शंकर जयकिसन-32
फिल्म संगीत के तीन इक्के....
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दुनिया के सभी साहित्य में नवरस का स्वीकार किया गया है. शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, शांत, वीर, भयानक, अद्भुत, बिभत्स इत्यादि. संगीत के प्रत्येक राग-रागिणी भी एक या दूसरे भाव को प्रगट करते रहे हैं ऐसा शास्त्रीय संगीत के विद्वानों ने स्वीकारा है. जहां तक शंकर जयकिसन की बात है, इन्हों ने कुछ अनोखा कर दिखाया है.
शंकर जयकिसन के बारे में ऐसी मान्यता है कि आप दोनों ने भैरवी रागिणी में अत्यधिक गीत दिये हैं. भैरवी के बारे में बडे बडे संगीतज्ञ दो बात कहते हैं- भैरवी सर्वदा सुखदायिनी और सदा सुहागन भैरवी. दिन के चौबीस घंटे में कभी भी सुनिये, आप को प्रफुल्लित कर देगी, आनंद से भर देगी. जयकिसन को भैरवी इतनी प्यारी थी कि अपनी पुत्री का नाम भी भैरवी रख दिया था.
सच पूछो तो स्वर्णयुग के सभी संगीतकारों ने भैरवी को बहुत प्यार-दुलार किया था. सभीने अपने अपने तरीके से भैरवी में यादगार गीत दिये. मिसाल के तौर पर ईन्साफ का मंदिर है यह भगवान का घर है... और तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा (फिल्म बैजु बावरा, संगीत नौशाद), लागा चुनरी में दाग छूपाऊं कैसे... (दिल ही तो है, रोशन), नाचे मन मोरा मगन धीक् ता धीगी धीगी... (मेरी सूरत तेरी आंखें, एस डी बर्मन), ज्योत से ज्योत जगाते चलो.. (संत ज्ञानेश्वर, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) वगैरह.
शंकर जयकिसन ने भैरवी को थोडा ज्यादा प्यार किया और भैरवी में अनेकविध गीत दिये जिस में अलग अलग भावसंवेदन प्रगट हुए. पिछले अध्यायों में फिल्म बरसात के ऐसे दो गीतों की बात की थी, आनंद से भरपुर बरसात में हम से मिले तुम सजन... और विरह वेदना से भरपुर छोड गये बालम मोंहे हाय अकेला छोड गये... विविध जजबात, विविध संवेदना को इन दोनों ने जिस नजाकत से प्रस्तुत किये हैं उसकी जितनी तारीफ करें, कम है. इन गीतों को सुनिये. आजा सनम मधुर चांदनी में हम...(चोरी चोरी), दिल तेरा दिवाना है सनम.. (दिल तेरा दिवाना), अजी ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा... (एन ईनवींग इन पेरिस) तरवराट और उत्साह से भरे गीत हैं, दूसरी और तेरा जाना दिल के अरमानों का लूट जाना (अनाडी) और दिल अपना और प्रीत परायी...(दिल अपना और प्रीत परायी) में विरह की आग है, सजन रे जूठ मत बोलो... (तीसरी कसम) और दुनिया बनानेवाले क्या तेरे मन में... गीतों में फिलोसोफी का स्पर्श है. संवेदन कोइ भी हो, शंकर जयकिसन की भैरवी सभी संवेदनों में संगीत रसिकों को दिवाना बना देती है. गीत सुनते ही रसिकजन पहचान लेते हैं कि यह गीत शंकर जयकिसन का है. गीत की तर्ज उपरान्त इन का वाद्यवृन्द ऐसा होता है कि दूसरों से अलग लगे. चाहे आवारा, अनाडी, श्री 420, दाग या किसी और फिल्म का संगीत सुनिये. इन दोनों की भैरवी और गीत का ओर्केस्ट्रेशन अपने आप में एक अलग पहचान बनाता है. सुननेवाला स्थान-समय का भान भूल जाता है और गीत के संगीत में मगन हो जाता है.
शास्त्रीय संगीत में जिस तरह अस्थायी, अंतरा, संचारी, आभोग इत्यादि अंग होते हैं ठीक उसी तरह शंकर जयकिसन के संगीत में प्रस्तावना, मुखडा, इन्टरल्टयूड और अंतरे आते हैं. फिल्म दाग का अय मेरे दिल कहीं और चल गीत ध्यान से सुनिये. क्या कमाल किया है इन दोनों ने. आप भी महसूस करेंगे. ऐसा ओर्केस्ट्रेशन पहले कभी हुआ न था. ऐसे दूसरे भी गीत हैं, यहां मैं सिर्फ झलक देता हुं.
गीत के साथ जो साज बजते हैं उस में भी अनोखापन है. हर साज गीत को ज्यादा खूबसुरत बनाता है ऐसा आप महसूस कर सकते हैं. कोइ भी साज गीत के उपर हावी नहीं होता है, गीत को अत्यधिक बहेतर बनाने में प्रदान करता है.
शंकर जयकिसन ने जितने साज बजाये हैं वो हरेक साज अपनी तमाम खूबीयों के साज बजता है. हरेक साज का अपनापन है. तर्ज या लय गीत की सरलता को हानि नहीं पहुंचने देते. संगीत की जानकारी न हो ऐसा आम आदमी भी हर गीत गुनगुना सके इस बात का ध्यान शंकर जयकिसन ने हमेशा रखा है. गीत चाहे राग आधारित हो, या सुगम संगीत हो या पाश्चात्य शैली का हो, शंकर जयकिसन का कोइ भी गीत भारी महसूस नहीं होता. इस गीतों का लचीलापन सदैव रहा और यह शंकर जयकिसन के संगीत का जादु है.
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