दक्षिण की सुपरस्टार अभिनेत्री को डान्स के स्टेप्स दिखाये

 शंकर जयकिसन-34




बहुत ही मजेदार बात है. करीब 1954-55 में राम राज्य और बैजु बावरा जैसी कामियाब फिल्म बनानेवाले विजय भट्ट पटरानी नाम की एक कोस्च्युम फिल्म बना रहे थे. साऊथ ईन्डिया से फिल्मों में आयी नर्तकी अभिनेत्री वैजयंतीमाला इस फिल्म की हीरोईन थी. शंकर जयकिसन संगीत परोस रहे थे.

वैजयंतीमाला भरतनाट्यम् की आला दरजेकी नृत्यांगना थी. फिल्म के लिये लता ने गाये न जाने तुम कौन मेरी आंखों में समा गये, सपनों के मेहमान बन मेरे दिल में आ गये... गीत का रिहर्सल चालु था. एक जगह डान्स के स्टेप में वैजयंतीमाला शत प्रतिशत प्रदान नहीं कर पा रही थी. न तो वैजयंती को संतोष हो रहा था न तो डान्स डायरेक्टर और डायरेक्टर को संतोष हो रहा था.

शास्त्रीय गायन में जिस तरह तान पलटे होते हैं वैसे ही लयबद्ध टुकडे नृत्य में होते हैं. मृदंग या पखावज पर यह टुकडे बजते हैं और नृत्यकार उस के साथ अपना नृत्य पेश करते हैं. शंकर जयकिसन ने बहुत बढिया सांगीतिक टुकडे तैयार किये थे. वैजयंती वह टुकडे को प्रस्तुत करने में कुछ न कुछ गडबड कर देती थी. उस के प्रयत्न काबिल-ए-दाद थे लेकिन बात बन नहीं रही थी.



उस वक्त शंकरजीने वैजयंतीमाला के अहं को हानि न पहुंचे ऐसी विनम्रता से कहा, यदि आप को कइ एतराज न हो तो मैं कुछ सूझाव पैश करुं ? शंकरजी दक्षिण भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना कृष्णा कुट्टी के साथ काम कर चूके हैं यह बात वैजयंतीमाला जानती थी. अपने अहं को बीच में लाये बगैर वैजयंती ने हां कही.

शंकरजीने डान्स का वह टुकडा इतनी खूबसुरती से कर के दिखाया कि सेट पर जितने लोग हाजिर थे उन सब ने तालीयों की बौछार कर दी. वैजयंती भी खुश हइ. तत्पश्चात् ऐसा हुआ कि जिस फिल्म में वैजयंती हीरोइन और शंकर जयकसिन संगीतकार रहे उन सभी के सेट पर वैजयंती तीरछी नजर से शंकरजी की ओर देख लेती. उसे तसल्ली हो जाती कि शंकरजी को संतोष हुआ  है.

यदि जयकिसन रोमान्सरंगी गीतों की तर्ज बनाने में माहिर था तो शंकरजी इन सभी के अतिरिक्त नृत्यगीतों की तर्ज बनाने में निपुण थे. कभीकभार संगीतकार खय्याम जैसा अनुभव भी हो जाता. लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ. खय्याम ने एकबार कहा था कि फिर सुबह होगी के टाईटल गीत के लिये मैंने पांच छः तर्ज बनाई थी. फिल्म के हीरो राज कपूर सिगारेट पीते रहे और सुनते रहे. उन के चहेरे पर कोइ जजबात नहीं दिखते थे अतैव मैं टेन्शन में आ गया था.

कुछ ऐसा ही शंकर के साथ भी हुआ था. फिल्म श्री 420 के रमैया वस्तावैया गीत बनाते वक्त यह घटना हुयी. शंकरजी एक के बाद एक तर्ज सुनाते रहे और राज कपूर पथ्थर जैसा चहेरा बनाकर सुनते रहे. हालांकि उन्हों ने शंकर की बनायी हुइ रमैया वस्तावैया..की तर्ज का स्वीकार कर लिया था फिर भी वे अपने चहेरे पर पसंद नापसंद दिखाते नहीं थे. वह आला दरजे के अभिनेता थे और चहेरे को निष्प्राण बनाये रखने में उस्ताद थे.  

ढाई तीन दशक की कारकिर्द में शंकर जयकिसन ने बहुत सारे डान्स गीत दिये. कभीकभार तो ऐसा होता था कि गीत का फिल्मांकन किस तरह किया जायेगा ऊस की कल्पना भी वे कर लेते और तदनुसार गीत का पार्श्वसंगीत तैयार करते. उन का अंदाज सही नीकलता था. एक गीत आप को याद करा दुं.

फिल्म सूरज का गीत था, कैसे समजाउं बडे नासमज हो... गीत में शास्त्रीय संगीत का 16 मात्रा का तीनताल बजता है क्यूं कि वैजंयती माला शास्त्रीय नृत्य में माहिर थी. लेकिन राजिन्दर कुमार अच्छा डान्सर नहीं था. इस बात को ध्यान में रखते हुए शंकर जयकिसन ने गीत के पाऱ्श्वसंगीत में आठ मात्रा का सीधासादा कहरवा बजाया था ताकि राजिन्दर कुमार को वैजयंतीमाला के साथ स्टेप्स मिलाने में कोइ दिक्कत न हो. 

इस तरह सभी अदाकारों के अहं को सम्हालते हुए इन दोनों ने शत प्रतिशत उत्तम काम कर दिखाया. कभी किसी के साथ बहस नहीं की. सिर्फ एकबार राज कपूर के साथ माहौल थोडा तंग हुआ था. राज कपूर जिस देश में गंगा बहती है का कथासार सुना रहे थे. उस वक्त शंकरजी थोडे व्यग्र हो कर कह गये थे कि यह डाकुओंवाली कहानी में संगीत के लिये जगह कहां है ? राज कपूर बडे आराम से सिगारेट पीते रहे. बाद में अपना द्रष्टिकोण स्पष्ट किया. शंकर जयकिसन को भी संतोष हुआ. बाद में इन दोनों ने जिस देश में गंगा बहती है का उत्कृष्ट संगीत परोसा.

       


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