भैरवी सर्वदा सुखदायिनी का एहसास सर्वप्रथम कराया

 शंकर जयकिसन-48

 


हमारे शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकार भैरवी का परिचय देते हुए उसे सदा सुहागिन और सर्वदा सुखदायिनी कहते हैं. शास्त्र के अनुसार भैरवी प्रातःकालीन रागिणी है, लेकिन आप ने देखा होगा कि संगीत समारोह में भैरवी अक्सर अंत में प्रस्तुत होती है और संगीत रसिक भैरवी के स्वरों को गुनगुनाते घर की तरफ वापस लौटते हैं.

शंकर जयकिसन को जब जहां मौका मिला उन्हों ने भैरवी आधारित गीत दिये हैं. पिछले अध्यायों में मैंने साहित्य में नवरस की जो कल्पना की गइ है उसका उल्लेख किया था. फिल्मों में अक्सर मुहब्बत के विविध संवेदनों को प्रकट किया जाता है अतैव ज्यादा गीत प्रणय आधारित होते हैं. 

शंकर जयकिसन ने भैरवी का उपयोग प्रणय के अतिरिक्त दूसरे संवेदनों को प्रकट करने के लिये भी किया. पिछले अध्यायों में मैंने आप को प्रणय संवेदन के बारे में बताया था. मिसाल के तौर पर मिलन के लिये भैरवी- बरसात में हम से मिले तुम सजन... विरह के लिये भैरवी- छोड गये बालम मोंहे हाय...  गमगीन दिल से काया हुआ गीत- दिल अपना और प्रीत परायी किस ने है यह प्रीत बनायी, भक्तिभाव के लिये भैरवी- सजन रे जूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है..., शिकायत के रूप में भैरवी- दुनिया बनानेवाले क्या तेरे मन में समायी, काहे को दुनिया बनायी..., प्रणयोन्माद में भैरवी- चाहे कोइ मुझे जंगली कहे, कहने दो जी कहता रहे..., प्रेमी पात्रों में नोकझोंक- कैसे समजाऊं बडे नासमज हो..., शुभकामना व्यक्त करते हुए भैरवी- तुम्हें और क्या दुं मैं दिल के सिवा, तुम को हमारी उमर लग जाय... इत्यादि..

कभी कभी ऐसा लगता है कि शंकर जयकिसन ने भैरवी का पूरा कस निकाला है, जैसे गन्ने का रस निकालने वाला मशीन में बार बार डालकर गन्ने का रस निकाल रहा हो. शंकर जयकिसन की प्रत्येक भैरवी गन्ने के मधुर रस जैसी यादगार बनी है. संगीत नहीं समजने वाला दर्शक भी यह भैरवी सुनकर झूम ऊठता है.

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