देशी-बिदेशी वाद्यों से भी दिव्य तजुर्बे किये

 

शंकर जयकिसन-28



फिल्म संगीत में आपादमस्तक क्रान्ति करनेवाले शंकर जयकिसन वाद्यों के उपयोग में अपनी अंतर्प्रेरणा का अनुसरण कर के कैसी अद्भुत रचनाएं करते थे यह सोचने जैसी बात है. अपने हाथ में आये गीत में इन दोनों ने अनजाने में कैसे कैसे तजुर्बे किये उस की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हुं.

अपने पुरोगामी या समकालीन संगीतकारों ने जिन वाद्यों का अत्यंत कम उपयोग किया अथवा नहीं किया ऐसे बहुत से साज शंकर जयकिसन ने बिनधास्त आजमाये और असीम कामियाबी हासिल की. इन दोनों ने डफ आधारित या सेक्सोफोन आधारित अथवा फिल्म संगम में राज कपूर के हाथ में नजर आये बेगपाईप नाम के साज पर आधारित गीत सुनिये. अभिभूत हो जायेंगे. दूसरे संगीतकारों ने जिस की कल्पना तक नहीं की थी ऐसे ऐसे साज इन दोनों ने आजमाये.

पिछले दिनों युवा सेक्सोफोन वादक जीत वाझ से साथ बात हो रही थी तब उस ने सेक्सोफोन आधारित दो चार गीतों का उल्लेख बडे आदर के साथ किया. सोचने जैसी बात है, शंकर जयकिसन के निधन के बाद जन्मे इस युवा कलाकार को भी शंकर जयकिसन के सेक्सोफोन आधारित गीतों ने दिवाना बना दिया. अर्थात् पीछली तीन चार पीढी शंकर जयकिसन के गीत सुनती आयी है. 

हमने उस्ताद अमीर खान साहब की बात की थी. उन्हों ने जिस गीत का विशेष रूप से उल्लेख किया था वह फिल्म आरझू का था. रामायण जैसी चिरंजीव टीवी सिरियल बनाने वाले रामानंद सागर की यह फिल्म में राग चारुकेशी पर आधारित गीत बेदर्दी बालमा तुझ को मेरा मन याद करता है...सुनिये. एक तरफ शास्त्रोक्त संगीत से मंजा हुआ लताजी का कंठ और दूसरी और मनोहारी ने नायिका की विरह वेदना को सघन करते हुए बजाया हुआ सेक्सोफोन. कंठ और साज एकदूसरे के पूरक हो जाते हैं जैसे दूध में मिली हुइ शक्कर. ऐसी ही वेदना का एहसास फिल्म पगला कहीं का में रफीने गाये हुए तुम मुझे यूं भूला न पाओगे... गीत में होता है.

यहां आप के ध्यान में और एक गीत लाना चाहता हुं. वही फिल्म आरझू में और एक गीत है अजी रुठ कर अब कहां जाइयेगा... इस गीत को भी सेक्सोफोन जिस तरह एक नया परिमाण (डायमेन्शन) देता है वह शंकर जयकिसन का ही कमाल है. आपने भी महसूस किया होगा कि दूसरे संगीतकार दर्द को प्रस्तुत करने के लिये बांसुरी या शहनाई बजवाते हैं. शंकर जयकिसन ने सेक्सोफोन जैसे बिदेशी साज को जिस खूबी से प्रस्तुत किया है उस की जितनी तारीफ करें, कम है.

ऐसा भी नहीं है कि शंकर जयकिसन ने सिर्फ दर्द व्यक्त करने के लिये सेक्सोफोन बजवाया है, खुशी और मौज मस्ती के गीतों को भी इस साज ने नये अंदाज में प्रस्तुत किये हैं. मिसाल के तौर पर दिल तेरा दिवाना का शीर्षक गीत उपरांत आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हैं जबान पर (ब्रह्मचारी) और अजी ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा... (एन ईवनींग इन पेरिस). इन सभी गीतों में सेक्सोफोन ने नया रंग भर दिया है . 

ठीक इसी तरह इन दोनों ने मेंडोलीन, पियानो, बोंगो-कोंगो, ड्रम सेट्स, बेझ गिटार इत्यादि बिदेशी साजों का कमाल का इस्तेमाल किया है. शंकर जयकिसन ने सिर्फ मधुर बंदिशें नहीं दी, प्रत्येक गीत में इन्हों ने जो साज पसंद किये वे भी इन दोनों की सूझबूझ के सबूत है. कौन सा साज किस गीत को यादगार बनायेगा इस की समज इन दोनों में भरपुर थी.

   





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