शंकर जयकिसन-22
युगसर्जक शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खान साहब ने पार्श्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति को दिये साक्षात्कार में पते की बात कही. फिल्म संगीतकार सिर्फ ढाई तीन मिनट में दर्शक-श्रोता के सामने राग को खडा कर देते हैं इस लिये फिल्म संगीतकारों को भी अवतारी पुरुष का सम्मान देना चाहिये.
पिछले अध्याय में जो थोडे गीतों के मुखडे दिये थे वे अगर आप ने सुन लिये हैं तो अब मैं जो कहने जा रहा हुं उस में आप को बडा आनंद आयेगा. शुरु करते हैं दिल एक मंदिर के गाने से. यहां एक ऐसी महिला है जिस के पति को केन्सर हुआ है और अकस्मात वह ऐसे डॉक्टर के पास आयी है जो उसका भूतपूर्व प्रेमी है. आनेवाले दूसरे दिन को यह डॉक्टर पति का ओपरेशन करनेवाला है. पति जान चूका है कि यह डॉक्टर अतीत में अपनी पत्नी का प्रेमी रह चूका है. उस ने बडे इत्मिनान से पत्नी सीता को कहता है कि अगर मैं इस शस्त्रक्रिया में मर जाउं तो तुम डॉक्टर धर्मेश के साथ विवाह कर लेना.
अब सीता बडी दुविधा में है. धर्मेश मेरे पति राम को बचायेगा या मुझे पाने के लिये मार डालेगा ऐसी उस की दुविधा है. वह सितार के तार छेडते हुए गाती है, हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे हैं खो बैठे... हमारे शास्त्रीय संगीत में उपशास्त्रीय गीतों के लिये एक छोटा सा राग है- तिलक कामोद. हम तेरे प्यार में सारा आलम.. गीत राग तिलक कामोद पर आधारित है. ताल के बारे में मैं पहले कह चूका हुं.
इसी फिल्म दिल एक मंदिर का जिसे शीर्षक (टाईटल ) गीत कहा जायेगा वह है दिल एक मंदिर है, प्यार की इस में होती है पूजा, यह प्रीतम का घर है... मजे की बात यह है कि सदैव फिल्म पूरी होने पर लोग ऊठकर चल देते है. फिल्म दिल एक मंदिर की बात निराली थी. यह गीत अंतिम क्षणो में परदे पर पार्श्वभूमि में बजता है. डॉक्टर धर्मेश कि प्रतिमा स्थापित की गई है. राम और सीता (राज कुमार और मीना कुमारी ) डॉक्टर की माताजी का अभिवादन करते हुए उन्हें प्रतिमा के पास ले आते हैं और माताजी प्रतिमा को पुष्पहार पहनाती है. उस वक्त पार्श्वभूमि में यह गीत बजता है.
आप को भी शायद याद होगा. जब तक यह गीत बजता है तब तक एक भी दर्शक अपना स्थान छोडता नहीं था. इस दर्दभरे गीत को सुनने के बाद अपने अपने घर की तरफ जाते हुए प्रत्येक दर्शक इसी गीत के शब्दों और बंदिश को दिल में संजोये जाता था. यह था शंकर जयकिसन के संगीत का जादु. यह गीत संगीत की परिभाषा में राग जोगिया पर आधारित था. यदि आप को शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी है तो इसी राग में पंडित भीमसेन जोशीजी की आवाज में पिया के मिलन की आस... ठुमरी जरूर सुनियेगा. आप गद्गद हो जायेंगे. बडा ही करुण सूरों से यह राग भरपुर है.
शंकर जयकिसन के चहीते रागों में भैरवी औऱ शिवरंजनी प्रमुख थे. वैसे आप दोनों ने दूसरे रागों का भी उपयोग किया है. हम दादरा ताल की बात कर रहे हैं इस लिये यहां शिवरंजनी की बात करें. अब देखिये मजा. फिल्म सूरज में यह रागिनी के आधार पर खुशी का माहौल पैदा करते हुए शंकर जयकिसन ने यह गीत दिया- बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है... साथ में मिलन के प्रतीक रूप शहनाई बजती हे.
अब इसी राग में संगीतकारों ने विरह वेदना भी प्रस्तुत की है. फिल्म थी मेरा नाम जोकर. गीत है जाने कहां गये वो दिन, कहते थे तेरी राह में नजरों को हम... राग ऐक है, संवेदन अलग है. वैसे हम दादरा ताल की बात कर रहे हैं. लेकिन दस मात्रावाले जपताल (धींना धींधींना तींन तींतींना) में भी एक बेमिसाल गीत शंकर जयकिसन ने शिवरंजनी में दिया है. फिल्म थी प्रोफेसर. मुहम्मद रफी और लताजीने वह गीत गाया था- आवाज दे के हमें तुम बुलाओ, मुहब्बत में इतना न हम को सताओ... इस गीत में दोनों प्रेमी एक दूसरे को इजन दे रहे हैं एसा भाव है.
और एक बात विशेष रूप से ध्यान में आती है. सूरज के गीत में शहनाई बजी थी, संगम के गीत में पियानो बजता है और प्रोफेसर के गीत में सेक्सोफोन बजता है. इसे भी हम पूरब-पश्चम का एक प्रकार का फ्यूझन कह सकते हैं. तीनों गीत हिट साबित हुए थे.
एक यादगार गीत का उल्लेख भी यहां उचित समजता हुं. शास्त्रीय संगीत में बारह मात्रा का एक ताल है. उस का नाम ही एकताल है. जिस गायक का गला एकदम तैयार हो वही इस ताल में गा सकता है. फिल्म सीमा में शंकर जयकिसन ने इस ताल में और राग जयजयवंती में एक गीत दिया था. मनमोहना बडे जूठे... इस गीत की खूबीयां एक से ज्यादा है. विद्युतवेगी तानपलटे लेने की दिव्य क्षमता जिस के कंठ में है ऐसी लताने यह गीत गाया है. अपने कंठ से लताजी ने विविध हरकतें इस गीत में भर दी है. मुरकी, आलाप और तान से गीत जीवंत हो जाता है. द्रुत (अति वेगवान) एकताल में सितार और तबले की जुगलबंदी होती है. अभिनेत्री नूतन जो कि खुद भी संगीत की ज्ञाता थी और गा सकती थी. उस ने अपनी पूरी अभिनयक्षमता इस गीत में डालकर गीत को जीवंत कर दिया.
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