बहुत गीतकारों को संगीत से यश दिलवाया

 शंकर जयकिसन-30




पिछले अध्याय में हमने देखा कि किस तरह शंकर जयकिसन ने पुरानी और नयी पीढी के गायक-गायिकाओं को मौका दिया और नित्य नवीन कलाकारों को पेश किया. यह अध्याय लिखते वक्त और एक विचार मेरे मन मे आया. आज उसी विचार पर आधारित लेख प्रस्तुत है.

शंकर जयकिसन का नाम लेते ही अक्सर हमारे मन में दो गीतकारों की याद ताजी होती है. हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र. इन दोनों के साथ शंकर जयकिसन ने बहुत काम किया और हमें सदाबहार गीतों का तोहफा दिया. दो गीतकार और दो संगीतकार यह चार कलाकार और आर के फिल्म्स यूं समजिये कि एकदूसरे के पर्याय बन चूके थे. आम आदमी को कभी कभी ऐसा लगता था कि यह चारों आर के फिल्म्स के कर्मचारी है. हालांकि ऐसा नहीं था. अलबत्ता, राज कपूर ने भी इन चारों को अपने परिवार की तरह सम्हाल लिया था, कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि वह (राज कपूर ) बोस है.

इस अध्याय में एक अलग सी बात कहनी है. मैं पहले भी कह चूका हुं कि शंकर जयकिसन सदैव नयी प्रतिभा की तलाश में रहते थे. चाहे गायक हो या साजिंदा  हो, इन दोनों को नयी प्रतिभा को अवसर देने में आनंद मिलता था और वे ऐसा समजते थे के हम भी युवा पीढी के चाहकों को कुछ नया दे रहे हैं.

इसी संदर्भ में यदि आप इन दोनों की फिल्मोग्राफी देखें तो ख्याल आयेगा कि इन दोनों ने बहुत सारे गीतकारों के साथ काम किया. आप दूसरे संगीतकारों की तरह किसी एक-दो गीतकारों के साथ शंकर जयकिसन का नाम नहीं ले सकते. मिसाल के तौर पर राजा महेंदी अली खान और मदन मोहन, शकील बदायूंनी और नौशाद. शंकर जयकिसन ने अपनी कारकिर्द में कम से कम चालीस गीतकारों के शब्दों को अमर कर दिया. अर्थात् चालीस गीतकारों के गीतों को संगीत से सजाया. है न यह भी एक सिद्धि ? देखिये यह थोडे से नाम.

हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र के अतिरिक्त अंजान, आनंद बक्षी, एस एच बिहारी, गुलशन बावरा, देव कोहली, भरत व्यास, पंडित नरेन्द्र शर्मां,  ईन्दिवर, फैझ अहमद फैझ, आनंद दत्ता, नीरज, महेन्द्र दहलवी, कैफी आझमी, एम जी हश्मत, शकील बदायूंनी, वर्मा मलिक, नक्श लायलपुरी, पी एल संतोषी, शैली शैलेन्द्र, जोश मलीहाबादी, उपेन्द्र झा, प्रेम धवन, किरण क्ल्याणी, रमेश शास्त्री, सरस्वती कुमार दीपक, अंजुम जयपुरी, अझीझ कश्मीरी और विठ्ठलभाई पटेल. इस सूचि में और भी दो चार नाम आ सकते हैं.

राज कपूर के अतिरिक्त दूसरे फिल्म सर्जकों के साथ काम करना शुरू किया तब भी राज कपूर के साथ इन के संबंध आत्मीय रहे थे. दूसरे फिल्म सर्जकों ने जो भी गीतकार अपने हीरो-हीरोईन के लिये पसंद किये उन सभी के साथ शंकर जयकिसन ने श्रेष्ठ काम कर के दिखाया. सभी गीतकारों के गीतों को यादगार बनाया. उन की यह विशेषता को ध्यान में रखकर ही जयकिसन और शैलेन्द्र के निधन पर राज कपूर ने छोटे बच्चे की तरह आक्रन्द-कल्पांत किया था. उस के लिये यह सदमा बडा पीडादायी बन गया था.

यहां और एक बात कहना चाहुंगा. दिलीप कुमार या देव आनंद जिस फिल्म के हीरो थे उस फिल्मों का संगीत परोसते वक्त इन दोनों ने इस बात का ख्याल रखा कि इस दोनों कलाकारों की लोकमानस में कैसी छबी (ईमेज) है और इन दोनों को कैसा संगीत पसंद है. फिल्म की कथा, लोकेशन, द्र्श्य का केन्द्रीय भाव-संवेदन वगैरह बातों को ध्यान में रखकर इन दोनों ने संगीत परोसा. उनका परुषार्थ रंग लाया और दिलीप-देव भी इन दोनों के काम से शत प्रतिशत संतुष्ट हुए. वैसे दिलीप कुमार की फिल्मों में अक्सर नौशाद का और देव आनंद की फिल्मों में अक्सर एस डी  बर्मन का संगीत रहता था. परंतु शंकर जयकिसन ने ऐसा काम कर के दिखाया कि इ दोनों कलाकारों को कभी शिकायत का मौका नहीं मिला. यह गुण शंकर जयकिसन की प्रतिभा का जीवंत सबूत और उन के संगीत का जादु है.

     


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