शंकर जयकिसन-18
आप कभी संत श्री मोरारी बापु की रामकथा सुनने गये हैं ? श्री मोरारीबापु अक्सर अपनी कथा में एक भजन गाते हैं और श्रोताओं को भी गवाते हैं. आप को भी याद होगा वह भजन- अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में, है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में... यह भजन बडे चाव से हजारों रामभक्त गाते हैं,.
बहुत कम लोगों को खयाल आता है कि यह भजन शंकर जयकिसन के एक गीत की तर्ज पर बनाया गया है. याद आया आप को ? चलिये मैं ही याद करा देता हुं. यह गीत शंकर जयकिसन के अत्यंत लोकप्रिय गीत राज कपूर की फिल्म आवारा के इस गीत पर आधारित है- आ जाओ तडपते हैं अरमां अब रात गुजरनेवाली है...
यह तर्ज शंकर जयकिसन ने 1951 के उत्तरार्ध में बनायी थी. आज 2021 है. पिछले सत्तर बहत्तर सालों में भी यह तर्ज लोग भूला नहीं पाये. पिछले सात दशकों से यह तर्ज लोगों के दिल में स्थान पायी हुयी है.
शंकर जयकिसन के संगीत का यह जादु है. ऐसा सिर्फ यह एक गीत के साथ नहीं हुआ है. शंकर जयकिसन के बहुत सारे गीतों की तर्ज पर भारत की विविध भाषाओं में भक्तिगीत रचाये गये और लोग बडी लगन के साथ गाते आये हैं. बहुत थोडे फिल्म संगीतकारों ने आम आदमी पर ऐसा जादु चलाया है.
और हां, यहां और एक बात करना जरूरी समजता हुं. गुजरात के क्रान्तिकारी संत माने गये सच्चिदानंदजी ने अपनी आत्मकथा में लीखा है कि जीवन की एक कमजोर क्षण में वे आत्महत्या करने चले थे. रास्ते में एक चाय की हॉटल में शंकर जयकिसन का गीत बज रहा था. उस गीत ने उन्हें रोक दिया. बाद में आप ने शंकर जयकिसन के बहुत सारे गीत सुने और आत्महत्या का विचार ही भूल गये.
आप शंकर जयकिसन के अतूट चाहनेवाले बन गये और वर्षों बाद आप ने जयकिसन के गांव वांसदा में जयकिसन की कांसे की प्रतिमा बनवाकर स्थापित की. संसार छोड चूके संन्यासी को भी शंकर जयकिसन का संगीत इस कदर प्रभावित कर गया था.
जयकिसन अच्छी बातों का कैसा गुणग्राही था उस का एक नमूना यह भी है. बचपन में उस ने अपने गांव में एक लडके को जनेऊ देते हुए देखा था. जिस समाज का वह लडका था उस समाज में एक गुजराती लोकगीत जनेऊ के वक्त गाया जाता था.
बच्चा जब जनेऊ लेकर विद्याभ्यास के लिये काशी जाने को तैयार होता है उस वक्त यह गाना गाया जाता है. जयकिसन को यह लोकगीत इतना भा गया था कि फिल्मों में जब मौका मिला तब उस लोकगीत के आधार पर एक गाना प्रस्तुत कर दिया जो आज भी काफी लोकप्रिय है. वह गीत फिल्म श्री 420 का था- ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना ईचक दाना....
फिल्मी दुनिया को लोग गंदे कीचड समान मानते हैं. कीचड में जैसे कमल खीलता है ठीक उसी तरह फिल्मी दुनिया में रहते हुए भी यह दोनों विधायक (पोझिटिव) द्रष्टिकोण अपनाये हुए थे. शायद इसी लिये इन दोनों का संगीत आज भी तरोताजा लगता है.
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