शंकर जयकिसन-26
ऊत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय (जिसे कर्णाटक संगीत कहते हैं) संगीत मीलकर हजारों राग-रागिणी और ताल हैं. फिल्म संगीत में बहुत थोडे राग और ताल का विनियोग होता रहा है. पिछले अध्यायों में हमने देखा कि किस तरह शंकर जयकिसन ने दादरा और कहरवा ताल का विनियोग किया. ठीक इसी तरह अब यह भी देखना हैं कि इन दोनों ने भारतीय तथा योरोपिय वाद्यों का किस खूबी से उपयोग अपने संगीत में किया.
फिल्म आवारा का शीर्षक गीत आवारा हुं, या गर्दिश में में आसमान का तारा हुं...गीत याद कीजिये. इस गीत में एकोर्डियन नाम के योरोपिय साज का अत्यंत सुंदर उपयोग हुआ है. यह साज वैसे तो परदे पर भी चमका है. खास कर के राज कपूर की फिल्म संगम में राज कपूर एक गीत में यह साज बजाता नजर आता है. वह गीत याने हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा...
ऐसा माना जाता है कि सन 1822 में जर्मनी के बर्लिन शहर में रहनेवाले फ्रेडरिक बुखमान नाम के कारीगर ने यह साज बनाया था. और एक विद्वान कहते हैं कि नहीं नहीं, यह साज 1829 में वियेना निवासी कलाकार साइरिल डेमियन ने यह साज अपनी शोध है कहकर रजिस्टर कराया. हो सकता है. हमारे देश में ब्रिटिश राज के जमाने में थोडे पारसी युवाओं ने यह साज बजाना सीखा और पंचतारक हॉटलों में बजाने लगे. बाद में यह साज नाटकों और फिल्मों में बजाना शुरु हुआ. 1930 के दशक में गोवानीझ रोमन केथोलिक ईसाइ कलाकार यह साज बहेतरीन बजाते थे.
शंकर जयकिसन के वाद्यवृन्द में यह साज बजानेवाले एक से अधिक साजिंदे थे. खुद शंकर जयकिसन भी यह साज बजाते थे. एक बार तो ऐसा भी हुआ कि शंकरजी को अपने साजिंदे ने बजाये हुए टुकडे से समाधान नहीं हुआ तो आप ने खुद ने एकोर्डियन हाथ में लेकर बजाकर दिखाया कि मुझे यह चाहिये.
यह साज भी हार्मोनियम की तरह हवा भरने से बजता है. साज के भीतर पित्तल की पट्टीयां (जिसे रीड कहते हैं) रहती है. उसके भीतर से हवा बहने लगे तब विविध सूर नीकलते हैं. अब मजा देखिये. संगीतकार नौशादजी को एक बार एकोर्डियन की जरूरत पड गइ. उन्हों ने पारसी रिधमकींग कावस लोर्ड को कहा. कावस अपने दोस्त गुडी सिरवाई को नौशादजी के पास ले गये.
शंकर जयकिसन ने भी गुडी का एकोर्डियन वादन सुना. उन को भी गुडी का वादन पसंद पडा. जिस तरह घर आया मेरा परदेशी के लिये लाला गंगावणे को अपना बना लिया था, ठीक उसी तरह शंकर जयकिसन ने गुडी को भी अपना साथी बना लिया. इन के अतिरिक्त आप के साथ वी बलसारा, कावस के पिताजी केरसी लोर्ड, विस्तास्प बलसारा और एनोक डेनियल जैसे दादु एकोर्डियन वादक थे. एनोक डेनियल पूना (महाराष्ट्र ) से आये थे. बांसुरीवादक सुमंत मित्रा बंगाल से आये थे, सुहास चंद्र कुलकर्णी भी महाराष्ट्र के थे, मनोहारी सिंघ वैसे थे नेपाल के लेकिन आये थे कलकत्ता से.
पिछले अध्यायों में मैं बता चूका हुं कि कभीकभार ऐसा होता था कि एक ही दिन में दो तीन संगीतकारों का रिकोर्डिंग है. ऐसे हालात में साजिंदे क्या करें ?
वे आपस में काम बांट लेते थे कि गुडी किस के साथ बजायेगा, एनोक किस के साथ बजायेगा, कावसकाका किस के साथ बजायेंगे वगैरह. यहां बात को एक नये स्वरूप में ले जा रहा हुं. 1970 के आसपास जब अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मेन का जमाना शुरु होने पर था और फिल्म संगीत से मेलोडी (मधुरता ) कम होने जा रही थी तब साजिंदें दूसरे काम की तलाश में लगे थे.
उन दिनों बलसारा बम्बई छोडकर कलकत्ता चले गये. एक टीवी इन्टरव्यू में बलसारा ने कहा था कि आवारा और दाग में आप जिसे एकोर्डियन की सूरावलि मानते हो वह एकोर्डियन नहीं था, मैंने अपने हार्मोनियम पे वह सूरावलि बजाई थी. बलसारा के हार्मोनियम के सूर गुजरात के पालिताणा में बने थे. और एक कहानी अनुसार बलसारा के हार्मोनियम में पेरिस सूर लगे थे. जो भी हो, एक बात पक्की है, बलसारा हार्मोनियम, पियानो और एकोर्डियन जैसे साजों के बेताज बादशाह थे. उसी इन्टरव्यू में बलसाराजी ने अपने हार्मोनियम पर शंकर जयकिसन के दो चार गीत बजाकर सुनाये थे. तभी दर्शको-श्रोताओं को यकीन हो गया था कि बलसारा सही कह रहे हैं.
शंकर जयकिसन ने अपने बहुत सारे गीतों की प्रस्तावना और इन्टरल्यूड (जिस बहुत लोग पार्श्वसंगीत भी कहते हैं) में एकोर्डियन का उपयोग किया है. कई गीतो में पूरे गीत में एकोर्डियन बजता रहता है. राज कपूर की तरह उन के बेटे अभिनेता रिशि कपूर ने मनमोहन देसाई की फिल्म अमर अकबर एन्थनी में परदे पर एकोर्डियन बजाने का अभिनय किया था. आप को याद होगा.
एकोर्डियन का जादु आप को भी लुभा गया होगा. यह थोडे गीतों को याद कीजिये- वो चांद खिला, यह तारे हसीं और तेरा जाना दिल के अरमानों का लूट जाना ( दोनों फिल्म अनाडी), आजा सनम मधुर चांदनी में हम (चोरी चोरी), अय मेरे दिल कहीं और चल (दाग जिस में दिलीप कुमार हीरो थे), चाहे झूम झूम रात ये सुहानी (लव मैरेज जिस में देव आनंद हीरो थे), दिल तेरा दिवाना है सनम (दिल तेरा दिवाना जिस में शम्मी कपूर हीरो थे ) और मंजिल वही है प्यार की राही बदल गये (कठपूतली जिस में बलराज साहनी हीरो थे).
आप की पसंद के ऐसे बहुत से गीत होंगे जिस में शंकर जयकिसन ने एकोर्डियन का जादु बिखेरा हो. यु ट्युब या गाना डॉट कोम में आप अपनी पसंद के ऐसे गीत का मजा ले सकते हैं. जिस फिल्म के गीत में जिस भारतीय या योरोपिय साज की जरूरत थी वहां शंकर जयकिसन ने वह साज का अत्यंत सुंदर उपयोग कर के गीत को सदाबहार बनाया है. हीरो-हीरोईन कोइ भी हो, फिल्म की कथा के अनुरूप और निर्देशक की सूचना को ध्यान में रखकर इन दोनों ने अपनी सर्जन कला का परिचय कराया. गीत के इन्ट्रो(आऱंभ) मुख्य गीत, हरेक अंतरे के पहले बजनेवाला उन्टरल्यूड, काऊन्टर मैलोडी और समापन में यह साज गूंजते रहे.
मिसाल के तौर पर यह गीत याद कीजिये. फिल्म थी सांज और सवेरा. अजहुं न आये बालमा सावन बीता जाय... इस गीत के अंतरे के पहले जो इन्टरल्यूड बजता है उस में अद्भुत काऊन्टर मेलोडी भी साथ में बजती है जो कि हार्मोनियम पर बजती है.
एक सौ साजिंदे, चालीस पचास देशी-बिदेशी साज, उस में से जिस साज की जहां जरूरत महसूस हुयी उस साज के चोटि के कलाकार को अपने साथ लेकर शंकर जयकिसन ने यादगार गीत बनाये वह हमारी खुशकिस्मती थी. आज भी वे सभी गानें हमे स्वर्गीय आनंद का अनुभव कराते रहे हैं.
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