शंकर जयकिसन-25
स्वरकिन्नरी लता मंगेशकर के जीवन या गायकी के बारे में जितनी किताबें प्रकाशित हुई है उन सभी किताबों में एक घटना का उल्लेख अवश्य मिलता है. यह घटना एक जीवंत सबूत है कि शंकर जयकिसन का संगीत समकालीन फिल्म सर्जको में भी कितना लोकप्रिय हो चूका था. यह घटना यहां प्रस्तुत करना उचित समजता हुं.
आप जानते ही होंगे कि महबूब खान ने अपनी कारकिर्द का आरंभ सागर मूवीटोन से किया था. सागर में संगीतकार अनिल विश्वास थे. महबूब और अनिलदा के बीच इतनी आत्मीयता थी कि महबूब खान अनिलदा को बंगाली कहकर बुलाते थे और अनिलदा महबूब को मवाली कहकर बुलाते थे. महबूब खानने जब अपनी एक हिट फिल्म औरत मधर ईन्डिया के नाम से पुनः बनायी तब उस में नौशाद का संगीत लिया और फिल्म सुपरहिट हुयी.
मधर ईन्डिया सुपरहिट होने पर महबूब खान ने अपने दत्तक पुत्र साजिद को हीरो बनाकर सन ऑफ ईन्डिया फिल्म बनायी. यह फिलम बूरी तरह फ्लोप हुयी और महबूब खान को दिल का दौरा पड गया. वे ईलाज के लिये लंडन गये. महबूब खान की तबियत का हाल पूछने लता मंगेशकर ने उन्हें लंडन के अस्पताल में फोन किया.
यह बात 1960 के दशक की है. उन दिनों में डायरेक्ट ट्रन्क कोल की सुविधा नहीं थी. इस लिये लताजी ने टेलिफोन एक्सचेंज में फोन कर के लंडन का कोल बुक कराया. घंटों तर इंतजार करने के बाद कोल लगा. लताजी ने महबूब खान का हाल पूछा. एकदूसरे का अभिवादन हो जाने के बाद लताजीने उन से कहा कि मेरे लायक कोइ काम हो तो बताईये.
महबूब खान ने कहा कि मुझे शंकर जयकिसन का फिल्म चोरी चोरी का गीत रसिक बलमा... सुनना है. फौरन लताजी बोले, यहां पर साजिंदे तो नहीं है, पर मैं आप को सुना देती हुं. और लताजीने बगैर ओरकेस्ट्रा के वह गीत फोन पर गाया. सुनते सुनते महबूब खान की आंखें बहने लगी... मजे की बात यह हुयी की गीत खत्म होने पर दो लडकियों की आवाज आई- वाह् वाह् क्या बात है...
महबूब खान और लताजी दोनों चौंके, यह किस की आवाज है. उन्हों ने फौरन पूछा, कौन बोला ? तब उन दोनों ल़डकियों ने क्षमा मागते हुए कहा, माफ कीजियेगा, लताजी और महबूब खान नाम सुनकर हम रह नहीं पायी और आप की बात सून ली, हमें माफ कर दीजिये. हुआ यूं था कि भारतीय और आंतरराष्ट्रीय दोनों ही टेलिफोन ओपरेटर इस दो महानुभाव की बातें सुन रही थी. लताजी ने फोन पे रसिक बलमा गीत गाया तो इन दोनों से रहा नहीं गया और वाह् वाह् बोल दी.
इस प्रसंग का महिमा बहुत है क्यूं की अनिल विश्वास और नौशाद जैसे धुरंधर संगीतकारों के साथ महबूब खान काम कर चूके थे. लेकिन, अस्पताल में उन्हें शंकर जयकिसन का गीत पेईन कीलर (दर्दशामक औषध0 जैसा लगा और उन्हों ने लता से फर्मायेश की की शंकर जयकिसन का गीत सुना दो. दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शंकर जयकिसन के संगीत ने यहां पर म्युझिक थेरपी जैसा काम किया.
और एक दिलचस्प बात. रसिक बलमा हाय दिल क्यूं भूलाये... गीत भारतीय संगीत के राग शुद्ध कल्याण पर आधारित है और मध्य लय कहरवा ताल में निबद्ध है. मजा यह है कि अद्दल ऐसा ही मुखडा जाने अनजाने में एस डी बर्मन के एक गीत में भी आप सुन सकते हैं. फिल्म दती पेईंग गेस्ट. यह गीत भी लताजी की आवाज में हैं. आपने सुना होगा- चांद फिर नीकला मगर तुम न आये, जला फिर मेरा दिल....
रसिक बलमा और चांद फिर नीकला दोनों का मुखडा एक सा लगने का कारण यह है कि दोनों गीत राग शुद्ध कल्याण पर आधारित है. इस से पहले मैं कह चूका हुं कि लताजी और शंकर जयकिसन दोनों ने एक दूसरेकी कारकिर्द में अनूठा प्रदान किया. ऐसा ही प्रदान लक्ष्मीकांत प्या.रेलाल की कारकिर्दी को जमाने के लिये लताजी ने बाद में किया था.
बढ़िया जानकारी
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