शंकर जयकिसन-31
सन 1947 की बात है. देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक अखंड भारत की रचना करने के ऊद्देश्य से सभी राज-रजवाडे नाबूद किये. उस वक्त शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों की एक बैठक हुयी थी. बडौदा नरेश के राजगायक और आग्रा घराने के आफताब-ए-मौसिकी उस्ताद फैयाझ खान इस बैठक के अध्यक्ष थे. उस बैठक में किराना घराने के उस्ताद अब्दुल करीम खान, जयपुर-अतरौली धराने के उस्ताद अल्लादिया खान, पतियाला घराने के उस्ताद बडे गुलाम अली खान (गजल गायक गुलाम अली अलग हैं) मैहर घराने के उस्ताद अली अकबर खान, तबला नवाझ उस्ताद अल्ला रख्खा इत्यादि दिग्गज कलाकार हाजिर थे.
इन सभी उस्तादों को एक ही बात की फिक्र थी. राज-रजवाडे अर्थात् हमारे आश्रयदाता चले गये तो अब शास्त्रीय संगीत का रक्षण-जतन कौन, कैसे करेगा ?
दूसरी बात, कल तक यह दिग्गज कलाकार राज्याश्रय होने से बडे चैन की जिंदगी गुजार रहे थे. अब रातोंरात यह सब फक्कड गिरधारी जैसे हो गये. उन की रोजीरोटी बंद हो गइ. अब यह कलाकार एश-ओ-आराम से नहीं रह सकते. इस बैठक की जानकारी सितारनवाझ पंडित रविशंकर, अल्लारख्खा और अली अकबर खान साहब को और फिल्म संगीतकारों को भी मिली थी. फिल्म संगीतकारों ने दिग्गज कलाकारों की चिंता नष्ट करने का मनोमन निश्चय किया और उस दिशा में काम शुरु भी कर दिया.
भारतीय संगीत के विद्यार्थी होने के नाते मेरा यह नम्र मंतव्य है कि भारतीय संगीत के रक्षण और जतन का काम हमारे फिल्म संगीतकारों ने बहुत ही खूबी के साथ किया. वैसे संगीतकारों में शंकर जयकिसन का नाम भी बडे आदर से लिया जाना चाहिये. इन दोनों ने ऊत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय (जिसे कर्णाटक संगीत कहते हैं) के राग-रागिणीयों पऱ आधारित बहुत ही खूबसुरत गीत दिये और आम आदमी को शास्त्रीय संगीत के प्रति आकर्षित किया. आज यदि पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित शिवकुमार शर्मा के कार्यक्रमों में बडी तादाद में लोग जाते हैं उसका श्रेय भी शंकर जयकिसन जैसे संगीतकारों को मिलना चाहिये. इन सभी ने अनेकानेक राग आधारित गीत दिये.
यहां एक और बात कहना चाहुंगा. आजकल टेलिविझन पे बच्चों के ढेर सारे सांगितीक कार्यक्रम होते हैं. आप अपने बच्चे को संगीत शीखने भेजते हैं. अब पढिये ध्यान से. आप बच्चे को संगीत क्लास में भेजते हैं. गांधर्व महाविद्यालय के अभ्यासक्रम में सब से पहला राग है भूपाली. बच्चे को राग भूपाली का व्याकरण सीखाया जाता है. बच्चे को व्याकरण में मौज नहीं आती.
आजकल ऐसा कहा जाता है कि आज के बच्चों को हमारे शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी नहीं है. मेरा एक सुझाव है. यह दो तीन मुखडे देखिये- पंछी बनुं ऊडती फिरुं मस्त गगन में... (फिल्म चोरी चोरी, गायिका लता मंगेशकर), सायोनारा सायोनारा... (फिल्म लव इन टोकियो). यह गीत बच्चे को सुनाइये. फिर उसे समजाइये कि भारतीय संगीत के हिसाब से यह दोनों ही गीत राग भूपाली पर आधारित है. भूपाली में पांच स्वर होते हैं, सा री ग प ध... मैं मानता हुं कि बच्चा जीवनभर राग भूपाली भूल नहीं पायेगा. यह शक्ति शंकर जयकिसन के संगीत में हैं.
वैसे फिल्म संगीत के स्वर्ण युग के हमारे सभी संगीतकारों ने राग आधारित गीत दिये और हमारे शास्त्रीय संगीत का रक्षण और जतन किया. वैसे आम आदमी आसानी से गुनगुना सके ऐसे बहुत राग आधारित गीत शंकर जयकिसन ने दिये हैं. हम सभी संगीत प्रेमी इन सभी संगीतकारों के शुक्रगुजार हैं.
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