पाश्चात्य दादरा ताल में भी बडे खूबसुरत गीत दिये

शंकर जयकिसन-23




करीब करीब सत्रहवे शतक की बात है. ओस्ट्रिया के पाटनगर वियेना में राजपरिवार को एक पाश्चात्य नृत्य स्वरूप बहुत पसंद था. बडे ही चैन से और धीमी (विलंबित ) सूर-लय में मृदु मधुर संगीत के साथ यह डान्स किया जाता था. शुरु में सिर्फ राज परिवार और धनाढ्य लोगों में यह डान्स लोकप्रिय था. वक्त के बहने के साथ आम आदमी भी यह डान्स शैली का दिवाना हुआ. शनैः शनैः यह डान्स शैली लोकनृत्य जैसी हो गयी.

रुकिये रुकिये. ऐसा मत सोचिये कि शंकर जयकिसन की बात में यह वियेना की डान्स शैली की बात कहां से आ गयी ? जरा सबूरी रखिये. में शंकर जयकिसन की ही बात कर रहा हुं. उस विदेशी डान्स शैली को पाश्चात्य संगीत में वोल्टझ (waltz) के नाम से पहचानी जाती है. जैसे हमारा छः मात्रा का दादरा है वैसा ही यह छः मात्रा का पाश्चात्य दादरा है. यह जानकारी आम आदमी के लिये प्रस्तुत की है. वस्तुतः यह प्रस्तावना इस लिये करनी पडी कि आप को यह बता सकुं कि शंकर जयकिसन ने विदेशी संगीत में दिलचस्पी लेकर कैसे कैसे तजुर्बे किये.

आज सुबह सुबह एफ एम रेडियो पर मूकेश के गाये एक गीत को सुना और यह बात मेरे दिमाग में आ गयी कि क्यूं न इस गीत के विदेशी ताल के बारे में कुछ लिखा जाय. अब आगे पढिये.

राज कपूर ने हो सकता है किसी फाईव स्टार हॉटल में इस शैली का डान्स देखा होगा, इस शैली का संगीत सुना होगा और शंकर जयकिसन को कहा होगा कि ऐसा भी कुछ करो. जब राज कूपरने यह बात की तब वो हमारे एक अति प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक हृषीकेश मुखरजी के साथ एक फिल्म कर रहे थे. 

फिल्म थी अनाडी. (1959). नूतन हीरोईन थी. शंकर जयकिसन को राज कपूरने अपने मन की बात बताई और हम जैसे संगीत प्रेमीयों को अनूठा तोहफा मिला. शंकर जयकिसन ने उस विदेशी लयशैली को ध्यान में रखकर फिल्म अनाडी में एक बेमिसाल गीत दिया. आप ने भी बडे चाव से सुना होगा. इस गीत ने शंकर जयकिसन को पहला फिल्म फेर एवोर्ड दिलवाया. 

अब आप को अवश्य याद आ गया होगा वह गीत. जी हां, किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले ऊठा, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है... राज कपूरने अपनी स्टाईल से इस गान पर डान्स किया जो दर्शकों के मन को भा गया. आज तो वोल्ट्झ पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चूका है. बोलिवूड में भी बहुत सारे संगीतकारों ने वोल्ट्झ में गीत तैयार किये हैं और वह सभी गीत लोकप्रिय भी साबित हुए हैं.

शंकर जयकिसन की ही बात करें तो प्रस्तुत है वोल्ट्झ के और एक दो नमूने. वही फिल्म अनाडी (1959) में और एक गीत वोल्ट्झ है. दिल की नजर से नजरों कि दिल से, यह बात क्या है, यह राज क्या है, कोई हमें बता दो... एक ही फिल्म में दो दो वोल्ट्झ और दोनों सुपरहिट, क्या बात है. सौ सौ सलाम शंकर जयकिसन को.

ऐसे और भी गीत आप को शंकर जयकिसन के मिलेंगे. यहां सिर्फ एक झलक पेश की. फिर भी एक गीत के बारेमें तो लिखना ही पडेगा. एक बहुत ही खूबसुरत गीत हमें आप ने दिया फिल्म दिल अपना और प्रीत परायी में- अजीब दास्तां हुं मै, कहां शुरु कहां खतम....

भारतीय दादरा ताल की बात करते करते हमने पाश्चात्य शैली के दादरा ताल की भी झलक देखी. अब आगे बढते हैं....

   


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