शंकर जयकिसन के यादगार भक्तिगीत

 शंकर जयकिसन-36


फिल्म संगीत के स्वर्णयुग में संगीतकारों ने ढेर सारे भक्तिगीत भी दिये. जरूरी नहीं कि सभी भक्तिगीत धार्मिक कथानकवाली फिल्मों के लिये रचे गये. बहुत सारे भक्तिगीत ऐसे भी हैं जो कि सामाजिक या हृदयस्पर्शी कथानकवाली फिल्मों के लिये बनाये गये. सभी संगीतकारों ने भक्तिगीत दिये हैं. जैसे कि ईन्साफ का मंदिर है यह भगवान का घर है... (फिल्म अमर, संगीत नौशाद), तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो... (मैं चूप रहुंगी, चित्रगुप्त), आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है... (नया दौर, ओ पी नय्यर), अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम (हम दोनों, जयदेव), सुख के सब साथी दुःख में न कोइ (गोपी, कल्य़ाणजी आनंदजी) वगैरह.   

अंदाजन तीन दशक की अपनी कारकिर्द में शंकर जयकिसन ने भी थोडे यादगार भक्तिगीत दिये. संख्या कम है लेकिन भक्तिगीत हंमेशा की तरह यादगार दिये हैं यह हकीकत है. बात ऐसी है कि किस फिल्म में कहां भक्ति गीत की जरूरत पडेगी वो निर्णय निर्देशक करते हैं. शंकर जयकिसन को शायद भक्तिगीत देने का अवसर कम मिला, अपितु गीत बडे मनोहर बने हैं.

क्षणिक गुस्से में एक हत्या करने के बाद महिला संरक्षण गृह में लायी गयी और कपोत की तरह भोली भाली एक किशोरी को भावनात्मक सपोर्ट देने के लिये संरक्षण गृह में एक प्रार्थना होती है. फिल्म थी सीमा. गृह की एक महिला ओर्गन पर बैठी है और प्रार्थना शुरू होती - तु प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम... मन्ना डे के स्वर में यह प्रार्थना अत्यंत भाववाही बनी है. 

इस गीत की खूबी यह है कि कथानक को आगे बढाने में यह गीत निमित्त नहीं बनता है लेकिन नायिका (नूतन) की मनोदशा को व्यक्त करने में यह गीत कामियाब होता है. खुद मन्ना डेने एक साक्षात्कार में अपने पसंदीदा गीतों में इस गीत को स्थान दिया है.

और एक गीत का प्रभाव तो इतना गहरा था कि फिल्म का अंत आने पर भी दर्शक अपनी बैठक के पास अदब से खडे रहते थे. इस गीत की एक झलक मैं  पिछले अध्यायों में दे चूका हुं. श्रीधर की फिल्म दिल एक मंदिर की बात है. फिल्म का अंत आ रहा है, राम (अभिनेता राज कुमार ) और सीता (मीनाकुमारी) मर्हुम डॉक्टर धर्मेश की माताजी को धर्मेश की प्रतिमा का अनावरण करने के लिये निमंत्रित करते हैं और पार्श्वभूमि में यह गीत बजता है- दिल एक मंदिर है ,प्यार की इस में होती है पूजा, यह प्रीतम का घर है... मुहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर ने बडे ही प्रेम से यह गीत की जमावट की है. शैलेन्द्र के चाहकों के शायद ऐसा लगता है कि यह गीत शैलेन्द्र की कमाल है लेकिन यह गीत हसरत जयपुरी ने लीखा था. रफी गीत का आरंभ जानेवाले कभी नहीं आते... शब्दों से करे, ठीक उसी क्षण दर्शकों की आंखें नम हो जाती थी. एक भी दर्शक अपनी बैठक से हिलता नहीं था ऐसा प्रभाव यह गीत का था. घर जाते वक्त हरेक दर्शक के होठों पर यह गीत रहता था.

इस गीत की विशेषता यह कि यह शीर्षक गीत था लेकिन फिल्म के अंत में आता है और पार्श्वभूमि में बजता है, फिर भी दर्शकों को बहुत प्रभावित करता है. शास्त्रीय संगीत के राग जोगिया में स्वरबद्ध यह गीत छः मात्रा के दादरा ताल में निबद्ध था. कित्येक लोगों को यह गीत भक्तिगीत नहीं भी लगता है, लेकिन हर एक व्यक्ति को अपना अपना मंतव्य होता है. मेरे हिसाब से इस गीत में शब्द, सूर और संवेदन तीनों का अनोखा त्रिवेणी संगम हुआ है. 

और एक भजन फिल्म एक फूल चार कांटे में लताजी के स्वर में था- बनवारी रे जीने का सहारा तेरो नाम हैं... यह शंकर जयकिसन का सर्वोत्तम भक्तिगीत है ऐसा कई लोगों का मानना है.    

एक गीत शैलेन्द्र की कमाल है. सादगीपूर्ण शब्दो में सभी धर्मों के उपदेश का  निचोड शैलेन्द्र के इस गीत में है.  फिल्म तीसरी कसम. गायक मूकेश. गीत यह रहा- सजन रे जूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है.... भैरवी रागिणी और कहरवा ताल में यह गीत सादगी मंडित सौंदर्य से भरा है. अध्यात्म का सार इस  गीत में है.

और एक भक्तिगीत माने बडी देर भयी कब लोगे खबर मोरे राम... फिल्म बसंत बहार के लिये इस गीत को मुहम्मद ऱफी ने गाया है. इस गीत की बात आनेवाले अध्याय में फिल्म बसंत बहार की बात करते वक्त करेंगे. यह गीत सुनते वक्त भक्त कवि सूरदासजी याद आते हैं. इन्हों ने भी एक से ज्यादा भजनों में अब को देर क्यूं भयी प्रभु नंद के दुलारे... जैसा भाव प्रगट किया है.

इसी फिल्म बसंत बहार में और एक भजन है- भयभंजना वंदना सुन हमारी, दरस तेरा मागे यह तेरा पूजारी... नवधा भक्ति में आत्मनिवेदन या आत्मसमर्पण का महिमा है. इस गीत में आत्मनिवेदन का भाव है. इस गीत की बात भी बसंत बहार फिल्म के साथ करेंगे.

बसंत बहार के और एक भक्तिगीत का उल्लेख भी यहां उचित होगा. मुहम्मद ऱफी के स्वर में प्रस्तुत वह भजन माने दुनिया न भाय मोंहे अब तु बुला ले...

शंकर जयकिसन की विशेषता यहां प्रगट होती है. एक तरफ सजन रे जूठ मत बोलो जैसी सीधी सादी बंदिश है और दूसरी तरफ बसंत बहार के तीनों भक्तिगीत शुद्ध शास्त्रीय राग आधारित बनाये हैं.

संगीतकार नौशाद के जीवन आधारित किताब मैं लीख रहा था तब एक बार नौशादजीने कहा था- इन दोनों संगीतकार आम आदमी की नब्ज पहचान चूके थे. आम आदमी को कैसा संगीत पसंद है इस बात का पूरा पूरा ख्याल शंकर जयकिसन को था... नौशाद जैसे वरिष्ठ संगीतकार का यह अभिप्राय सोचने लायक है. 


Comments