शंकर जयकिसन-47
एक छोटे से चुटकुले से बात का आरंभ करता हुं. भारतीय आयुर्वेद में कहा गया है कि दूध और प्याज या दूध और ल्हसून साथ में नहीं ले सकते. लेने से स्वास्थ्य पर विपरीत असर पडता है. यह विपरीत खुराक हुयी. भारतीय संगीत में ऊलटबांसी है. खास कर के उपशास्त्रीय संगीत में कुशल कलाकार राग के वर्ज्य स्वरों को भी ऐसी खूबी से पेश करता है कि सुनने वाले आह् कर बैठे.
फिल्म संगीत में ऐसा जादु शंकर जयकिसन ने बिखेरा है. फिल्म बसंत बहार में ऐसे एक दो गीत हैं जिस में शंकर जयकिसन ने कमाल कर दिखाया है. परदे पर अभिनेत्री नीम्मी तानपुरे लेकर गा रही है और कमकुम डान्स करते करते गा रही है ऐसा द्रश्य है. गीत है कर गया रे मुझ पे जादु सांवरिया, कर गया रे मुझ पे जादु... भैरवी में स्वरांकित इस गीत को लता और आशा दोनों बहनों ने अपनी अपनी खूबी के साथ गाया है. इस गीत में भैरवी की एक छटा है तो दूसरे गीत में भैरवी की ही अलग छटा है. दोनों गीतों में प्रणय की उत्कट भावना है और दो दिलों के ऐक्य की बात प्रस्तुत की गयी है.
वह दूसरा गीत भी है तो भैरवी में लेकिन यहां तर्ज में एक अनोखा थनगनाट है, जैसे पंखी हवा में तैर रहा हो, वैसे ही स्वरों का उड्डयन महसूस होता है. यह रहा वह गीत नैन मिले चैन कहां, दिल है वहां तू है जहां, ये किया किया सैयां सांवरे.. मजे की बात यह है कि दोनों गीत खेमटा ताल में हैं. घाग् धीना गीन् ताक् तीना गीन... लेकिन दोनों गीतों के ताल का ठेका और वजन अलग है. मजा यह है कि राग एक, ताल एक, गीत का भाव एक फिर भी दोनों गीत एक दूसरे से काफी अलग. जुडवे बच्चों के जैसे दोनों गीत हैं फिर भी दोनों की पहचान अलग है. यह है शंकर जयकिसन के सर्जकता की कमाल.
इतने से दोनों को संतोष नहीं हुआ होगा इस लिये भैरवी की और एक छटा भी प्रस्तुत की है. यह गीत में कहरवा ताल है और इस की खुबी यह है कि इस गीत में उस समय के बांसुरी के शहनशाह पंडित पन्नालाल घोष ने अपनी बांसुरी का करिश्मा इस गीत की सजावट में दिखाया है. वैसे तो शंकर जयकिसन के साथ सुमंत राज, मनोहारी सिंघ आदि बांसुरीवादक थे लेकिन बसंत बहार में जिस तरह पंडित भीमसेन जोशी को लाये ठीक उसी तरह पंडित पन्नालाल घोष को भी बांसुरी बजाने के लिये शंकर जयकिसन ने राजी कर लिये थे. उन को राजी करने के लिये शंकर जयकिसन ने सरोदवादक ऊस्ताद अली अकबर खान की सहाय ली थी. यह उन दिनों की बात है जब पंडित रविशंकर, ऊस्ताद अली अकबर खान, ऊस्ताद अल्ला रख्खा वगैरह फिल्म संगीत की साथ जुडे हुए थे. पंडित पन्नालाल घोष भी ऊस्ताद अली अकबर खान के पिता और गुरू उस्ताद अल्लाउद्दीन खान के शागिर्द थे.
पन्नाबाबु ने जिस गीत में अपनी बांसुरी छेडी वह गीत था मैं पिया तेरी, तू माने ना माने, दुनिया जाने, तू ना जाने ना जाने, काहे को बजाये तू मीठी मीठी तानें.. इस गीत में पन्नाबाबु की बांसुरीने जादु बिखेरा था. परदे पर ऐसा द्रश्य था कि कथा नायक (भारत भूषण ) बांसुरी बजाते हैं और नीम्मी नृत्य करती है. तर्ज में एक प्रकार का आर्जव और बिनती का भाव है. शंकर के नेतृत्व में दत्ता रामने खास वजनवाला कहरवा बजाया है. लय की थोडी सी हरकतें लाला गंगावणे की है. लय ऐसा है कि सुननेवाला भी झूम ऊठे.
इस के साथ ही बसंत बहार के गीतों का आस्वाद यहां समाप्त होता है.
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