शंकर जयकिसन-43
पिछले अध्याय में हम बात कर रहे थे कि बैजु बावरा के बाद चारों और नौशाद नौशाद हो रहा था तभी शंकर जयकिसन ने भी सभी गीत राग आधारित हों ऐसी फिल्म करने का मन बनाया. ऐसा मौका उन्हें आर चन्द्रा नाम के फिल्म सर्जक ने दी. विश्व भारती प्रोडक्शन्स नाम की कंपनी ने यह फिल्म बनाई जिस का शीर्षक था बसंत बहार. भारतीय संगीत में ऋतु प्रधान थोडे राग हैं. बसंत और बहार ऐसे ही ऋतु प्रधान राग हैं. इस फिल्म में बसंत और बहार दोनों रागों का समन्वय था.
विजय भट्ट की बैजु बावरा में ईतिहास और कल्पना का मिश्रण था. बसंत बहार एक काल्पनिक कथानक पर आधारित फिल्म थी. प्रसिद्ध कन्नड साहित्यकार तालुकु रामस्वामी सुब्बाराव (जो कि तारासु के नाम से भी प्रसिद्ध थे) उन के एक उपन्यास हंसगीती पर फिल्म बसंत बहार की कथा आधारित थी. बैजु बावरा में एक ही गुरु के दो शिष्य तानसेन (गायक अभिनेता सुरेन्द्र) और बैजु (भारत भूषण) की स्पर्धा थी. हंसगीती में पडौश में रहनेवाले दो युवा कलाकारो की स्पर्धा थी.
एक बात विचारप्रेरक है कि बैजु बावरा पचास सप्ताह से भी ज्यादह चली और उस ने जबरदस्त कमाई भी की. बसंत बहार इतनी चली नहीं, न तो उस ने निर्माता को ज्यादा पैसे कमाकर दिये, लेकिन बसंत बहार का संगीत सुपरहिट हुआ. शंकर जयकिसन को इस बात का बडा संतोष हुआ.
और एक बात समजने जैसी है. बैजु बावरा में ईंदोर घराने के दिग्गज ऊस्ताद अमीर खान और ग्वालियर घराने के दिग्गड पंडित दत्तात्र्य विष्णु पलुस्कर के गायन की जुगलबंदी थी. डी वी पलुस्कर युगसर्जक संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के बेटे थे. बसंत बहार के हीरो भारत भूषण स्वयं ने छोटे पलुसकरजी की नम्रता का अनुभव किया था इस लिये वे बसंत बहार में भी छोटे पलुस्कर को लेना चाहते थे. भारत भूषण स्वयं थोडा बहुत संगीत जानते थे.
इस तरफ शंकर जयकिसन भी ऊस्ताद अमीर खान को पहचानते थे. जयकिसन ने लता की सहाय से बम्बई के पुष्टिमार्गी वैष्णव बडे मंदिर के आचार्य श्री मुकुंदरायजी गोस्वामीजी का संपर्क किया. गोस्वामीजी वीणा बजाते थे और नौशाद की थोडी फिल्मों में वीणा बजाई थी. वे ऊस्ताद अमीर खान के शिष्य थे. गोस्वामीजी के साथ जयकिसन ऊस्ताद अमीर खान को मिले.
ऊस्तादजी ने बडे प्यार से जयकिसन को समजाया कि अभी अभी मैंने बैजु बावरा में गाया है. लोग नौशाद और तुम्हारे संगीत की तुलना करना शुरु कर देंगे. बहेतर है किसी और कलाकार को आजमाओ. ऊस्तादजी ने किराना घरानेके दिग्गज पंडित भीमसेन जोशी के नाम का सुझाव दिया और कहा कि मैं तुम्हारे लिये उन से बात करुंगा.
भीमसेन तो संगीत की भाषा में कहें तो सही अर्थ में 'तान'सेन थे. बचपन में कडा व्यायाम कर के और एक डेढ लिटर दूध पीकर उन्हों ने तबियत बनाई थी. जब गाते थे तो तीनताल के सात आठ आवर्तनों तक तान मार सकते थे. जयकिसन को भीनसेनजी के नाम का सुझाव पसंद आया. वे पंडितजी को मिले और अपनी फिल्म के लिये गाने को राजी कर लिया.
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