शंकर जयकिसन-47 A
बात फिल्म संगीत की हो या सुगम संगीत की, एक बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिये, कोई भी संगीतकार जब तक किसी राग को संपूर्ण रूप से आत्मसात नहीं कर लेता तब तक वह उस राग में एक से ज्यादा और वैविध्यपूर्ण बंदिशें नहीं दे सकता. एक दिलचस्प वाकया याद आता है. ऐसा सुना था कि फिल्म ईन्द्रसभा (1925-26) में 65 छोटे छोटे गीत थे और सभी के सभी गीत भैरवी में थे. जब मैं संगीतकार नौशाद की आत्मकथा गुजराती भाषा में लीख रहा था तब उन से ईन्द्रसभा के संगीत के बारे में पूछा था. उन्हों ने बहुत खूबसुसत जवाब दिया था. नौशाद ने कहा, इस फिल्म के संगीतकार ने भैरवी को किस हद तक आत्मसात की होगी कि वे 65 बंदिशें दे पाय़े. इस को कहते हैं साधना.
बात सोचने जैसी है. आप एक राग पंडित भीमसेन जोशी से सुनिये. उसी राग को पंडित अजय चक्रवर्ती या पंडित जसराजजी से सुनिये. आप को ख्याल आ जायेगा. प्रत्येक कलाकार राग को अपनी कल्पना और रियाझ के अनुसार अलग अलग ढंग से प्रस्तुत करता है. अक्सर ऐसा कहा जाता है कि शंकर जयकिसन ने भैरवी और शिवरंजनी का अत्यधिक उपयोग किया है. इस का मतलब यह हुआ कि यह दो रागिणी शंकर जयकिसन की रगों में खून के साथ बहती थी. उन्हों ने इस दो रागिणी को पूर्ण रूप से आत्मसात किया था.
अब देखिये कि इन दोनों रागिणी में शंकर जयकिसन ने कितना और कैसा वैविध्य दिया है. फिल्म बरसात के गीतों का आस्वाद लेते वक्त मैंने दो गीतों का वैविध्य प्रस्तुत किया था. बरसात में हम से मिले तुम सजन...में मिलन शृंगार है और छोड गये बालम मोहें हाय अकेला छोड गये...में विरह शृंगार है. अब आगे बढते हैं.
विरह शृंगार का और एक यादगार गीत माने फिल्म दाग का अय मेरे दिल कहीं और चल गम की दुनिया से दिल भर गया...ऐसे और दो चार मुखडे सुनिये- दिल अपना और प्रीत परायी... (दिल अपना और प्रीत परायी), तेरा जाना दिल के अरमानों का लूट जाना...(अनाडी) अब इस तीनों गीतों का ओरकेस्ट्रेशन (वाद्यसंचालन) सुनिये. इस में रहे वैविध्य को महसूस कीजिये. यहां दिये हुए सभी गीत भैरवी में है, लेकिन हरेक गीत की खूबसुरती एक दूसरे से अलग है. यह सभी गीत गमगीनी से भरे हैं.
लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि शंकर जयकिसन ने भैरवी में सिर्फ गमगीनी से भरे गीत दिये हैं. भैरवी में खुशी और थिरकते गीत भी दिये है जैसे कि रमैया वस्तावैया रमैया वस्तावैया...(श्री 420), एप्रिल फूल बनाया तो उन को गुस्सा आया... (एप्रिल फूल) और तुम्हें और क्या दुं मैं दिल के सिवा...(आयी मिलन की बेला). यह सभी गीत भैरवी में स्वरांकित हैं. इस में भी रमैया वस्तावैया का तो लय ऐसा है कि सुननेवाला भी झूमने लगे, नाचने लगे.
शंकर जयकिसन ने भैरवी में स्वरबद्ध किये कम से कम सौ डेढ सौ गीत मिल जायेंगे. हरेक गीत की बंदिश, ताल और मिजाज अनोखा है. एक भी गीत किसी दूसरे गीत से मिलता झुलता नहीं है. मजा तो यह है कि रमैया वस्तावैया..., यह हरियाली और यह रास्ता... और तुम्हें और क्या दुं मैं दिल के सिवा का ताल एक ही खेमटा ताल होने पर भी यह सभी गीत एकरूप-एकसमान (मोनोटोनस) नहीं लगते.
हो सकता है, किसी एक गीत का मुखडा दूसरे गीत के पार्श्वसंगीत (ईन्टरल्यूड) के रूप में इस्तेमाल किया गया है या किसी एक गीत का अंतरा दूसरे गीत के मुखडे जैसा बना है लेकिन एकविधता किसी भी गीत में महसूस नहीं होती. यह विशेषता काबिल-ए-दाद है.
Comments
Post a Comment