शंकर जयकिसन-40
सामवेद की ऋचाओं से बना शास्त्रीय संगीत, देश के हरेक प्रदेश का अपना लोकसंगीत जैसे कि पंजाब का भांगडा, गुजरात के गरबा, उत्तर प्रदेश का आल्हा और रामलीला, बंगाल का बाऊल, महाराष्ट्र का कोळीगीत और लावणी, हरेक प्रदेश का अपना नाट्यसंगीत, इन सभी के अतिरिक्त घर घऱ में गूंजती लोरी, होरी गीत, राखी के गीत, जन्माष्टमी के भक्तिगीत... भारतीय संगीत कितना हराभरा है यह सोचते ही दिमाग चकरा जाता है.
मेवाड की महारानी-भक्त मीरां के शब्दों में कहें तो चोर न लूटे वाको खर्च्यो न खूटे... भारतीय संगीत का भंडार अखूट है. आज इस बात से शुरूआत कर रहा हुं क्यों कि थोडे विघ्नसंतोषी लोग ऐसा आक्षेप करते हैं कि शंकर जयकिसन ने बिदेशी संगीत को जोरों पर कामियाबी हासिल की थी. यह लोग कहते हैं कि बिदेशी धूनों की चोरी का प्रवाह शंकर जयकिसन से शुरु हुआ.
यह आऱोप ना ही सिर्फ बेबुनियाद है, यह आरोप महज जलन और ईर्षा की वजह से किया गया है. शंकर जयकिसन के पुरोगामी संगीतकारों ने भी पाश्चात्य संगीत के धूनें ऊठायी है. हकीकत कुछ और है.
अक्सर ऐसा होता रहा है कि होलिवूड की सुपरहिट फिल्मों की कहानी का भारतीय स्वरूप बनाकर हिन्दी फिल्में बनती रही. मिसाल के तौर पर इट हेपन्ड वन नाईट फिल्म की कथा का आधार लेकर राज कपूर और नरगिस को लेकर फिल्म चोरी चोरी बनी. ऐसा रूपांतर करते वक्त भारतीय संनिवेश, पात्रों का भारतीय स्वरूप, स्थान (लोकेशन) इत्यादि सभी बातों की कायापलट करनी पडती है. यही बात फिल्म के संगीतकार को याद रखनी पडती है.
विश्वविख्यात गायक संगीतकार माईकल जेक्सन ने एक साक्षात्कार में कहा था के जब मैं बहुत थककर सो जाता हुं तब कभी कभी मेरे ख्वाबों में गीत और संगीत मुझे मिलते हैं. कुछ ऐसा ही संगीतकार नौशाद ने कहा है. फिल्म अनमोल घडी के आवाज दे कहां हैं.. गीत के बारे में उन्हों ने कहा है कि मैंने भरपुर कोशिश की लेकिन गीत का दूसरा अंतरा मैं बना नहीं पा रहा था. एक शाम खुदा की ईबादत कर के मैं सो गया. देर रात को मेरे ख्वाब में यह अंतरा सूझा. मैं फौरन जाग गया और वह अंतरे की स्वरलिपि (नोटेशन) लिख लिया.
तो ऐसा भी होता है.
नौशाद साहब के समधि और वरिष्ठ गीतकार मजरूह सुलतानपुरीने भी कहा है कि हमेशा ऐसा नहीं हो सकता कि तर्ज पहले तैयार हो और बाद में गीत लिखा जाय. यह तो ऐसी बात हुइ की पहले कोफिन तैयार हो बाद में कोफिन के माप का मुर्दा लाया जाय. क्या बकवास है...
ठीक है, कभी कभी किसी बिदेशी धून का सहारा लेकर हमारे सभी संगीतकारों ने धून बनायी है. लेकिन ऐसे गीत कितने ? शंकर जयकिसन ने 180 फिल्मों में संगीत परोसा. यदि प्रत्येक फिल्म में सात आठ गीत है ऐसा मानकर चलें तो 1250 से 1400 गीत हुए. इन सभी गीतों में बिदेशी धून कितनी ? यह तो ऐसे लोगों की बात है जो कि स्टेडियम में बैठकर बोलते रहते हैं कि सचिन तेंडुलकर ने यह बोल ठीक से नहीं खेला. जब तक यह लोग खुद पीच पर नहीं हो ते तब तक सचिन की तकलीफ को समज नहीं पायेंगे.
हकीकत में ऐसी थोडी वेबसाईट्स भी ऐसे दिवाने लोगों ने तैयार की है. इस वेबसाईट पर हमारे सभी संगीतकारों को चोर-ऊठाउगीर बताये गये हैं. ऐसी बातें ना हीं सिर्फ हमारे संगीतकारों का अपमान है, भारतीय संगीत का भी अपमान है. ऐसे नकारात्मक (नेगेटिव) लोगों के दिमाग की मनोचिकित्सकों द्वारा सुश्रुषा करानी चाहिये.
मैं पिछले अध्यायों में ऊस्ताद अमीर खान साहब की बात कर चूका हुं. आप सच मानिये, ऊस्ताद अमीर खान और उन के सालेसाहब सितारवादक ऊस्ताद विलायत हुसैन खान ने एक से ज्यादह साक्षात्कारों में हमारे फिल्म संगीतकारों को दिव्य अवतार जैसे बताये हैं. विलाय़त खान साहब के करीबी रिश्तेदार रईस खान ने शंकर जयकिसन के बहुत सारे यादगार गीतों में सितार बजाई है.
यहां संगीतकार नौशाद को भी याद करना चाहता हुं. नौशाद साहब ने अपनी एक गजल में लिखा है- अभी साजे दिल में तराने बहुत है, अभी जिंदगी के बहाने बहुत है, दर-ए- गैर पर भीख मागो न फन की, जब अपने ही घर में खजाने बहुत हैं... मैंने संगीतकार अजित मर्चंट, दिलीप धोळकिया और कल्याणजी आनंदजी को सर्जन करते हए देखा है इस लिये मैं कह सकता हुं कि हमारे संगीतकारों ने जो काम किया है वह बिदेशी संगीतकारों से जरा भी कम नहीं है. जिसे हम फिल्म संगीत का स्वर्णयुग कहते हैं, उस समयावधि में हमारे संगीतकारों ने खूनपसीना बहाकर श्रेष्ठ सर्जन किया है इस बात में कोइ शक नहीं है. कभीकभार गीत की बंदिश आसमान में चमकती बीजली की तरह बन जाती है और कभी कभी एक गीत के लिये पंद्रह बीस दिन भी लग जाते हैं. संगीत का विद्यार्थी होने के नाते मैं यह बेझिझक कह सकता हुं.
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