीजें राग की प्रस्तुति पर आधार रखती है.

ठीक वैसा ही अनुभव आप को फिल्म संगीत में भी हो सकता है. मिसाल के तौर पर राग मालकौंस लीजिये. मन तडपत हरि दर्शकन को आज (फिल्म बैजु बावरा, संगीत नौशाद), जान-ए-बहार हुश्न तेरा बेमिसाल है (प्यार किया तो डरना क्या, रवि), अंखियन संग अंखियां लागी आज (बडा आदमी, चित्रगुप्त). यह तीनों गीत राग मालकौंस में है लेकिन तीनों गीतों का केन्द्रवर्ती विचार अलग अलग है.

शंकर जयकिसन ने भी  ठीक इसी तरह अलग अलग तजुर्बे किये हैं. आज शंकर जयकिसन ने आजमाये राग कीरवाणी की बात करते हैं. कीरवाणी संस्कृत शब्द है. कीर याने तोता. वाणी याने उस की किलकारी. यह राग कर्णाटक संगीत से उत्तर भारतीय संगीत में आया है. इस राग की एक विचित्रता है. हमारे संगीतज्ञ पंडित विष्णु नारायण भातखंडेने थाट आधारित रागों का वर्गीकरण किया है. उस वर्गीकरण में यह राग कही भी फिट नहीं हो रहा है. क्यूं कि इस राग में गंधार (ग) और धैवत (ध) कोमल है. पंडित भातखंडेजी के राग वर्गीकरण में यह राग किसी भी थाट में नहीं समाविष्ट हो सकता है.

खैर, शंकर जयकिसन ने इस राग में एक से बढकर एक गीत दिये हैं. आईये राग कीरवाणी आधारित गीतों का आस्वाद लेते हैं. सब से पहले इस राग का उपयोग शंकर जयकिसन ने फिल्म चोरी चोरी (1956) में किया. गीत का भाव प्रणय का है लेकिन उसे व्यक्त करने के लिये प्रकृति का आधार गीतकार ने लिया है. ये राग भीगी भीगी, ये मस्त फिझायें, ऊठा धीरे धीरे वो चांद प्यारा प्यारा., क्यों आग सी लगा के, गूमसूम है चांदनी, सोने भी नहीं देता मौसम का यह नजारा...

शब्दों का मजा सूरों के साथ लीजिये. दूर क्षितिज से अभी तो चांद धीर धीरे नीकल रहा है, इतने में तो गूमसूम है चांदनी... और सोने नहीं देता.. आ जाता है. अर्थात् अभी दोनों प्रेमी दिलों का मिलन नहीं हुआ है. गीतकार के भाव को  शंकर जयकिसन ने सूरों के जादु से जीवंत कर दिया है.

राग कीरवाणी आधारित दूसरा गीत तीन साल बाद 1959 में मिलता है. फिल्म लव मैरेज के लिये. देव आनंद हीरो है और माला सिंहा मुख्य भूमिका में हैं. हीरो क्रिकेटर है. यहां प्रणय उत्कट स्वरूप में हमारे सामने आता है. जो मौज हमने ली है उस के याद कर के उस विरल क्षण को फीर से जी रहे हैं. गीत का मुखडा है- कहे झूम झूम रात ये दिवानी, पिया हौले से छेडो दुबारा, वही कल की रसीली कहानी... प्रणय के इस जजबात को शंकर जयकिसन ने जिस तरह प्रस्तुत किया है उस का मजा लेते हुए सिर्फ इतना कह सकते हैं, क्या बात है...

प्रणय का तीसरा भाव याने विरह. राग कीरवाणी में दो गीत दिये. पगला गीत प्रणय धीरे धीरे प्रगट हो रहा है उसका था, दूसरे गीत में प्रणय की भावना द्रढ होती नजर आयी. अब आया विरह का भाव. फिल्म दिल एक मंदिर. याद न जाये बीते दिनों की, जा के न आये वो दिन दिल क्यूं भूलाये... जिस लडकी को चाहा था उसे पा न सके, आज वह किसी गैर की पत्नी बनकर मेरे आंगन में आयी है. तब नायक जो कि एक डॉक्टर है वो बीते हुए दिन याद करता है.

कीरवाणी आधारित तीनों गीतों में शंकर जयकिसन ने कहरवा ताल का ही उपयोग किया है. सिर्फ लय कम ज्यादा है. अब तक एक ही राग में दो तीन जजबात जीवंत करनेका शंकर जयकिसन का जादु हमने देखा. राग भूपाली, झिंझोटी और कीरवाणी आधारित गीतों का आस्वाद लिया. इसी तरह दूसरे रागों पर आधारित गीतों की बात भी कर सकते हैं. लेकिन अब यहा रूकते हैं और नये अध्याय में ट्रेक बदलेंगे, कछु और नयी बात शुरू करेंगे.

 


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