शंकर जयकिसन-38
पिछले अध्याय से हमने शंकर जयकिसन के शिशु गीतों की चर्चा शुरु की है.
एक ईत्तेफाक ऐसा है कि शिशु गीतों में संवेदनशील गीतकार शैलेन्द्र का भी बहुमूल्य प्रदान रहा है. बूट पोलिश फिल्म में दिये भाववाही गीतों के बीच शैलेन्द्र ने मस्तीभरे शिशु गीत भी बहुत सुंदर दिये हैं. इस अध्याय में ऐसे खुशमिजाज गीतों की बात करते हैं.
बात है फिल्म ब्रह्मचारी की. इस फिल्म में शम्मी कपूर हीरो थे. इस फिल्म का एक गीत है- चक्के पे चक्का, चक्के पे गाडी, गाडी में नीकली अपनी सवारी... इस गीत की तर्ज बनाते वक्त शंकर जयकिसन ने दो बातें ध्यान में रखी है. एक, बच्चों को गीत पसंद पडना चाहिये. दो, शम्मी कपूर की डान्स शैली और नटखट अभिनय को भी इस गीत द्वारा मौका मिलना चाहिये.
थोडा गौर फर्माइये. गीत के अंतरे में शम्मी कपूर अपने साथ कार में बैठे बच्चों की विशेषता का वर्णन करते हैं- चुन्नु छबीले, मुन्नु हठीले, मखमल की टोपी, छोटु रंगीले, लालु बटाटा, लाली टमाटा... संगीतकारों ने यहां जिस तरह की तर्ज और लय दिये हैं, वह सभी उम्र के दर्शकों को लुभा गये थे. ऐसा तजुर्बा शंकर जयकिसन के पहले किसी ने नहीं किया था.
ब्रह्मचारी की कथा से प्रेरणा लेकर बहुत सालों बाद बोनी कपूर ने मिस्र्टर इन्डिया फिल्म बनायी थी और उस के हीरो अनिल कपूर ने ब्रह्मचारी जैसा एक शिशु गीत बनाने की कोशिश की थी. यह बात अलग है कि दर्शकों को मोगाम्बो (अमरीश पुरी ) ज्यादा याद रह गये.
बूट पोलिश (1953-54) के बात ऐसा यादगार शिशु गीत तैयार करने का अवसर शंकर जयकिसन को ब्रह्मचारी (1967-68) में मिला था. ब्रह्मचारी के बाद शंकर जयकिसन ने ऐसा ही हलका फुलका गीत दिया फिल्म अंदाज में. 1975 में जिन्होंने फिल्म शोले बनायी थी वह रमेश सिप्पी की यह फिल्म थी. फिल्म जगत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना, हेमा मालिनी और शम्मी कपूर की इस फिल्म में एक मजेदार शिशु गीत था.
शंकर जयकिसन की यह अंतिम सुपरहिट फिल्म. 1971 के एप्रिल में यह फिल्म रिलिझ हुयी और इसी साल के सितंबर में सिर्फ 41 साल की उम्र में जयकिसन इस फानी दुनिया को छोड गये. अंदाज में हसरत जयपुरी की दो रचनाएं थी और दोनों हिट हुइ थी. शीतल (हेमा मालिनी) और रवि (शम्मी कपूर) के बीच नया नया प्यार हुआ है. दोनों के बच्चे आपस में मिलझुल चूके हैं और बच्चे यह गीत से शीतल और रवि के प्यार को समर्थन देते हैं. वह गीत था पापा को मम्मी से मम्मी को पापा से प्यार है... तर्ज में ताजगी और नयापन महसूस होता है. शब्दों के महत्त्व को तर्ज के जरिये प्रस्तुत किया गया है. इसी फिल्म के और एक गीत की बात अगले अध्याय में करेंगे.
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