शंकर जयकिसन-53
पांच छः साल का वह बच्चा रोज सुबह स्कूल जाते वक्त ग्रामोफोन रेकोर्ड की एक दुकान के पास न जाने क्यूं रूक जाता था. दुकानदार ग्रामोफोन पर एक रेकोर्ड बजाता था. किराना घराने के प्रणेता ऊस्ताद अब्दुल करीम खान की आवाज में एक ठुमरी उस रेकोर्ड में बजती थी- पिया बिन नाहिं आवत चैन... वह बच्चा खान साहब की आवाज के जादु में समय और स्थान को भूल जाता, स्कूल का वक्त हो रहा है उस बात का भी उसे ख्याल नहीं रहता था. वो वहीं रूक जाता और दुकानदार को बिनती करता, यही रेकोर्ड बार बार बजाईये. दुकानदार भला आदमी था, दो चार बार बजा देता था.
बाद में वह बच्चा संगीत सीखने के लिये गुरु की तलाश में घर से भाग गया. विधाता ने उस के भाग्य में संगीत ही लीखा था. बाद में वह किशोर भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के नाम से जगविख्यात गवैया बना. ऊस्ताद अब्दुल करीम खान की जिस ठुमरी ने उसे घायल किया था वह ठुमरी राग झिंझोटी में थी. खमाज थाट की संतान जैसा राग झिंझोटी छोटा और नटखट राग है. ज्यादातर वाद्य संगीत में प्रस्तुत होता है, या फिर उपशास्त्रीय संगीत में ज्यादा प्रस्तुत होता है. बडे बडे गवैये इस राग में ख्याल आदि नहीं गाते.
फिल्म संगीत में इस राग का बहुत बढिया उपयोग हुआ है. जैसे कि छूप गया कोई रे दूर से पुकार के (फिल्म चंपाकली, गायिका लता, संगीत हेमंत कुमार), घुंघरुं की तरह बजता ही रहा हुं मैं (चोर मचाये शोर, किशोर कुमार, रवीन्द्र जैन) वगैरह. शंकर जयकिसन ने भी इस राग में विविध जजबात को पेश किया है. संस्कृत साहित्य में एक पंक्ति है- क्षणैः क्षणैः यम् नवताम् उपैति, तदैव रुपम् रमणीयतायाम् अर्थात् प्रत्येक क्षण में जो नये नये रूप धारण करता है वह बहुत ही खूबसुरत लगता है...
आईये, हम भी शंकर जयकिसन के राग झिंझोटी आधारित गीतों का आस्वाद लेते हैं. वैसे एक गीत का उल्लेख मैं पिछले अध्यायों में कर चूका हुं. आप को याद होगा वह गीत. फिल्म बसंत बहार के लिये लताने गाया था- जा जा रे जा, बालमवा, सौतन के संग रात बितायी, काहे करत अब जूठी बतियां... लताने जा जा रे जा... शब्दों को बखूबी प्रस्तुत किया था. सोलह मात्रा के तीनताल में निबद्ध यह गीत राग झिंझोटी में शंकर जयकिसन का पहला गीत. इस गीत में प्रियतम से शिकायत की गयी है
राग झिंझोटी में शंकर जयकिसन का दूसरा गीत यह रहा- फिल्म छोटी बहन (1956) के लिये स्वरबद्ध किये इस गीत का मुखडा है, जाऊं कहां बता अय दिल, दुनिया बडी है संगदिल... यह गीत आठ मात्रा के कहरवा में निबद्ध है. इस गीत का फिल्मांकन अभिनेता रहमान पे किया गया था. इसे मूकेश ने गाया था. इस गीत में एक हताश, गमगीन आदमी के जजबात प्रस्तुत हुए हैं. अंतरा शुरू होते हुए मूकेश ने जिस तरह बन के तूटे... शब्दों को गाया है उस में इस व्यक्ति की पीडा का ऐहसास है.
राग झिंझोटी का और एक खूबसुरत गीत शम्मी कपूर के लिये शंकर जयकिसन ने बनाया है. फिल्म पगला कहीं का (1970) के लिये बने इस गीत को मंच कलाकार रफी की जन्मजयंती और पुण्यतिथि पर अचूक प्रस्तुत करते हैं. आप को अवश्य याद आ गया होगा वह गीत- तुम मुझे यूं भूला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे... नायक के दिल के जजबात नायिका के दिल तक इस गीत द्वारा पहुंचते हैं और नायिका (आशा पारिख) आंसु बहाती है...
आपने देखा होगा, राग झिंझोटी आधारित तीनों गीतों के जजबात एक दूसरे से भिन्न है और तीनों गीत यादगार बने हैं. देखिये, कैसा जादु बिखेरा शंकर जयकिसन ने...!
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