शंकर जयकिसन-44
केतकी गुलाब जुही.. के रेकोर्डिंग में पंडित भीमसेन जोशी और मन्ना डे
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ऊस्ताद अमीर खान के सुझाव पर शंकर जयकिसन ने पंडित भीमसेन जोशी को फिल्म बसंत बहार में गाने के लिये राजी कर लिये. लेकिन तब खडी हुई एक विचित्र दुविधा. वैसे तो बैजु बावरा के वक्त ऐसी ही दुविधा संगीतकार नौशाद को भी सहनी पडी थी. पहले बैजु बावरा की बात करें, बाद में बसंत बहार की. हुआ युं कि बैजु बावरा में बैजु अपनी गायकी से तानसेन को पराजित करता है और तानसेन के अभिमान का खंडन करता है.
जब डी वी पलुस्कर को यह बात बताई गई तो उन्हों ने गाने से ईन्कार किया. क्यं ? तो पलुस्करजी बोले, मैं कौन होता हुं ऊस्ताद अमीर खान साहब को हरानेवाला ? कहां वे और कहां मैं ? यह तो नहीं हो सकता. संगीतकार नौशाद और स्वयं ऊस्ताद अमीर खान ने उनको समजाया कि तुम्हें अमीर खान को नहीं हराना है, तानसेन को हराना है. वैसे भी तानसेन वयस्क थे और बैजु जवान था. मैं प्रौढ हुं और आप जवान हैं. आप की आवाज में यौवन है, इस लिये तुम्हें पसंद किया गया है. काफी समजाने के बाद पलुस्कर तैयार हुए थे. बैजु बावरा वो जुगलबंदी तुम्हरे गुण गाऊं बिगडी बना दो... और आज गावत मन मेरो...बेशक चिरंजीव बन गई.
वैसी ही दुविधा यहां खडी हुई. पंडित भीनसेन जोशी के साथ गाने की बात आयी तब मन्ना डे चौंके. क्या ? मुझे पंडित भीमसेन जोशी के साथ गाना है ? और उनको पराजित करना है ? यह कैसे हो सकता है ? कहां पंडितजी और कहां मैं, यह नहीं हो सकता है... शंकर जयकिसन ने कई बार रेकोर्डिंग की योजना की लेकिन मन्ना डे हमेशा भागते रहे. बार बार रेकोर्डिंग केन्सल करना पडा. पंडित भीमसेन जोशी उन दोनों काफी व्यस्त थे. महिने में बीस बाईस दिन प्रोग्राम करते थे. उन्हों ने जयकिसन से पूछा, आखिर बात क्या है, रेकोर्डिंग क्यों नहीं कर रहे हो ? जयकिसन ने उन को सारी बात बताई. भीमसेनजी ने कहा, चलिये मैं आप के साथ आता हुं. हुम दोनों मन्ना डे को समजाते हैं. दोनों ने मन्ना डेको बहुत समजाया. स्वयं मन्ना डे की पत्नी ने भी पतिदेव का हौसला बढाया ऐसा मन्ना डेने अपनी आत्मकथा में लीखा है. भीनसेनजीने मन्ना डे से कहा, मैं तो आप का फेन हुं. आप मेरे साथ गाईये ऐसी मेरी भी ईच्छा है. बहुत समजाने के बाद मन्ना डे राजी हुए.
आप के ध्यान में आया होगा की मन्ना डे की सीधी सादी गायकी के सामने पंडित भीमसेनजी की मंजी हुई गायकी कैसा रंग जमाती है. आसमान में चमकती बीजली की तरह पंडितजी इस गीत में तानबाजी करते हैं.
शास्त्रीय संगीत में अक्सर बारह मात्रा के द्रुत लय के एकताल में बडे बडे कलाकार गाते हैं. यह ताल थोडा विकट है और पर्याप्त रियाझ न होवे और अपने कंठ पर पर्याप्त काबु न होवे तो गायक कामियाब नहीं हो पाता.
यह गीत राग बसंत बहार में और द्रुत एकताल में निबद्ध है. बसंत और बहार दोनों ऋतुप्रधान राग है. मन्ना डेने बहुत दिनों तक रियाझ किया और तत्पश्चात् ध्वनिमुद्रण के लिये राजी हुए. शंकर जयकिसन खुशनसीब थे कि बहुत रिटेक नहीं करने पडे. स्वयं पंडितजीने मन्ना डे का हौसला बढाया था इस लिये मन्ना डे का आत्मविश्वास पुनः द्रढ हो चूका था और रेकोर्डिंग बिना किसी अवरोध के हो गया.
शंकर जयकिसन ने सिर्फ यह एक गीत बनाया होता तो भी काफी था. लेकिन जैसे कि उन्हों ने तय किया था, इस फिल्म के सभी गाने राग आधारित थे. दूसरे गीतों की बाद आनेवाले अध्याय में करेंगे.
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