शंकर जयकिसन-42
फिल्म संगीत के स्वर्णयुग में सभी संगीतकारों ने शास्त्रीय राग आधारित गीत बनाये. लेकिन विजय भट्ट की फिल्म बैजु बावरा के बाद चारों और संगीतकार नौशाद की वाह् वाह् होने लगी. ऐसा माहौल बन गया कि शास्त्रीय राग आधारित गीतों के बारे में नौशाद बेमिसाल है. उन की जोड नहीं है. बैजु बावरा में नौशादजीने शास्त्रीय संगीत के दो दो धुरंधर कलाकारों को आजमाया था- इंदोर घराने के दिग्गज उस्ताद अमीर खान और ग्वालियर घराने के पंडित डी वी पलुस्कर. अतैव हर तरफ नौशाद नौशाद होने लगा. बैजु बावरा ने स्वर्ण जयंती मनाई थी अर्थात् यह फिल्म पचास सप्ताह तक चली थी.
वैसे देखा जाय तो नौशाद की तरह अन्य संगीतकारों ने भी जहां जहां अवसर प्राप्त हुओ वहां बेमिसाल राग आधारित गीत दिये और वे सभी गीत भी लोकप्रिय हुए. लेकिन बैजु बावरा के बाद चारों तरफ नौशाद नौशाद होने लगा. यह स्वाभाविक भी था. कामियाबी के बहुत रिश्तेदार हो जाते हैं. कामियाबी सभी को भाती है, सभी कामियाब व्यक्ति की प्रशंसा करने लगते हैं.
अब शंकर जयकिसन भी मेरे-आप के जैसे खून-मीट्टी के बने इन्सान थे. वे भी संगीतकार थे. दूसरे संगीतकारों ने और शंकर जयकिसन ने भी राग आधारित गीत बनाये थे. शंकर जयकिसन को नौशाद की यह वाह् वाही की ज्यादगी से हो सकता है, शायद थोडा बूरा लगा होगा. इस वाह् वाहीने शंकर जयकिसन को सभी गीत शास्त्रीय राग आधारित हो ऐसी फिल्म बनाने की प्रेरणा मीली. साथ ही शास्त्रीय संगीत के किसी दिग्गज के कंठ में गीत गवाने का अवसर वे ढूंढ रहे थे.
इस बात को आगे बढाने से पहले एक बात करना उचित समजता हुं. शंकर जयकिसन का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग मानते हैं कि इन दोनों ने भैरवी और शिवरंजनी में ही सारे गाने दिये हैं. यह मान्यता गलत है. हकीकत यह है कि इन दोनों ने दूसरे रागों का भी बखूबी उपयोग किया है. सिर्फ भैरवी और शिवरंजनी दो रागिनीयों के जोर पर यह दोनों तीन साडे तीन दशक तक टीके नहीं हैं.
भैरवी और शिवरंजनी के उपरान्त इन दोनों ने यमन, मालकंस, पीलु, शुद्ध कल्याण, नटभैरव, भूपाली, बसंत बहार, गारा, सिंध भैरवी, बसंत मुखारी, चारुकेशी, आसावरी, झिंझोटी, रागेश्री, कीरवाणी, मियां की तोडी, कलावती, बिहाग, पहाडी, दरबारी वगैरह रागों का भी अपने गीतों में सुंदर उपयोग किया है. उस की बात हम आगे चलकर करेंगे.
यहां ध्यान दिजीये- इस रागों में बहुत सारे राग दक्षिण भारतीय संगीत अर्थात् कर्णाटक संगीत के है. मिसाल के तौर पर चारुकेशी, कीरवाणी, कलावती. कहने का तात्पर्य यह है शंकर जयकिसन ने भारतीय शास्त्रोक्त संगीत की दोनों शाखाओं के रागों का इस्तेमाल अपने संगीत में किया और ऐसा किया कि आम आदमी भी थोडे रागों को अनायास पहचानने लगा,
सभी गीत राग आधारित थे वैसी फिल्म की बात अगले अध्याय में करेंगे. तब तक इंतेजार कीजिये.
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