संगीत था फिल्मों के लिये, किन्तु मल्टि-डायमेन्शनल (बहु-परिमाणीय) रहा

शंकर जयकिसन-33



शंकर जयकिसन के संगीत का विचार करते हुए मैं सदा अचंभित हो जाता हुं. इन्हों ने संगीत भले ही फिल्मों के लिये तैयार किया, लेकिन इन का संगीत सदैव मल्टि-डायमेन्शनल रहा. वैसे देखा जाय तो फिल्मों में संगीत परोसने में एक प्रकार का बंधन आ जाता है. क्यूं कि फिल्म आखिर तो निर्देशक का मानस संतान है. कथा के प्रवाह को विचलित किये बगैर कहां गीत रखना, कैसा गीत चाहिये और उसका फिल्मांकन कैसे करना यह सब निर्णय निर्देशक का होता हैं. संगीतकार को निर्देशक की कल्पना अनुसार काम करना पडता है. फिर भी आप को ख्याल होगा कि संगीत फिल्म का प्राणवायु है. बगैर संगीत आप फिल्म का मजा नहीं ले पाते. मूगी फिल्मों के जमाने में भी संगीत से ही संवेदन व्यक्त किये जाते थे.

और फिर भी शंकर जयकिसन के संगीत का वैविध्य देखिये. मुहब्बत (जिस में मिलन, बिछडना, बिछडने का दर्द, रुठना-मनाना आदि जजबात आते हैं), पारिवारिक रिश्ते, दोस्ती, खुशी और गम, भक्ति, देशप्रेम, नृत्य, राग आधारित गीत, सुगम संगीत और पाश्चात्य शैली के गीत- इस प्रकार सभी भाव-संवेदन शंकर जयकिसन के संगीत में हम महसूस करते हैं. इन्हों ने कथा के प्रवाह को उपकारक रहे ऐसी तरह संगीत परोसा और उस में भी अपनी सर्जनकला को आबाद रखा. कहां से शुरु करें ?

नृत्यगीत से बात का आरंभ करते हैं. इस में भी दो तीन प्रकार रहेंगे. एकलनृत्य, युगलनृत्य और समूह नृत्य. जैसे कि किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार (फिल्म अनाडी) या मेरा जूता है जापानी (श्री 420) एकल नृत्य है. कैसे समजाउं बडे नासमज हो (सूरज) युगल नृत्य है और बरसात में हम से मिले तुम सजन...(बरसात) और आहा आई मिलन की बेला (आई मिलन की बेला) समूह नृत्य है. 

फिल्म राज कपूर की हो या किसी और अभिनेता की, शंकर जयकिसन के नृत्य गीत श्रोता को भी डान्स करने पर मजूबर कर देता है. थियेटर में कुर्सी पर बैठे बैठे भी वह झूम ऊठता है. यह कमाल संगीत का है. किसी भी जाति-ज्ञाति या शिक्षण संस्था के सालाना कार्यक्रम में देखिये, शंकर जयकिसन के गीतों का जादु नजर आता है. लोग गाते हैं, नाचते हैं. 

इस में भी नये नये अंदाज हैं. जिस देश में गंगा बहती है के तीन चार गाने समूह नृत्य जैसे बने हैं. प्यार कर ले नहीं तो फांसी चड जायेगा..., हम भी हैं तुम भी हो, दोनों हैं आमने सामने... और हो मैंने प्यार किया, हाय क्या जुर्म किया... तीनों गीत एक दूसरे से काफी भिन्न है. लेकिन पहले दो गीत समूह नृत्य के हैं. और तीसरा एकल नृत्य है. तीनों का संगीत एक दूसरेसे काफी अलग है. बागीयों के आत्मसमर्पण की कथा है. लेकिन उस में भी जिस प्रकार से नृत्यगीत हैं वे कथा को उपकारक साबित होते हें. कथा में कहीं भी विक्षेप नहीं प़डता है.

ऐसा कैसे हो सका ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि बम्बई आने से पहले शंकरजी साऊथ इन्डिया में एक शास्त्रीय नृत्य मंडली के साथ काम कर चूके थे. इस लिये नृत्य की सारी बारीकियों को यथार्थ रूप में समजते थे. शास्त्रीय नृत्यविद विविध आंगिक अभिनय और मुद्राओं के जरिये भाव प्रगट करते हैं. यह खूबी शंकरजी समजते थे. इस लिये  नृत्य गीत का संगीत तैयार करते वक्त वे अलग ढंग से काम करते थे. यहा आप को याद दिला दुं कि जिस देश में गंगा बहती है कि कथा चंबल की घाटियों में बसे बागीयों की कथा थी. इस प्रदेश में ज्यादातर लोकनृत्य प्रचलित होते हैं. इस विशेषता को ध्यान में लेकर शंकर जयकिसन ने संगीत परोसा. इस लिये ऐसा कह सकते हैं कि फिल्मों की कथा के बंधन में रहकर भी इन्हों ने मल्टि-डायमेन्शनल संगीत परोसा.

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