शंकर जयकिसन-20
थोडे से गीतों के मुखडे याद कीजिये. फिल्म बरसात- बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम बरसात में..., फिल्म श्री 420 रमैया वस्ता वैया रमैया वस्तावैया..., फिल्म सीमा- सुनो छोटी सी गुडिया की लंबी कहानी..., फिल्म जिस देश में गंगा बहती है- हम भी हैं तुम भी हो दोनों है आमने सामने ओर होठों पे सच्चाई रहती है..., फिल्म आस का पंछी- तुम रुठी रहो मैं मनाता रहुं कि इन अदाओं पे और प्यार आता है..., फिल्म असली नकली- तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है, तेरे जुल्मो सितम..., फिल्म आई मिलन की बेला- तुम्हें और क्या दुं मैं दिल के सिवा..., फिल्म दिल अपना और प्रीत परायी- गीत दिल अपना और प्रीत परायी, फिल्म दिल एक मंदिर- जुही की कली मेरी लाडली...
और भी ऐसे गीतों को ले सकते हैं. लेकिन यहां सिर्फ एक झलक प्रस्तुत कर रहा हुं. इन मुखडों को गुनगुना के देखिये. सभी गीतो में एक समानता है. यह सभी गीत अलग अलग फिल्मों के हैं, सभी फिल्मों का कथानक अलग है, हीरो-हीरोईन भी अलग है. हरेक गीत में भाव-जजबात अलग है. हरेक गीत की तर्ज एक-दूसरेसे अलग है. फिर भी सभी गीतो में एक समानता है.
पिछले दिनों तबला गुरु पंडित विजय मोरे से बात हो रही थी. तब यह समानता मेरे ध्यान में आयी. सभी गीतों के संगीतकार शंकर जयकिसन है. यह पहली समानता. दूसरी और महत्त्वपूर्ण समानता इन सभी गीतों का ताल है. यह प्रत्येक गीत हमारे (उत्तर भारतीय संगीत के ) खेमटा ताल में है. धाग् धीना गीन, ताक् धीना गीन इस ताल के बोल हैं. शंकर जयकिसन ने और भी बहुत गीत इसी ताल में दिये हैं. खूबी यह है कि हरेक गीत का अपना एक अनोखा सौंदर्य है. ताल एक होने पर भी हरेक गीत में ताल के बोलों का वजन बदल जाता है. भारतीय संगीत का थोडा भी अभ्यास हो उन्हें यह बात आसानी से समज में आ जायेगी.
पंडित विजय मोरेजी ने और एक बात कही. आप ने कहा कि एक ही ताल में वैविध्य लाने के लिये या तो उस के बोल का वजन बदल दिया जाता है अथवा ताल के कायदे को अजमाया जाता है. शास्त्रीय संगीत में ताल के विविध कायदे अर्थात् भिन्न भिन्न स्वरूप होते हैं. जैसे गायन में आलाप, सरगम, बोलतान इत्यादि होते हें, ठीक उसी तरह ताल में कायदे होते हैं. यदि आप कभी सोलो (एकल) तबलावादन सुने तो यह बात आप की समज में आ जायेगी. एक ही ताल के विविध कायदे आजमाये जाते हैं, कायदा पूर्ण होने पर तिहाई बजती है जैसे कि किटतक गदिगन धा, तिटकत गदिगन धा, तिटकट गदिगन धा... श्रोतागण ताली बजाकर और वाह् वाह् क्या बात है कहकर कलाकार का अभिवादन करते हैं.
तो यह बात है. शंकर जयकिसन ने एक ही ताल में ढेर सारे गीत दिये लेकिन हरेक गीत का अपना अलग सौंदर्य है. हम जानते हैं कि शंकरजी आला दरजे के तबलावादक थे. गीत के ताल में कौन सा ठेका लिया जाय उस का सुझाव शंकरजी देते रहे. उन के अतिरिक्त आप के साथ उस्ताद अब्दुल करीम, लाला गंगावणे, सतार, दत्ताराम, श्रीकांत वलवणकर जैसे ओर लयवाद्यकार भी थे. शंकर और जयकिसन सभी कलाकारों के साथ मशवरा कर के ताल का चयन करते थे.
ताल का चयन करते समय और एक बात ध्यान देने योग्य है. एक ही ताल की गति के आघार पर भी गीत के सौंदर्य कम ज्यादा होता है. गति अत्यंत धीमी हो, मध्यम गति हो या द्रुत-फास्ट गति हो वगैरह.
आज हम ने खेमटा ताल में निबद्ध शंकर जयकिसन के गीतों की झलक देखी. इसी तरह दूसरे ताल और तत्पश्चात् विविध रागों पर आधारित गीतों की बात करेंगे. गीतों का आस्वाद लेते रहेंगे.
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