ताल के साथ राग-रागिनीओं का मजा भी लूटना है.

 शंकर जयकिसन-21 

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इस प्रकरण का आरंभ भी थोडे गीतों के मुखडे से करते हैं. कौन सी फिल्म किस साल में परदे पर आयी उस बात को थोडी देर के लिये भूल जाइये. यह मुखडे गुनगुनायें. यदि मुमकीन हो तो यु ट्युब या गाना डॉट कोम पर गीत को सुन लीजिये. यह रहे मुखडे- हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे हैं... (दिल एक मंदिर), दिल एक मंदिर है प्यार की इस में होती है पूजा...(वही), बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है... (सूरज), बेदर्दी बालमा तुझ को मेरा मन याद करता है (आऱझू), मुझ को अपने गले लगा लो, अय मेरे हमराही... (हमराही), दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा... (संगम), तेरा मेंरा प्यार अमर फिर क्यूं मुझ को... (असली नकली).

यदि आपने यह सारे मुखडे गुनगुनायें हैं तो आप के ध्यान में एक बात आयी होगी. इन सभी गीतों का और ऐसे दूसरे बहुत सारे गीतों का ताल एक सा है. जी हाँ, यह सभी गीत छः मात्रा के दादरा ताल में निबद्ध है. इस के बोल है धा धीं ना ता तीं ना... वैसे शास्त्रीय संगीत में दादरा नाम से गायन स्वरूप भी है. शायद आपने बेगम अख्तर, निर्मलादेवी, शोभा गुर्टुजी के कंठ में ऐसे दादरे सुने भी होंगे. 

पुनरावर्तन की आवश्यकता नहीं है, पिछले अध्याय में मैं कह चूका हुं के ताल भले एक हो, उस की मात्राओं का वजन बदल जाने से ताल और गीत की छटा बदल जाती है. गीत का सौंदर्य बढाने में ताल के अतिरिक्त तालवाद्य और जिस राग में गीत निबद्ध है उस का भी महत्त्वपूर्ण प्रदान रहता है. कौन सा तालवाद्य किस साजिंदेने बजाया है वह भी महत्त्वपूर्ण है. शंकर जयकिसन के साथ उन के साजिंदो के प्रदान की भी सराहना करनी चाहिये. ऐसे और दो चार गीतों का उल्लेख आवश्यक है.

एक से ज्यादा फिल्मों में अपनी आवाज देनेवाले ईंदोर घराने के युगसर्जक गायक उस्ताद अमीर खान साहब के एक साक्षात्कार की बात है. मद्रास (अब चैन्नाई) रेडियो पर गायिका कविता कृष्णमूर्ति ने उस्तादजी का साक्षात्कार किया था. कविताने आप से कहा, बडे बडे उस्ताद और गवैये फिल्म संगीत को हीन समजते हैं. लेकिन आपने तो फिल्मों में मुक्त रूप से गाया है. (उस्ताद अमीर खान ने बैजु बावरा, शबाब, झनक झनक पायल बाजे, गूंज ऊठी शहनाई आदि फिल्मों में गाया है) ऐसा क्युं 

प्रश्न सुनकर खान साहब मुस्कुरा दिये. आप ने कहा, देखो बेटे, हम ने पंद्रह बीस सालों तक रोज घंटो तक रियाज किया है. फिर भी कभीकभार ऐसा होता है कि आधे-पौने घंटे तक आलाप करने के बावजूद हम राग की हवा पैदा नहीं कर सकते. (शायद इसी संदर्भ में शहनाईनवाज उस्ताद बिस्मील्ला खान कहते थे, राग रसोई और पाघ कभी कभी बन जात है).

अमीर खान साहबने आगे बढकर कहा, यह फिल्म संगीतकारों को देखो. ढाई-तीन मिनट के गाने में आप के सामने राग को खडा कर देते हैं. मैं फिल्म संगीत को हीन नहीं समजता. मैं फिल्म संगीत के रहस्य को समजने की कोशिश करता हुं.                 

कविता ने पूछा, आप फिल्म संगीत द्वारा राग निष्पन्न होने का कोइ द्रष्टांत देगें ? हां हां, क्यूं नहीं, उस्तादजीने जवाब दिया, मैंने कर्णाटक संगीत के भी थोडे राग संगीत संमेलनों में गाये हैं. ऐसा एक राग है चारुकेशी. शंकर जयकिसन ने इस राग में एक यादगार गीत दिया है. फिल्म आरझू में राग चारुकेशी पर आधारित वो गीत लताने गाया है- बेदर्दी बालमा तुझ को मेरा मन याद करता है... इसे सुनो. सिर्फ ढाई-तीन मिनट में राग चारुकेशी आप के सामने आ जाता है. इसी लिये मैं फिल्म संगीतकारों को भी परमात्मा के अवतार समान मानता हुं.

इतना कहकर उस्तादजीने कहा, और एक बात याद रखनी चाहिये. यहां राग चारुकेशी को शंकर जयकिसन ने विदेशी साज सेक्सोफोन का विनियोग कर के नायिका की विरह वेदना को और भी गहरी बनाई है...

    


Comments

  1. लाख लाख सलाम । महान संगतकार को।

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  2. लाख लाख सलाम । महान संगतकार को।

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