पहले दशक के बाद तजुर्बे करने को तैयार हो गये थे

 शंकर जयकिसन-41

 

पिछले कई सप्ताहों से सोनी टीवी चेनल पे ईन्डियन आईडोल नाम का संगीतमय कार्यक्रम प्रस्तुत होता है. इस कार्यक्रम में देश के युवा प्रतिभाओं को अपनी कला प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता है. ऐसे एक एपिसोड में वरिष्ठ संगीतकार प्यारेलालजी अतिथि विशेष के रूप में पधारे थे. यदि आप को याद हो तो इन्हों ने शंकर जयकिसन को ऊस्तादों के ऊस्ताद कहकर इस संगीतकार जोडी को भावांजलि दी थी.

इस के पहले भी एक साक्षात्कार में प्यारेलालजी ने कहा था कि हमने साजिंदे के रूप में शंकर जयकिसन और दूसरे संगीतकारों के साथ काम शुरु किया था. लक्ष्मीकांत मेंडोलीन बजाते थे और मैं वायोलिन बजाता था. आम आदमी को अभिभूत कर दे ऐसी तर्जें बनाने की प्रेरणा हमें शंकर जयकिसन से मीली थी. प्यारेलालजी के यह शब्द शंकर जयकिसन को भावांजलि देने के अतिरिक्त उन दोनों की प्रतिभा की प्रशंसा के समान थे.

हकीकत यह है कि शंकर जयकिसन ने मानव जीवन के सभी प्रसंगो के अनुरूप संगीत परोसा. यहां बात करेंगे एल वी प्रसाद की. प्रसादजी दक्षिण भारत के लब्धप्रतिष्ठ फिल्म सर्जक थे. शंकर जयकिसन ने प्रसादजी की दो फिल्मों में संगीत परोसा- छोटी बहन और बेटी-बेटे. हालांकि यह दो फिल्मों की प्रस्तुति के बीच करीब पांच छः साल का समय गुजर चूका था. दोनों फिल्मों की कथा पारिवारिक-सामाजिक थी.

फिल्म छोटी बहन में शंकर जयकिसन ने अपना पहला राखी गीत दिया. खर्ज से भरी आवाज के मालिक बलराज साहनी, नंदा, रहमान आदि इस फिल्म के कलाकार थे. इस फिल्म का राखी गीत आज भी लोकप्रिय है- भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना... इस गीत को गौर से सुनिये. बंगाल की कोयल ज्युथिका रौय के लिये बनायी गइ बंदिश जिसे बाद में डी वी पलुस्कर और लता मंगेशकर जैसे गायकोंने भी प्यार से प्रस्तुत की वह भक्तिगीत पायो जी मैंने रामरतन धन पायो... गुनगुनायें. अब शंकर जयकिसन का राखी गीत गाकर देखिये. दोनॉ तर्ज में कितन समानता है क्यूं कि दोनों ही तर्ज एक ही राग पर आधारित है. दोनों की लय भी समान है.



फिल्म छोटी बहन की बात करते वक्त और एक बात समज लेना जरूरी है. कारकिर्द के पहले दशक के बाद शंकर जयकिसन में इतना आत्मविश्वास आ ही चूका था कि हटकर कुछ नये तर्जुबे करें. उन के पुरुषार्थ को प्रारब्ध का भी साथ था इस लिय़े वे तजुर्बे कामियाब भी हुए. 

एक गीत की बात यहां विशेष रूप से करनी है. कभीकभार ऐसा हो जाता है कि हम किसी नये गायक को सुनने पर गलतफहमी कर बैठते हैं कि यह गीत फळां गायक ने गाया है. मिसाल के तौर पर गायक मनहर और नीतिन मुकेश दोनों ही मूकेश की शैली में गाते रहे हैं.  कभी कभी पहचानना मुश्किल हो जाता है. खुद मूकेश शुरु शुरू में सायगल की तरह गाते थे. 

यहां जिस तजुर्बे की बात करनी हैं वह यह है. फिल्म छोटी बहन का यह गीत याद किजीये- मैं रंगीला प्यार का राही दूर मेरी मंजिल... गायक संगीतकार हेमंत कुमार जैसी आवाज के मालिक सुबीर सेन नाम के नये गायक को शंकर जयकिसन ने इस गीत के लिये आजमाया. 

शुरु में दर्शकों को ऐसा लगा की यह गीत हेमंत कुमार की आवाज में है. लेकिन ऐसा नहीं था. यह आवाज सुबीर सेन की थी. सुबीर सेन और लता ने यह गीत गाया था. गीत हिट हुआ. इस फिल्म के बाद शंकर जयकिसन ने फिल्म कठपूतली में भी सुबीर सेन से गवाया- मंजिल वही है प्यार की राही बदल गये... यह बात अलग है कि सुबीर सेन को फिल्म संगीत में ज्यादह कामियाबी नहीं मीली. इस तजुर्बे की बात करने की वजह यह थी की शंकर जयकिसन ने एक नई प्रतिभा को मौका दिया था. एक नया तजुर्बा किया था.

फिल्म छोटी बहन के सभी गीत लोकप्रिय हुए थे. फिल्म के तीन गीत में राग पहाडी का आधार लिया गया था और तीनों गीत हिट हुए थे- मैं रंगीला प्यार का राही..., मैं रिक्शावाला मैं रिक्शावाला... और भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना...


Comments